पर्यावरण (Environment) - अर्थ, परिभाषा और प्रकृति

पर्यावरण (Environment)

पर्यावरण का अर्थ ( Meaning of Environment )

पर्यावरण शब्द दो शब्दों परि आवरण से मिलकर बना है। यहाँ 'परि' शब्द का अर्थ है 'चारो और' तथा 'आवरण' शब्द का अर्थ है 'आवृत्त' या 'ढ़का हुआ'। इस प्रकार हम कह सकते है कि पर्यावरण का अभिप्राय उन तथ्यों से हैं जो हमें चारो ओर से ढके या घेरे हुए हैं।

दूसरे शब्दों में पर्यावरण का तात्पर्य हमारे चारो ओर के उस वातावरण एवं परिवेश से है जिससे हम घिरे हैं या पर्यावरण वह सब कुछ है जो जीव को चारो ओर से घेरे हुए है और उसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है।

पर्यावरण शब्द अंग्रेजी भाषा के 'एनवायरमेण्ट' (Environment) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जिसकी उत्पत्ति फ्रांसीसी भाषा के 'एनविरोनर' (Environer) शब्द से हुई है। जिसका अर्थ घेरना या ढकना (To surround) होता है। कुछ विचारक 'एनवायमेण्ट (Environment) की अपेक्षा (Habitat) शब्द का प्रयोग करते हैं जिसे स्थानीय पर्यावरण के लिए आंग्ल भाषा में ' आवास स्थल' के लिए प्रयोग किया जाता है। हैबीटेट (Habitat) शब्द लैटिन भाषा के हैबिटेयर (Habitare) शब्द से बना है जिसका अर्थ है एक सुनिश्चित स्थान।

अर्थात एक ऐसी सुनिश्चित स्थान जिसमें जीव उस स्थान की मैतिक एवं जैविक दशाओं में समायोजन कर रहते हैं। कुछ विद्वान एनवायरमेण्ट की अपेक्षा (Million) शब्द का प्रयोग भी करते हैं जिसका अर्थ वातावरण या स्थिति से लगाया जाता है जिसका तात्पर्य परिवृत्ति (Total set of surrounding) अर्थात होता है।

पर्यावरण की परिभाषा (Definition of Environment)

1. एच.जे. हर्सकोविट्स के अनुसार "पर्यावरण उन सब बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है, जो प्राणों या अवयवी जीवन और विकास पर प्रभाव डालता है।"

2. जे. एस. रॉस के अनुसार : "पर्यावरण एक बाह्य शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।"

3. गिस्वर्ट के अनुसार "पर्यावरण वह सब कुछ है जो किसी जीव या वस्तु को चारों ओर से
घेरे रहता है और उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करताह।"

4. जिन्सवर्ग के अनुसार "जो जैव स्वरूप या वस्तु को निकट से घेरे रहते हैं एवं उन्हें प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है, पर्यावरण कहलाता है।"

5. एच. फिटिंग के अनुसार "जोवों की परिस्थितिकि (Ecological) कारकों का योग पर्यावरण है।"

6. एनैक स्नास्टॉसी के अनुसार "पर्यावरण वह प्रत्येक वस्तु है जो जिन्स के अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है।"

7. विश्व शब्द कोश के अनुसार "पर्यावरण के अन्तर्गत उन सभी दशाओं, संगठन एवं प्रभावों को शामिल किया जाता है जो किसी जौव अथवा प्रजाति के उद्भव, विकास एवं मृत्यु को प्रभावित करती हैं।”

8. मैकाइवर के अनुसार, " भूपुष्ठ तथा उसकी समस्त प्राकृतिक शक्तियाँ, दशाएँ जो पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।”

9. ब्रिटेनिका इन्साइक्लोपीडिया के अनुसार "पर्यावरण भौतिक रसायनिक तथा जीतिव क्रियायों एवं तत्वों को जटिल विश्लेषण है यह किसी जीव अथवा परिस्थिकीय समुदाय पर ऐसे क्रिया करता है ताकि उसके रूप तथा जीवितता का निर्धारण कर सके।"

Conclusion 
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट होता है कि मनुष्य तथा अन्य प्राणी जिस सम्पूर्ण भौतिक घेरे में अपनी जीवन व्यतीत करते हैं, वह उसके प्रभाव से ही स्वभाव, व्यवहार, आदतों तथा क्रियायों का संचालन प्राप्त करते हैं। अतः कहा जा सकता है कि पर्यावरण में वे सभी भौतिक, अभौतिक, प्राकृतिक एवं मानव निर्मित वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो प्राणी को चोरो ओर से घेरे हुए हैं और उसे प्रभावित करता है।

पर्यावरण की प्रकृति (Nature of Environment)

प्राचीन भारतीय समाज के सूत्र धारो ने ऐसी संस्कृति का विकास किया, जिनमें मुनष्य को प्रत्यक्षः पर्यावरण से जोड़ा गया। चूँकि पर्यावरण एक गतिमान प्राकृतिक सत्ता है। वह स्थान और समय के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है। इसलिए भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए यह व्यवस्था लागू है। मनुष्य प्रकृति का पुत्र माना जाता है। (Man is the son of Environment) वह प्रकृति के आँगन में ही विचरण कर बड़ा होता है।

पर्यावरण का अध्ययन भूगोल और परिस्थितिकी तंत्र का मूल विषय रहा है। वनस्पति विज्ञान, मृदा विज्ञान, मानव भूगोल, मानव परिस्थिर्तिक शास्त्र में पर्यावरण अध्ययन विशिष्टता के साथ विगत समय में किया गया है। किन्तु आधुनिक पर्यावरण नगरीर, औद्योगिकी और अतिसधन क्षेत्रों में एक नया आयाम प्रस्तुत कर लोगों को प्रभावित कर रहा है। इसलिए आधुनिक समय में पर्यावरणीय अध्ययन की आवश्यकाता का अनुभव किया जाने लगा।

प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन मनुष्य अपनी आवश्यकता और स्वार्थपरकता के कारण करने लगा, जिससे पर्यावरण की प्राकृतिक गुणवत्ता में ह्रास होना स्वाभाविक था। इससे परिस्थितिकी तंत्र में बाधा के साथ जैव विविधता को भी क्षति पहुँची है। इन सभी बातों को दृष्टिगत रखते हुए पर्यावरण अध्ययन एक नए विषय के रूप में उभर कर सामने आया।

आज पर्यावरण अध्ययन को लगभग सभी शास्त्रों द्वारा महत्व दिया जा रहा है और लगभग सभी शास्त्रों में पर्यावरण को एक शाखा या प्रश्नपत्र के रूप में पढ़ाया जाने लगा है। जैसे - भूगोल विषय में पर्यावरणीय भूगोल, समाजशास्त्र विषय में पर्यावरणीय समाजशास्त्र रसायनशास्त्र में पर्यावरणीय रसायन, नीतिशास्त्र में पर्यावरणीय नीति शास्त्र, अर्थशास्त्र में पर्यावरणीय अर्थशास्त्र, विधि में पर्यावरणीय नियम के रूपों में पर्यावरण का अध्ययन होता है।

इन विषयों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि पर्यावरण का अध्ययन व्यापक और विस्तीण है। इसलिए पर्यावरण अध्ययनकर्ता को पर्यावरण का ज्ञान होने के साथ साथ इन सभी विषयों का ज्ञान होना अजिआवश्यक है। पर्यावरण के अध्ययनकर्ता को भूगोल, समाजशास्त्र, नीतिशास्त्र, रसायनशास्त्र, कृषि विज्ञान, अर्थशास्त्र, परिस्थितिकी शास्त्र आदि विषयों का ज्ञान होना चाहिए।

क्योंकि पर्यावरण के अध्ययन की प्रकृति अत्यंत व्यापक और बहुविषयक है। अतः कहा जा सकता है कि पर्यावरणीय अध्ययन विभिन्न विषयों के साथ अध्ययन कर उपस्थिति समस्याओं का वैज्ञानिक विवेचना करता है।

उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर पर्यावरणीय अध्ययन की प्रकृति की पाँच विशेषताएँ सामने आती हैं- 

1. पर्यावरणीय अध्ययन विषय-वस्तु का अध्ययन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से होता है, जिसमें वर्तमान को लेकर दृष्टिकोण विकसित किए जाते हैं।
2. पर्यावरणीय अध्ययन की विषय वस्तु और प्रभाव दोनो ही गतिशील होते हैं।
3. पर्यावणीय अध्ययन में प्रभावों की व्याख्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इस प्रकार की जाती है कि वह वर्णनात्मक और व्याख्यात्मक हो अर्थात इसकी वैज्ञानिक व्याख्या क्यों और कारण को ध्यान में रखकर किया जाता है।
4. पर्यावरणीय अध्ययन अन्तरानुशासनिक अथवा बहुविषयक होता है।
5. पर्यावरणीय अध्ययन में प्रभावी स्थान और संबंन्धित क्षेत्र से आमने-सामने (प्रत्यक्ष) संबंध रखा जाता है।

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