Biotic components: जैविक संघटक के बारे में चर्चा कीजिए
जैविक संघटक (Biotic components) जीवमण्डल/परिस्थितिक तंत्र/पर्यावरण के जैविक या कार्बनिक संघटक का निर्माण तीन उपतंत्रों द्वारा होता है-
1. पादप तंत्र (Plant system)
2. जन्तु तंत्र (Animal system)
3. सूक्ष्म जीव तंत्र (Micro-organism system)
इन तीनों उपतंत्रों में से पादप सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि मात्र पौधे ही जैविक या कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते हैं जिसका प्रयोग पौधे स्वयं करते हैं साथ ही साथ मानव सहित जन्तु तथा सूक्ष्म जीव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं पौधों पर ही निर्भर करते हैं (अपने भरण-पोषण तथा जोवन-निर्वाह के लिए) पौधे जीवमण्डल के विभिन्न संघटकों में जैविक पदार्थों तथा पोषक तत्वों के ममन, संचरण, चक्रण तथा पुनर्चक्रण को संभव बनाते हैं।
पादप तंत्र (Plant system):
पौधों के सामाजिक समूह को पादप समुदाय कहते हैं तथा पौधे इस समुदाय की आधारभूत मौलिक इकाई होते हैं। पौधे किसी भी स्थान पर विभिन्न रूपों में पाये जाते हैं यथा वनभूमि, वन, बांगर क्षेत्र या घास क्षेत्र, दलदल, घास मैदान आदि। पौधों के इन विभिन्न रूपों को सम्मिलित रूप से वनस्पति या वनास्पतिक आवरण कहते हैं।
दूसरे शब्दों में किसी क्षेत्र या प्रदेश की वनस्पति की रचना उस क्षेत्र की विभिन्न जातियों के पौधों के समूह या एक ही जाति के विभिन्न पौधों के समूहों द्वारा होती है। ज्ञातव्य है कि पौधों की जातियाँ पारिस्थितिकीय रूप से एक दूसरे से संबंधित होती है। इस तरह पौधों के विभिन्न समूह अपनी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता तथा सहनशीलता के गुर्णो के कारण एक ही आवास में रहने के लिए समर्थ होते हैं।
स्पष्ट है कि पादप समुदाय किसी क्षेत्र या प्रदेश की परिस्थितिक दशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। पर्यावरण के जैविक एवं भौतिक कारकों की पारस्परिक क्रिया के संबंधों पर ही पौधों की जाति, उसी संरचना तथा वृद्धि निर्भर करती है, अतः पौधों की इन विशेषताओं के आधार पर उनकों (पौधों को) प्रभावित करने वाली कारकों को पारस्परिक क्रिया के प्रारूप का बोध हो जाता है।
अजैविक पर्यावरणीय कारकों में मृदा तथा जलवायु का पौधों की जाति, संरचना एवं वृद्धि पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। साथ ही साथ पौधे भी अपने आवास क्षेत्र की मृदा के गुर्णो तथा जलवायु की दशाओं को प्रभावित तथा निर्धारित करते हैं। स्पष्ट है कि पादप समुदाय अपने आवास क्षेत्र में भूमि को उत्पादकता को निर्धारित करते हैं।
पौधे प्राथमिक उत्पादक (Primary Producers) होते हैं। इस तरह पौधों को स्वपोषित भी कहा जाता है। पादप संघटक के अध्ययन के अन्तर्गत निम्न को सम्मिलित किया जाता है-
1. पौधों को वर्गीकरण
2. पादप जगत के प्रमुख विभाजन या वर्ग
3. पादप तंत्र, पौधे तथा उनका पर्यावरण
4. पादप समुदाय (पादप)
5. पौधों का उद्भवन तथा
6. पौधों का वितरण, विसरण एवं विलोप
जन्तु तंत्र (Animal System)
कार्यात्मक आधार पर जीवमण्डलोय परिस्थितिक तंत्र को प्रमुख भार्गो में विभक्त करते हैं-
1. स्पपोषित संघटक (Autotrophic Components)
2. परपोषित संघटक (Heterotrophic)
स्वपोषित संघटकों में सभी प्रकार के हरे पौधे आते है। परपोषित संघटकों के अन्तर्गत उन जन्तुओं को सम्मिलित करते हैं जो अपने आहार के लिए प्राथमिक उत्पादक हरे पौधों पर निर्भर करते है। परपोषित संघटकों का वर्णन परिस्थितिकी तंत्र अध्याय में किया गया है।
सूक्ष्म जीव तंत्र (Micro-Organism system)
सूक्ष्म जीवों को वियोजक भी कहा जाता है क्योंकि ये मृत पौधों, जन्तुओं तथा जैविक पदार्थों को विभिन्न रूपों में सड़ा गला कर वियोजित करते हैं। ये सूक्ष्म जीव जैविक पदार्थों के वियोजन के समय अपना आहार भी ग्रहण करते हैं, साथ ही साथ ये जटिल जैविक पदार्थों को वियोजित करके अलग करते हैं तथा उन्हें सरल बना देते हैं ताकि स्वपोषित हरे पौधे इन पदार्थों का पुन: उपयोग कर सके। सूक्ष्म जीवों के अन्तर्गत कई प्रकार के सूक्ष्म वैक्टीरिया तथा कवक को सम्मिलित किया जाता है।
जीवमण्डल परिस्थितिक तंत्र में जन्तुओं तथा सूक्ष्म जीवों की संख्या असीमित एवं अनन्त है। यद्यपि जौवमण्डल के सभी जन्तुओं का अभिनिर्धारण तथा नामाकरण नहीं किया जा सकता है तथापि अब तक अभिनिर्धारित जंतुओं को सात क्रमिक बर्गों (उच्च क्रम के निम्न क्रम की ओर) में विभाजित किया गया है-
1. जन्तु जगत, 2. संघ, 3. वर्ग, 4. कोटि, 5. परिवार, 6. वंश, 7. जाति
जलमण्डल, स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल अजैविक संघटक के महत्वपूर्ण अंग हैं जिनके मध्य त्रिपुटी संबंध है। इन तीनों के संबंधात्मक स्वरूप का प्रभाव जैविक संघटक पर पड़ता है जिससे उसका अस्तित्व विद्यमान है। इसी प्रकार जैविक और अजैविक संघटकों के पारस्परिक संबंधात्मक स्वरूप से जीवमण्डल का सृजन होता है। जीवमण्डल एक विशाल परिस्थितिक तंत्र बन जाता है। जिसमें अन्यान्य विविधता पायी जाती है।
समानता के आधार पर इसे अनेक उप-परिस्थितिकी तंत्रों में विभक्त किया जाता है। उप-परिस्थितिक तंत्र भी एक ठोस ईकाई नहीं है बल्कि इसमें भी भिन्नता होती है जिस आधार पर स्थानीय परिस्थितिक तंत्र होती है जिस आधार पर स्थानीय परिस्थितिक तंत्र को सरलता से पृथक किया जा सकता है। स्पष्ट है कि जीवमण्डल का स्वरूप नितान्त जटिल है।
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