Kinds of Environment: पर्यावरण के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।

Kinds of Environment: पर्यावरण के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।

पर्यावरण के प्रकार (Kinds of Environment):- पर्यावरण का अभिप्राय हमारे चारों ओर पाए जाने वाले सामाजिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं आर्थिक वातावरण से है जो हमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व/पर्यावरण पर ही निर्भर होता है। इस प्रकार पर्यावरण के तीनों पक्ष स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आते हैं - भौगोलिक/पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण और सांस्कृतिक पर्यावरण। 'लैडिंस' ने पर्यावरण को प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के रूप में विभाजित किया है। 

डॉ० रघुवंशी ने आवास के आधार पर तीन तरह के पर्यावरण अलवण जलीय पर्यावरण, समुद्री पर्यावरण एवं स्थलीय पर्यावरण बताएँ हैं। जान राव ने पर्यावरण के पाँच प्रकारों का विवरण दिया है जो मनुष्य और उसके परिवेश से जुड़ी समस्त जटिलताओं की ओर उन्मुख हैं।

ये पाँच प्रकार है- भौतिक पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण, आर्थिक पर्यावरण, सौन्दर्यत्मक पर्यावरण, सांस्कृतिक पर्यावरण। डॉ० चन्द्रभूषण पाठक ने पर्यावरण को सात क्षेत्रों में विभाजित किया है। भौतिक पर्यावरण, सामाजिक पर्यावरण, मनोवैज्ञानिक पर्यावरण, सांस्कृतिक पर्यावरण, सौन्दर्यबोधात्मक पर्यावरण, शैक्षिक पर्यावरण और आर्थिक पर्यावरण।

पर्यावरण के प्रकार में विद्वानों का मत

लैंडस और अधिकतर विद्वान
→भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण 
→सामाजिक पर्यावरण
→ सांस्कृतिक पर्यावरण

डॉ. रघुवंशी अलवण
जलीय पर्यावरण
समुद्री पर्यावरण
स्थलीय पर्यावरण

जान रॉव
→ भौतिक पर्यावरण
→ सामाजिक पर्यावरण
→ सौन्दर्यात्मक पर्यावरण
→ सांस्कृतिक पर्यावरण

चन्द्रभूषण पाठक
भौतिक पर्यावरण
सामाजिक पर्यावरण
सांस्कृतिक पर्यावरण
सैन्दर्यात्मक पर्यावरण
→ आर्थिक पर्यावरण

पर्यावरण के इस विभाजन में अधिकतर विद्वान मुख्य रूप से तीन प्रकार प्राकृतिक या भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पर्यावरण को मान्यता देते हैं। 

कुछ विद्वान प्रभाव की दृष्टि से पर्यावरण के दो रूप मानते हैं- अनुकूल पर्यावरण और प्रतिकूल पर्यावरण। अनुकूल पर्यावरण किसी प्राणी के अस्तित्व की रक्षा और विकास में सहायक होता है, जबकि प्रतिकूल पर्यावरण उसके अस्तित्व की रक्षा और विकास में बाधक होता है।

1. प्राकृतिक या भौगोलिक पर्यावरण :-

प्राकृतिक या भौगोकि या भौतिक पर्यावरण से तात्पर्य उन समस्त भौतिक शक्तियों, प्रक्रियायों या तत्वों से है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव पर पड़ता है। दूसरे शब्दों में प्राकृतिक पर्यावरण का तात्पर्य उन सभी प्राकृतिक दशाओं और घटनाओं से है जो मानव द्वारा उत्पन्न नहीं हैं जो मनुष्य को पूर्णरूप से प्रकृति से प्राप्त है। इनमें भौतिक शक्तियाँ, प्रक्रियायें और तत्व सम्मिलित होते हैं -

(क) भौतिक शक्तियाँ:-

भौतिक शक्तियों सौर ताव, पृथ्वी की दैनिक और वार्षिक परिभ्रमण की गति, ज्वालामुखी क्रियायें, गुरूत्वाकर्षण की शक्ति आदि आती हैं। इन शक्तियों द्वारा पृथ्वी पर अनेक प्रकार की प्रतिक्रियायें की जाती हैं। इन सबका मानव पर प्रभाव पड़ता है।

(ख) प्रक्रियायें :-

इनमें भूमि का अपक्षय, अवसादीकरण, तापविकिरण एवं चालन, ताप संवहन, वायु और जल में गतियों उत्पन्न होना आदि शामिल हैं। इन प्रक्रियायों द्वारा भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण में अनेक क्रियायें उत्पन्न की जाती हैं जो मानव के क्रिया-कलापों पर अपना प्रभाव डालती हैं।

(ग) तत्त्व :-

इनमें भौतिक तत्त्व जैसे मौसम, जलवायु, स्थलाकृति, मिट्टियाँ और चट्टानों, खनिज, धरातलीय जल, महासागर आदि तथा जैविक तत्त्व जैसे वनस्पति, जीव-जन्तु, अणुजीव आदि आते हैं।

उपर्युक्त सभी मिलकर मनुष्य के प्राकृतिक या भौतिक परविश का निर्माण करते हैं। ये सभी मनुष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं। इन्हें ही प्राकृतिक या भौतिक पर्यावरण कहा जाता है। इन सबका अस्तित्व मनुष्य के कार्यों से स्वतंत्र है। इनका सृजन न तो व्यक्ति द्वारा किया जाता है और न ही नियन्त्रित किया जाता है।

ये सब प्रकृति की देन हैं। साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि पृथ्वी का धरातल, आकाश, बायु, पर्वत बन, वनस्पतियाँ, पृथ्वी के गर्भ में विद्यमान खनिज पदार्थ, प्राकृतिक जल संसाधन प्राकृतिक या भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत ही आते हैं।

2. सामाजिक पर्यावरण: 

सभी प्राणिर्थों में मनुष्य सर्वाधिक बुद्धिमान इसलिए माना जाता है क्योंकि वह सामाजिक और विवेकशील प्राणी है। समाज में रहकर वह अपने विभिन्न सामाजिक संगठनों तथा समूहों की रचना करता है। ये समूह या संगठन मानवीय समूह से निर्मित होते हैं तथा मनुष्य को जन्म से मृत्यु तक प्रभावित करते रहते हैं। मनुष्य का यह समूह या संगठन पर्यावरणीय मानवीय संबंध से मिलकर बना होता है।

इसमें अनेक प्रकार के संबंध जैसे परिवार में पिता-पुत्र, पति-पत्नी, सास-बहू, पड़ौसी-पड़ोसी संबंध, राजनैतिक दलों एवे राष्ट्रों के संबंध, जाति, वर्ग, धर्म ये सभी सामाजिक पर्यावरण के आवश्यक अंग माने जाते हैं। इन अंगों के मध्य सम्बंध स्थापित कर मनुष्य परिवार तथा समाज के बीच अन्तक्रिया करता है और इनके आधार पर एक सामाजिक परिवेश बनाता है। यह सामाजिक परिवेश ही सामाजिक पर्यावरण का निर्माण करता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुष्य जिस प्रकार के सामाजिक परिवेश में रहकर सामाजिक नियमों, रीति-रिवाजों, समूहों, संस्थाओं, संगठनों के साथ सम्पर्क स्थापित करता है। वह सामाजिक पर्यावरण को ही देन है। यही नहीं यदि व्यक्ति पर सामाजिक पर्यावरण का प्रभाव है तो व्यक्ति भी सामाजिक पर्यावरण की व्यवस्था को प्रभावित करता है। उसमें समय-समय पर परिवर्तन और परिभार्जन करता रहता है।

इस तरह व्यक्ति और सामाजिक पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हैं, जिससे जीवन के कार्य-कलापों के सम्पादन व व्यक्तित्व के निर्धारण की आधार भूमि तैयार होती है तथा उसके पालन व अधिग्रहण द्वारा व्यक्ति व्यवहार स्तर पर आचरण करता है। अतः कहा जा सकता है कि सामाजिक पर्यावरण मनुष्य द्वारा निर्मित वह बातावरण है, जिसमें मनुष्य के सामाजिक संबंधों, विविध संगठनों एवं संसीओं के मध्य उसकी अन्तर्क्रियार्यों एवं संगठनों द्वारा निर्धारित सामाजिक नियमों एवं सांस्कृतिक पक्ष की समग्रता का बोध होता है।

सामाजिक पर्यावरण पर सृष्टि एवं सभ्यता का प्रभाव पड़ता है क्योंकि जैसे सभ्यता होगी वैसी ही रीति-रिवाज, परम्परार्ये, मान्यताएँ, सामाजिक समूह, सामाजिक ढाँचा, सामाजिक नीति होगी और उसी के अनुरूप व्याक्ति का सामाजिक पर्यावरण निर्मित होगा। साधारण शब्दों में मानवीय संबंधों से निर्मित समूह, संगठन, समुदाय, समाज, समिति और इसी प्रकार की अन्य संस्थाएँ सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।

3. सांस्कृतिक पर्यावरण: 

प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण की भाँति सांस्कृतिक पर्यावरण भी मनुष्य के विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। संस्कृति एक ऐसी धारणा है जिसमें रहकर मनुष्य में सामाजिकता का विकास होता है। संस्कृति के अन्तर्गत ये सभी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष वस्तुएँ आती है, जिनका निर्माण मनुष्य द्वारा हुआ है। सांस्कृतिक पर्यावरण एक व्यक्ति को अन्य व्यक्तियो से, एक समाज को दूसरे समाज से तथा एक समूह को दूसरे समूह से पृथक करता है।

यह व्यक्ति के जीवन के विविध पक्षों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सांस्कृतिक पर्यावरण का तात्पर्य मनुष्य द्वारा निर्मित या प्रभावित उन सभी विचारों विश्वासो, नियमों एवं भौतिक वस्तु की सम्पूर्णता से है जो उसके जीवन को चारो ओर से प्रभावित करती हैं।

सांस्कृतिक पर्यावरण के सन्दर्भ में 'लैडिंस' का विचार है कि इसके अन्तर्गत धर्म, नैतिकता, प्रथाएँ, लोकाचार, कानून, प्रौद्योगिकी तथा व्यवहार के प्रतिमान आदि आते है। जिन्हें मनुष्य अपने अनुभवों द्वारा एवं सामाजिक सम्पर्क के कारण सीखता है और उनके अनुरूप अपने को ढालने का प्रयास करता है।

डॉ० रघुवंशी ने पर्यावरण की सम्पूर्ण संरचना के केन्द्र में मानव को मानते हुए सांस्कृतिक पर्यावरण के आधार पर पर्यावरण के विभाजन निम्न स्वरूप प्रस्तुत किया है-
सांस्कृतिक पर्यावरण में वे कार्य आते हैं जिनके द्वारा मानव और मानव समूह वातावरण से सामंजस्य स्थापित करते है। सांस्कृतिक पर्यावरण में व्हाइट और रैनर ने जीवन के अन्तर्गत निम्नांकित प्रतिरूपों को स्थान प्रदान किया है :-

(अ) सामाजिक नियंत्रण के प्रतिरूप:-

इसके अन्तर्गत लोकरीतियों, मान्ताएँ एवं आदर्श, रोति-रिवाज, संसाएँ- सरकार, विवाह प्रथा, विद्यालय, प्रेस आदि आते हैं।

(ब) क्रिया संबंधी प्रतिरूप :-

इसके अन्तर्गत मानव के व्यवसाय, उद्योग, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक प्रयास, राजनैतिक क्रियाकलाप आदि आते हैं।

(स) सांस्कृतिक भूदृश्य :-

इसके अन्तर्गत भूमि और उसका विभाजन भूमि के विभिन्न दृश्य-फसले, पशुपालन, नगरीय संस्थाएँ, अनगरीय संस्थाएँ, कृषि संबंधी व्यवस्थाएँ, ग्रामीण बस्तियाँ, खादानें, कारखाने, सड़कों तथा रेल मार्गों के प्रतिरूप, संरक्षित स्थान (वन, उद्यान, श्मशानद्व मनोरंजन, स्थल, कब्रिस्तान) सैन्य किले, बेकार भूमि क्षेत्र आदि आते हैं।

इस प्रकार हम कह सकते है कि सांस्कृतिक पर्यावरण का तात्पर्य मनुष्य द्वारा निर्मित उन सभी विचारों, विश्वासों, नियमों एवं भौतिक वस्तुओं की सम्पूर्णता से है जो उसके जीवन को चारों ओर से प्रभावित करती हैं। मनुष्य ने पीढ़ी दी पीढ़ी बहुत से विकसित विचारों, कार्य के ढंगो, नियमों और वस्तुओं को ढूंढ निकाला है, जिसके विकास के साथ-साथ मनुष्यकृत पर्यावरण विकसित होता गया।

इसे ही सांस्कृतिक पर्यावरण कहा गया है। इसक अन्तर्गत समस्त उपादान कर्म, नैतिकता, प्रथाएँ, लोकाचार, कानून, व्यवहार तथा प्रतिमान आदि आते हैं।

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