वुड का घोषणा पत्र 1854
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ब्रिटिश सरकार की नियंत्रक संस्था थी। ब्रिटिश सरकार प्रत्येक 20 वर्ष बाद नया आज्ञा पत्र जारी करती थी। यह आज्ञापत्र 1763 ई. से प्रारम्भ हुये तथा प्रत्येक 20 वर्ष के उपरान्त कुछ संशोधनों के उपरान्त, ब्रिटिश पार्लियामेण्ट द्वारा स्वीकृति के उपरान्त नये आदेश लागू किये जाते थे।
इसी क्रम में सन् 1854 के राज पत्र के लिये भी ब्रिटिश संसद में विचार किया तथा इस कार्य के लिये सन् 1853 में ब्रिटेन में एक संसदीय समिति (Parliamentary Committee) का गठन किया गया। इस समिति ने विषय पर गम्भीरता से विचार किया तथा 19 जुलाई, सन् 1854 में निदेशक परिषद् (Board of Directors) के समक्ष प्रस्तुत किया।
उस समय सर चार्ल्स वुड कम्पनी के बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के प्रधान थे। अतः यह प्रतिवेदन (Report) वुड के घोषणा पत्र (Wood's Dispatch) के नाम से प्रसिद्ध है। इस घोषणा पत्र में मार्शमैन, केमरान, विल्सन और हेलाइड आदि अनेक अंग्रेज विद्वानों ने अपना सुझाव प्रस्तुत किया।
वुड के घोषणा पत्र द्वारा घोषित शिक्षा नीति ( EDUCATION POLICY ANNOUNCED BY WOOD'S DESPATCH)
वुड के घोषणा पत्र में भारत की शिक्षा नीति को एक नया रूप दिया गया था। 100 अनुच्छेदों में लिखे गये वुड के विस्तृत घोषणा पत्र में शिक्षा पर व्यापक विचार व अध्ययन किया गया। उस नई शिक्षा नीति को अग्रलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है-
शैक्षिक प्रशासन (Educational Administration)
1. शिक्षा का उत्तरदायित्व कम्पनी (सरकार) पर
शैक्षिक प्रशासन के लिये घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया कि सम्बन्धी सभी परिषदों तथा समितियों को भंग कर भारत के लगभग समस्त प्रान्तों- बंगाल, मद्रास, पंजाब, उत्तर प्रदेश (यूनाइटेड प्रेविजेंस) बम्बई आदि में लोक शिक्षा विभाग (Department of Public Instruction) की स्थापना की जाय।
इस शिक्षा नीति में कम्पनी शासित भारतीयों की शिक्षा की व्यवस्था करना सरकार का उत्तरदायित्व निश्चित किया गया। इसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा गया कि- कोई भी विषय हमारा ध्यान इतना आकर्षित नहीं करता जितना शिक्षा। यह हमारा एक पवित्र कर्तव्य है।”
2. जन शिक्षा निदेशक की नियुक्ति
जन शिक्षा विभाग में सर्वोच्च अधिकारी जन शिक्ष निदेशक (Director of Public Instruction) की नियुक्ति की घोषणा की गई, उसकी सहायता के लिये शिक्षा उपसंचालक, निरीक्षक और लिपिकों की नियुक्ति की संस्तुति की गई। वर्ष के अस में प्रत्येक प्रान्त को अपने प्रान्त की शिक्षा प्रगति की रिपोर्ट देने की भी घोषणा की गई।
वित्तीय प्रबन्ध एवं सहायता अनुदान (Financial Management and Grant-in-aid)
इस घोषणा में सर्वप्रथम देशी व विदेशी सभी शिक्षण संस्थाओं को बिना धार्मिक भेदभाव के आर्थिक सहायता प्रदान करने की संस्तुति की गई। सन् 1813 के राजपत्र में जिस । लाख रुपये की आर्थिक सहायता की शुरुआत की गई थी। उसे बुड ने भारतीय व मिशनरी सभी प्रकार की शिक्षण संस्थाओं के लिये सहायता अनुदान (Grant in aid) व्यवस्था के रूप में परिवर्तित कर दिया था। इस आर्थिक सहायता को विभिन्न मदाँ भवन निर्माण, विज्ञान प्रयोगशाला, निर्माण, शिक्षकों के वेतन और छात्रवृत्तियों आदि में देने का प्रावधान किया गया।
शिक्षा का संगठन (Educational Organization)
शिक्षा के संगठन के विषय में इस नीति में दो घोषणायें निम्न प्रकार की गई-
1. शिक्षा का संगठन स्तर
इस नीति में भारतीय शैक्षिक संगठन पर शास्त्रीय रूप से विचार किया गया था। प्राथमिक विद्यालय, मिडिल स्कूल, हाईस्कूल, उच्च व उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कॉलेज और विश्वविद्यालयों के रूप में शिक्षा में विभिन्न स्तरों (Stages of Education) को एक श्रृंखला की घोषणा की गई थी।
2. विद्यालयों की क्रमिक श्रृंखला की स्थापना
इस शिक्षा नीति में शिक्षा के उपर्युक्त संगठन के लिये क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना की घोषणा की गई। विद्यालयों की इस क्रमिक श्रृंखला को अग्र रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है-
प्रथम स्तर- देशी प्राथमिक विद्यालय
मध्यम स्तर - मिडिल स्कूल
तृतीय स्तर - हाईस्कूल
चतुर्थ स्तर - कॉलेज विश्वविद्यालय
शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)
वुड के घोषणा पत्र में शिक्षा के उद्देश्यों को परिभाषित करके शिक्षा को नवीन दिशा प्रदान को गई। इस घोषणा पत्र में वर्णित उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. भारतीयों का बौद्धिक विकास करना तथा उन्हें पाश्चात्य ज्ञान से अवगत कराना।
2 भारतीयों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना तथा अंग्रेजी ज्ञान में वृद्धि के उपाय करना।
3. भारतीय नागरिकों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना।
4. भारतीयों को राज्य सेवा हेतु एक सुयोग्य कर्मचारी के रूप में तैयार करना।
5. भारतीय जनता को आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से अंग्रेजी भाषा, साहित्य और विज्ञान आदि विषयों की शिक्षा प्रदान करना।
शैक्षिक दायित्व (Educational Responsibility)
वुड के घोषणा पत्र में शिक्षा उन्नति तथा विकास का सम्पूर्ण दायित्व ब्रिटिश शासन पर डाला गया था तथा आर्थिक सहायता अथवा अनुदान की भी व्यवस्था का उत्तरदायित्व कम्पनी पर ही था।
शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Education)
इस घोषणा पत्र में पाठ्यक्रम के सन्दर्भ में निम्नलिखित घोषणायें की गई-
1. प्राच्य भाषा तथा साहित्य को स्थान (Orientental language and Literature)
इस पत्र में भारतीयों के लिये प्राच्य भाषा एवं साहित्य के महत्त्व को स्वीकार किया गया और उन्हें पाठ्यक्रम में स्थान देने की घोषणा की गई। उन्होंने अपने पाठ्यक्रम में बंगला, संस्कृत, अरबी, फारसी को भी सम्मिलित किया।
2. पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान को विशेष स्थान (Special place of Western Science)
इस शिक्षा नीति में भारतीयों की भौतिक उन्नति के लिये पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान को भारतीयों के बौद्धिक विकास हेतु परम आवश्यक बताया गया। अतः अंग्रेजी भाषा, साहित्य तथा आधुनिक वैज्ञानिक विषयों का समावेश किया गया। घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप में लिखा गया कि "हम बलपूर्वक घोषित करते हैं कि हम भारत में जिस शिक्षा का प्रसार देखना चाहते हैं, वह है - यूरोपीय ज्ञान।"
3. धार्मिक शिक्षा की स्वतन्त्रता (Freedom of Religious Education)
इस घोषणा पत्र में मिशनरी स्कूलों को धार्मिक शिक्षा की छूट दी गई व सरकारी स्कूलों में धार्मिक तटस्थता की नीति का पालन किया गया। सामान्यतया धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं था, किन्तु प्रत्येक विद्यालय में ईसाई धर्म ग्रंथ बाइबिल का होना आवश्यक व अनिवार्य कर दिया गया था, जिससे सभी धर्मों के छात्रों को ईसाई धर्म व संस्कृति के विषय में जानकारी प्राप्त हो सके तथा वे उससे प्रभावित हो सकें।
शिक्षण विधियाँ तथा शिक्षा का माध्यम (Methods of Teaching and Medium of Instruction)
यद्यपि घोषणा-पत्र में शिक्षण विधियों के विषय में पृथक् रूप से कोई विचार नहीं किया गया था, किन्तु फिर भी निम्नलिखित संस्तुतियाँ की गई-
1. प्राथमिक शिक्षा का माध्यम देशी व अंग्रेजी (The Medium of Primary Education is native and English)
प्राथमिक स्तर की शिक्षा हेतु देशी भाषाओं और अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम स्वीकार किया गया।
2. उच्च शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेजी (Medium of Higher Education only English)
घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया कि प्राच्य भाषायें इतनी सशक्त व समृद्ध नहीं है, कि उनमें विज्ञान तथा पश्चिमी ज्ञान की शिक्षा दी जा सके। अतः उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को ही बनाया गया।
3. शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods)
मिशनरियों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करने की छूट के कारण, पादरी के लिये उपदेश प्रधान विधि की अनुमति दी गई, जबकि अन्य विषयों के लिये मौखिक व लिखित विधि, विज्ञान हेतु प्रयोगात्मक विधि, उच्च शिक्षा के लिये व्याख्यान विधि को संस्तुति की गई।
शिक्षक एवं छात्र (Teachers and Students)
1. शिक्षक-वुड के घोषणा पत्र में शिक्षकों का स्तर उठाने पर बल दिया गया, पहली बार शिक्षकों को 'मास्टर' कहकर सम्बोधित किया गया। शिक्षकों को उचित स्थान प्रदान करने हेतु उनके वेतन में वृद्धि करने की बात कही गई।
2. छात्र घोषणा पत्र में किसी भी स्तर व विद्यालय में पढ़ने वाले निर्धन छात्रों के लिये छात्रवृत्तियाँ देने का प्रावधान किया गया।
व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education)
वुड के घोषणा पत्र में व्यवसायपरक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुये व्यावसायिक शिक्षा से सम्बन्धित घोषणायें की गईं। वुड ने भारतीय जनता की बेरोजगारी को देखते हुये ऐसी शिक्षा व्यवस्था की घोषणा की, जो रोजगारपरक तथा नौकरियाँ दिलाने वाली थी। इस प्रकार की व्यवसायपरक शिक्षा भारतीयों की आर्थिक उन्नति में भी विशेष रूप से सहायक थी। इस सम्बन्ध में दो घोषणायें की गईं-
1 . भारत में व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्ध किया जायेगा।
2. शिक्षित बेरोजगारों को उनकी योग्यता व कार्यकुशलता के आधार पर सरकारी नौकरी दी जायेगी।
शिक्षक प्रशिक्षण (Teacher's Training)
इस घोषणा पत्र में शिक्षा के स्तर में सुधार हेतु सर्वप्रथम शिक्षकों के प्रशिक्षण, विषय पर गम्भीरता से ध्यान केन्द्रित किया गया। शिक्षक प्रशिक्षण हेतु निम्नलिखित घोषणायें की गईं-
1. भारत में शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्रों की समुचित व्यवस्था की जाये।
2. इन प्रशिक्षण केन्द्रों में, इंग्लैण्ड के प्रशिक्षण संस्थाओं की ही भाँति संचालन व व्यवस्था हो।
3. सामान्य शिक्षकों, चिकित्सा शिक्षकों तथा विधि शिक्षकों के लिए अलग-अलग प्रशिक्षकों की व्यवस्था की जाये।
4. प्रशिक्षण-काल में छात्रवृत्तियाँ प्रदान करने का प्रावधान हो।
5. प्रशिक्षित छात्रों अथवा शिक्षकों के रोजगार की समुचित व्यवस्था की जाय।
मुस्लिम शिक्षा (Muslim Education)
घोषणा पत्र में, भारत में मुसलमानों के अशिक्षित होने की समस्या व कम शिक्षा प्रसार पर गंभीरता से विचार किया गया तथा मुस्लिमों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। इससे सम्बन्धित निम्नलिखित घोषणायें की गई-
1. मुसलमान बच्चों की शिक्षा हेतु विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना की जायेगी।
2. मुस्लिम जनता में शिक्षा का प्रचार कर उन्हें विद्यालयों के प्रति आकर्षित किया जायेगा।
जन-सामान्य की शिक्षा (Education of Common People)
जन शिक्षा का प्रसार करने के उद्देश्य से वुड के घोषणा पत्र में अनेक गंभीर प्रयासों की संस्तुति की गई। घोषणा पत्र में अग्रलिखित घोषणायें की गई-
1. सभी स्तरों की शिक्षा हेतु विद्यालयों को स्थापना पर बल दिया गया।
2. निस्यन्दन सिद्धान्त को अस्वीकृत करके, शिक्षा सभी स्तर व वर्ग के व्यक्तियों हेतु सुलभ हो
3. प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों में वृद्धि।
4. गरीब छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जायेंगी।
5. जन शिक्षा के प्रसार हेतु व्यक्तिगत प्रयासों (देशी व मिशनरी प्रयासों) को प्रोत्साहन दिया जायेगा।
6. पाश्चात्य ज्ञान को, जन-जन तक पहुंचाने के लिये, भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जायेगा।
7. देश के दूरस्थ स्थानों व भेदभाव रहित शिक्षा के लिये, जन शिक्षा के सम्बन्ध में अधिकाधिक धन आवंटित करना।
स्त्री शिक्षा (Women Education)
भारतीयों के नैतिक व चारित्रिक विकास व भौतिक उन्नति के लिये, वुड के घोषणा पत्र में स्त्री शिक्षा को उत्तरदायी माना गया। घोषणा-पत्र में स्त्रियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये सहायता अनुदान (Grant-in-aid) की व्यवस्था की गई। स्त्री शिक्षा में उन्नति व विकास हेतु निम्नलिखित घोषणायें की गई-
1. बालिका विद्यालयों को विशेष अनुदान (सरकारी सहायता) दी जायेगी।
2. स्त्री शिक्षा में सहयोगी व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जायेगा।
छात्रवृत्तियों की व्यवस्था (Arrangement of Scholarships)
निर्धन छात्रों की शिक्षा हेतु घोषणा-पत्र में छात्रवृत्तियों की सहायता से जनशिक्षा के प्रसार पर बल दिया गया। योग्य व निर्धन छात्रों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिये बहुत-सी योजनाओं की संस्तुति की गई।
इस घोषणा-पत्र में छात्रवृत्तियों के माध्यम से जनशिक्षा, मुस्लिम शिक्षा, गरीबों की शिक्षा के प्रसार पर बल दिया गया।
विश्वविद्यालयी शिक्षा (University Education)
प्रारम्भिक रूप से शिक्षा में प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर ही ध्यान दिया गया, जबकि उच्च शिक्षा व शोध कार्य हेतु विश्वविद्यालय नहीं थे। अतः वुड के घोषणा पत्र में विश्वविद्यालयी शिक्षा के सम्बन्ध में निम्नलिखित घोषणायें की गई-
1. लन्दन विश्वविद्यालय की तर्ज पर अन्य विश्वविद्यालयों की स्थापना की संस्तुति की गई।
2. कॉलेजों को विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध कर उन्हें विश्वविद्यालय से ही मान्यता दी जाय।
3. विधि व तकनीकी जैसी अन्तर्विषयक शिक्षा का भी प्रावधान किया जाय।
4. भारत में उच्च शिक्षा व शोध को बढ़ावा दिया जाय।
5. समस्त विषयों के साथ ही विभिन्न भाषाओं जैसे- संस्कृत, अरबी व फारसी की शिक्षा हेतु भी प्रोफेसरों की नियुक्तियों की संस्तुति की गई।
6. इन विश्वविद्यालयों में चान्सलर, वाइस चान्सलर व अन्य अनुभवी प्राध्यापकों को मिलाकर एक सीनेट का गठन किया गया।
7. समस्त महाविद्यालयों को उत्तीर्णता का प्रमाण पत्र विश्वविद्यालय से ही प्राप्त होने का प्रावधान किया गया
वुड घोषणा पत्र के गुण (MERITS OF WOOD'S DESPATCH)
चार्ल्स बुड के घोषणा-पत्र ने वास्तव में भारतीय दिशाहीन शिक्षा व्यवस्था को एक सटीक दिशा प्रदान की। इस प्रकार वुड घोषणा-पत्र के गुण निम्नलिखित हैं-
1. आधुनिक भारतीय शिक्षा का स्तम्भ-
वुड का घोषणा-पत्र आधुनिक भारतीय शिक्षा व्यवस्था का आधार है, क्योंकि इस व्यवस्था में अनेक ऐसे प्रावधान हैं, जो आज भी आधुनिक शिक्षा में विद्यमान हैं। अतः इसे भारतीय शिक्षा का स्तम्भ कहना अतिश्योक्तिपूर्ण न होगा। रिच्चे के अनुसार "वुड का घोषणा-पत्र भारतीय शिक्षा का महा-अधिकार पत्र है।"
2. शिक्षा विभाग की स्थापना-
वुड के घोषणा-पत्र में जन शिक्षा विभाग की स्थापना को घोषणा की गई तथा इसकी सहायता से शैक्षिक विकास में महान् योगदान दिया।
3. शिक्षा का उत्तरदायित्व-
वुड के घोषणा-पत्र में पहली बार यह स्वीकार किया गया कि शिक्षा की व्यवस्था करना सरकार का कार्य है, क्योंकि बिना सरकारी सहायता के देश की शिक्षा प्रणाली का संचालन सुचारु रूप से नहीं हो सकता है।
4. छात्रवृत्तियों का प्रावधान इस घोषणा-
पत्र में निर्धन छात्रों की छात्रवृत्तियों पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया।
5. सहायता अनुदान प्रणाली इस घोषणा-
पत्र में सहायता अनुदान प्रदान करने की संस्तुति कर, साधनविहीन शैक्षिक संगठनों को सुचारु रूप से चलाने में सहयोग प्राप्त हुआ।
6. स्त्री शिक्षा व जन शिक्षा प्रसार-
इस पत्र में स्त्री शिक्षा व जन शिक्षा के विकास हेतु नवीन कदम उठाये गये व इन मुद्दों पर प्रभावी ढंग से विचार किया गया।
7. शिक्षा का संगठन मनोवैज्ञानिक स्तर पर
इस पत्र में पहली बार छात्रों की आयु के अनुरूष उनके मन व मस्तिष्क को ध्यान में रखते हुये उनकी मनोवैज्ञानिक भिन्नता के आधार पर प्राथमिक (शिशु), मिडिल (बाल), हाईस्कूल (किशोर) व उच्च (युवा) में संगठित किया गया।
8. शिक्षा की सम्पूर्णता पर विचार-
इस पत्र में उच्च शिक्षा व प्राथमिक अर्थात् सभी स्तरों के विकास तथा समस्त क्षेत्रों जैसे-शिक्षा का उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षक, छात्रा, स्त्री शिक्षा, जन शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा सभी पर सम्पूर्ण रूप से विचार किया गया।
9. पाश्चात्य व देशी भाषाओं का विकास-
इस पत्र में अंग्रेजी भाषा के साथ ही देशज व भारतीय भाषाओं के विकास पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया।
10. निस्यन्दन सिद्धान्त के विपरीत
इस घोषणा पत्र में मैकाले द्वारा घोषित निस्यन्दन सिद्धान्त के को नकारकर उसके विपरीत सभी वर्गों की शिक्षा के विकास की संस्तुति करके अत्यन्त साहसिक कार्य किया गया।
11. क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना-
इसमें आयु के अनुरूप ही क्रमानुसार विद्यालयों में कक्षा स्तरों पर ध्यान केन्द्रित किया गया।
12. छात्रों के नैतिक व चारित्रिक गुणों के विकास पर बल-
घोषणा पत्र में पहली बार ऐसी शिक्षा व्यवस्था की संस्तुति की गई, जिसके निश्चित उद्देश्य थे-मानसिक विकास, पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान का ज्ञान, जीवन स्तर का विकास, नैतिक व चारित्रिक विकास व रोजगारपरक शिक्षा तथा इन उद्देश्यों के द्वारा छात्रों के सर्वांगीण विकास पर बल दिया गया।
13. विश्वविद्यालयों की स्थापना-
कलकत्ता व बम्बई विश्वविद्यालय के अतिरिक्त अन्य विश्वविद्यालयों को स्थापना की संस्तुति की गई।
14. मुसलमानों की शिक्षा पर बल-
इस पत्र में मुसलमानों के लिये अतिरिक्त शैक्षिक प्रबन्ध किये गये।
15. व्यावसायिक शिक्षा पर बल-
इस घोषणा पत्र में आर्थिक उन्नति हेतु व्यावसायिक व रोजगारपरक शिक्षा की आवश्यकता को स्वीकार किया गया।
16. शिक्षक प्रशिक्षण व रोजगार-
इस घोषणा पत्र में शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु इंग्लैण्ड की तर्ज पर शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना की संस्तुति की गई तथा इस प्रशिक्षण द्वारा छात्रों को रोजगार प्रदान करने हेतु अनेक प्रावधान किये गये।
17. उच्च शिक्षा पर विशेष ध्यान- पहली बार उच्च शिक्षा को प्रभावी रूप प्रदान करने के लिये व सुगठित स्वरूप प्रदान करने के लिये, पृथक् संस्तुतियां की गईं।
वुड घोषणा पत्र के दोष (DEMERITS OF WOOD'S DESPATCH)
वुड घोषणा पत्र में निम्नलिखित दोष थे-
1. मैकाले की नीति का अप्रत्यक्ष रूप से अनुसरण-
इस घोषणा-पत्र में पाश्चात्य शिक्षा के विकास के साथ देशज भाषाओं व ज्ञान को भी स्थान दिया गया किन्तु प्राथमिकता पाश्चात्य ज्ञान को ही दी गई। अतः अप्रत्यक्ष रूप से मैकाले की ही नीति का अनुसरण किया गया।
2. लाल फीताशाही का आरम्भ-
शिक्षा में एक विभाग की स्थापना व कर्मचारियों की नियुक्ति से इस क्षेत्र में लाल फीताशाही का श्रीगणेश हो गया।
3. कम्पनी का एकाधिकार-
इस पत्र में शिक्षा के कार्य व विकास हेतु विभाग की स्थापना की बात तो कही गई, किन्तु विभाग के उच्च पदों पर अंग्रेज व्यक्ति ही नियुक्त थे तथा शिक्षा का सम्पूर्ण दायित्व व अधिकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी के पास ही रखा गया।
4. अनुदान की कठोर शर्तें-
सहायता अनुदान को लागू तो अवश्य कर दिया गया किन्तु इसकी शर्तें इतनी कठोर थीं कि प्राच्य विद्यालय इनका लाभ कम ही उठा सके।
5. दोषपूर्ण उद्देश्य इस घोषणा-
पत्र में वैसे तो पांच उद्देश्यों का वर्णन किया गया किन्तु वास्तविक रूप से इस प्रकार के नियम व शर्तें रखी गईं, जो यूरोपीय शिक्षा के प्रचार व प्रसार में सहायक थीं।
6. उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी-
शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर माध्यम अंग्रेजी व भारतीय दोनों भाषाओं को रखा गया। किन्तु उच्च स्तर पर माध्यम केवल अंग्रेजी को ही अनिवार्य कर दिया गया।
7. धार्मिक असहिष्णुता पर बल-
प्रत्येक विद्यालय के पुस्तकालय में बाइबिल की प्रतियाँ अनिवार्य रूप से रखने का आदेश दिया गया तथा ईसाई मिशनरियों को अपने विद्यालयों में धर्म की शिक्षा प्रदान करने की छूट दे दी गई।
8. नौकरियों में भेदभाव-
इस घोषणा-पत्र में शिक्षित व्यक्तियों को रोजगार देने की बात कही गई, किन्तु इसमें वरीयता मुख्य रूप से अंग्रेजी जानने वाले व्यक्तियों को ही दी गई।
वुड घोषणा पत्र का प्रभाव व मूल्यांकन (EVALUATION AND EFFECT OF WOOD'S DESPATCH)
समस्त गुण व दोषों पर विचार करने के उपरान्त यह स्पष्ट है कि वास्तव में वुड के घोषणा-पत्र में वास्तविक रूप से अनेक दोष विद्यमान थे, किन्तु फिर भी इस पत्र ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर अनेक तात्कालिक व दीर्घकालिक प्रभाव डाले-
1. इस नीति के प्रभाव से सन् 1856 तक सभी प्रान्तों में शिक्षा विभागों की स्थापना हो गई।
2. सभी प्रान्तों में सहायता अनुदान प्रणाली का शुभारम्भ हो गया।
3. सभी स्तर के विद्यालयों की स्थापना का आरंभ हो गया।
4. विश्वविद्यालयो शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक रूप से विकास हुआ।
अतः वुड का घोषणा-पत्र वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधार है। इस घोषणा-पत्र में प्रत्येक स्तर व दिशा पर विचार किया गया तथा लगभग शायद ही कोई पक्ष ऐसा हो, जिसे छोड़ा गया हो बल्कि इसकी महत्ता को स्पष्ट करते हुये जेम्स महोदय ने इसे शिक्षा 'भारतीय शिक्षा का महाधिकार पत्र' कहा है किन्तु वास्तविकता इन साक्ष्यों से परे है, क्योंकि अंग्रेजों ने अपनी समझदारी एवं कूटनीति से इस पत्र का निर्माण किया।
उन्होंने भारतीयों को आकर्षित करने हेतु अनेक संस्तुतियां कीं। किन्तु इन सभी संस्तुतियों में वास्तविक लाभ अंग्रेजों को ही प्राप्त हुआ। प्रत्येक नियम इतना जटिल था जो भारतीयों की समझ के बाहर था। अतः घोषणा-पत्र पूर्णतया एकपक्षीय था। किन्तु फिर भी अन्त में यह कहा जा सकता है कि वुड का घोषणा-पत्र आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधार स्तम्भ है, अतः इसके महत्त्व को नकारना उपयुक्त नहीं होगा।
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