संसाधन संरक्षण का अर्थ एवं परिभाषा देते हुए, उसके नष्ट होने के कारण, संरक्षण की समस्या, संसाधन संरक्षण के लिए कार्य और उसके उपयोग करने के तरीकों की क्रमवार व्याख्या कीजिए।
संसाधन संरक्षण का अर्थ और परिभाषा
संसाधन संरक्षण से आशय उपलब्ध संसाधनों का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करना है। इस लाभ की प्राप्ति के लिए कुशल प्रबन्धन की आवश्यकता होती है क्योंकि अगर कुशल प्रबन्धन नहीं होगा तो उपस्थित संसाधन का प्रयोग लम्बे समय तक नहीं हो सकता। इसलिए ऐसा प्रबन्ध होना चाहिए जिससे उपस्थित संसाधनों का प्रयोग दीर्घकाल तक करके लोगों के आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। एत्नी महोदय के अनुसार "संरक्षण वर्तमान पीढ़ी का भावी पीढ़ी के लिए त्याग है।"
प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के बारे में एली महोदय ने जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है वह सामाजिक भावना को प्रकट करता है। जिसमें उन्होंने वर्तमान पीढ़ी की भावी पीढ़ी के प्रति कर्त्तव्य बोध कराया है लेकिन इनकी इस परिभाषा से संरक्षण का सही रूप स्पष्ट नहीं होता।
एल.सी.ग्रे के अनुसार "संसाधन संरक्षण से तात्पर्य वर्तमान न भविष्य के बीच किसी संसाधन के उपयोग में लाने का संघर्ष है।
डॉ मैकनॉल के अनुसार "अच्छे संरक्षण का आशय किसी संसाधन का ऐसा उपयोग है, जिससे मानव जाति की आवश्यकताओं की पूर्ति सर्वोत्तम ढंग से हो सके।" लेकिन इस परिभाषा में केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल दिया गया है, भविष्य के लिए कोई संकेत नहीं दिया गया है।
उपर्युक्त विद्वानों के कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि संसाधन का उपयोग भावी पीढ़ी को ध्यान में रखकर करना ही संरक्षण है अर्थात् प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस प्रकार किया जाय कि वर्तमान पीढ़ी को आवश्यकताएँ पूरी होने के साथ-साथ उनकों भावी पीढ़ी के उपयोग के लिए संरक्षित किया जा सके।
प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के बारे में बैन हैज ने एकदम उपयुक्त बाते कहाँ हैं उनके अनुसार "संरक्षण विभिन्न संसाधनों का अधिकाधिक समय तक अधिक से अधिक मनुष्यों द्वारा अनुकूलन, आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुचित उपयोग हो।"
वैन हैज को यह परिभाषा इस बात की ओर संकेत करती है कि संसाधनों का उपयोग इस प्रकार से हो कि कम संसाधन भी अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। ऐसा कार्य करके ही संसाधनों को दीधकाल तक संरक्षित रखा जा सकता है। अगर देखा जाय तो संसाधन संरक्षण की उपयुक्त विवेचना से निम्नलिखित बाते उभकर सामने आती हैं -
1. संसाधनों का आवश्यतानुसार ही उपयोग किया जाय, जिससे वे अधिक दिनों तक रह सकें अर्थात् बचत की भावना का विकास किया जाय।
2. संसाधनों का अपव्यय और दुरूपयोग रोकने का प्रयास किया जाय।
3. इन संसाधन का उपयोग बुद्धि और विवेक से किया जाय।
4. इन्हें प्रदूषित होने से बचाया जाय, ताकि मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक रहे।
5. प्राकृतिक संसाधनों को आय को स्रोत बनाने से बचा जाये।
प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने के कारण (Threats to Natural Resources)
अगर हम किसी भी बस्तु अनुचित प्रयोग करेंगे तो निश्चित रूप से उसको गुणबत्ता में कमी आएगी और जो संसाधन है उनके कम होने और नष्ट होने का खतरा बना रहता है। इनमें जिन क्रियाकलापों से संसाधनों के नष्ट होने का खतरा रहता है वह निम्नलिखित हैं :-
1. कृषि फसलों का बिना किसी योजना के उत्पादन करना।
2. जल का अत्यधिक प्रयोग और दुरूपयोग करना।
3. बहते पानी से खेतों की उपजाऊ मिट्टी बह जाने देना।
4. अधिक उत्पादन के लिए रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना।
5. लकड़ियों का फर्नीचर, सजावट और ईधन के रूप में अत्यधिक प्रयोग करना।
6. भूमिगत जल के भण्डारों को अनावश्यक रूप से खाली करना।
7. बढ़ती जनसंख्या पर रोक न लगाना, जिससे संसाधनों का अधिक व्यय होता है।
8. वन्य जीवों, पशु पक्षि आदि को नष्ट करना।
उपर्युक्त बार्तों पर जब तक ध्यान दिया जाएगा, जब तक हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग उचित, उपयुक्त और विवेकपूर्ण तरीके से नहीं करेंगें, तब तक प्राकृतिक संसाधनों के कमी और समाप्त होने की आशंका बनी रहेगी। इसलिए हमें प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षण और सबर्द्धन करने को आवश्यकता है।
संसाधन संरक्षण की समस्या
हमे इस सत्य को पूरी तरह से स्वीकार करना होगा कि भविष्य में संसाधन की कमी देखने को मिलेगी या वह कमी आज भी हमारे सामने दिखाई दे रही है। इसका मुख्य कारण जनसंख्या की तीव्र गति से वृद्धि होना है। पूरे विश्व की जनसंख्या आधुनिक युग में दिन दूनी और रात चौगुनी के मानक के अनुसार बढ़ रही है।
जनसंख्या वृद्धि के साथ आज के भौतिकवादी युग में इस जनसंख्या की आवश्यकताओं में असिमित वृद्धि हुई है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य ने अविवेकपूर्ण ढंग से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और दुरूपयोग किया है अपने भौतिकतावाद में वह तात्कालिक लाभों और स्वार्थों के लिए अनेक प्राकृतिक पदार्थों का अनुचित रूप से उपयोग कर उन्हें नष्ट करने का प्रयास किया है। उनके जो इस प्रकार के कृत्य है। उनसे पर्यावरण भी प्रभावित होने के साथ-साथ प्रदूषित हो रहा है।
मनुष्य ने अपने को विकसित करने के लिए अनेको प्रकार के उद्योग धंधे और फैक्ट्रिया लगाई। जिससे हवा और जल की शुद्धत नष्ट होती जा रही है और दोनों प्रदूषण के चपेट में आते जा रहे हैं। यहाँ तक कि ओजोन पर्त भी इससे प्रभावित हो रहा है। इन प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुध उपयोग ने पृथ्वी पर अनेक पदार्थों का अभाव ला दिया है। अनेको जैविक और अजैविक संसाधन विलुप्त होते जा रहे हैं। मनुष्य इन सबके प्रति आज भी सजग और सर्तक नहीं दिखाई दे रहा है।
अत: आज हमें पूरे मानव समाज को प्राकृक्तिक संसाधनों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है और यह जागरूगता मानव समुदाय में तब विकसित होगी जब इनके प्रति उनमें रूचि और रूझान विकसित होगी। अत: हम इन संसाधनों को संरक्षण तभी कर सकते हैं जब मि उनका विवेकपूर्ण उपयोग करेंगे और विवेकपूर्ण उपयोग तभी होगा जब उसका समुचित उत्पादन, पुर्नस्थापन तथा जनहित के कार्यों में वितरण व उपभोग हो।
संसाधन संरक्षण के लिए कार्य
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित कार्य किए जाने चाहिए -
1. संसाधन संरक्षण के लिए कुछ संसाधन आधार अर्थात ज्ञात और अज्ञात तथा सम्भाब्य पदार्थो की मात्रा व गुणवत्ता का ज्ञान रखा जाय।
2. जिन संसाधनों का उपयोग केवल एक ही बार हो सकता है उनका उपयोग विवेक पूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए।
3. जनसंख्या वृद्धि के साथ प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को मात्रा का विवरण भी रखना चाहिए। यह विवरण भावी योजना के निर्माण में सहयोग दे सकता है।
4. सीमित संसाधनों के स्थान पर वैकल्पिक वस्तुओं या पदार्थों की खोज की जानी चाहिए।
5. तात्कालिक लाभों के लिए मूल्यवान पदार्थों को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। भविष्य में तकनीकि ज्ञान के विकास के द्वारा इन संसाधनों का अधिक लाभकारी उपयोग किया जा सकता है।
प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के तरीके
प्राकृतिक संसाधन मनुष्य के लिए अमूल्य धरोधर है यह मानव जगत का मूल आधार है। अतः हमें इसके उपयोग के तरीकों के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए कि हम किस प्रकार से इन संसाधनों का उपयोग करें कि हमारे स्वार्थों को पूर्ति भी हो जाय और संसाधनों को उचित संरक्षण भी मिल जाय। अतः हम निम्नलिखित तरीकों से इन संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं-
1. प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से दूसरों की हानि न पहुँचे।
2. प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग पर्यावरणीय स्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि इनके उपयोग से पर्यावरण दूषित न हो।
3. पुर्नजीवित होने वाले संसाधनों का इस प्रकार उपयोग हो, जिससे वे पुनः जीवित हो सकें।
4. पुनर्जीवित नहीं होने वाले संसाधनों को कम से कम और बुद्धिमत्तापूर्ण तथा आवश्यकतानुसार ही प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे वे दीर्घकाल तक सुरक्षित रह सकें।
इस प्रकार उपर्युकत तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्राकृतिक संसाधन के मूल तत्त्वों को नष्ट करके पृथ्वी पर जीवन निर्वाह असंभव है क्योंकि इन मूल तत्त्वों के बिना जीवन हो असंभव है। इसलिए हमें केवल अपने बारें में ही नहीं अपितु भविष्य में आने वाली पीढ़ियो के बारे में भी सोचना चाहिए और उन पीढ़ियों के लिए हमें इन संसाधनों को संरक्षित रखना चाहिए।
संसाधन संरक्षण में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिए।
संसाधन संरक्षण में शिक्षक की भूमिका प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में शिक्षक की महती भूमिका होती है क्योंकि समाज के प्रत्येक वर्ग से विद्यार्थी विद्यालय में आते हैं। इसलिए शिक्षक को चाहिए कि वे स्वयं इसमें रूचि लेकर संसाधन संरक्षण के लिए विद्यार्थियों में जागरूकता उत्पन्न करें। शिक्षक को चाहिए कि वह विद्यालय जीवन काल से छात्रों को प्राकृतिक संसाधनों की उपस्थिति, मात्रा एवं उपयोग का ज्ञान कराए तथा उसके प्रति विद्यार्थियों में रूचि उत्पन्न करें।
छात्रों को विद्यालय में वायु, मृदा, जल, विद्युत आदि के सही उपयोग का प्रशिक्षण दिया जाय, जिससे वे उसे अपने जीवन में उतारने के साथ समाज के लोगों को भी जागरूक कर सकें। सामान्यतः यह देखने को मिलता है कि विद्यालयों के कमरों में बिना किसी वजह से पंखे चलते रहते हैं, बल्ब जलते रहते हैं, रोड़ों पर लाइटे जलती रहती है, सार्वजनिक जल से अनायास जल गिरता रहता है।
इससे विद्युत एवं जल दोनों का दुरूपयोग एवं अपव्यय होता है। इन दुरूपयोगों से होने वाली हानियों के प्रति सचेत करने और इनसे बचने के उपाय के बारे में शिक्षक, छात्रों को प्रशिक्षित कर सकता है। शिक्षक, छात्रों को इस अपव्यय और दुरूपयोग से सचेत कर सकता है। शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को प्रदूषण का ज्ञान कराए तथा उसके दुष्परिणामों के बारे में सचेत करे तथा प्राकृतिक संसाधनों को दूषित होने से बचाने के लिए प्रशिक्षण दे।
यह कार्य कोई एक शिक्षक या विशेष शिक्षक नहीं कर सकता बल्कि सभी शिक्षकों को अध्यापन कार्य करते समय इस प्रसंग को चर्चा करनी चाहिए और इसके लिए जागरूकता रैलियों और गोष्ठियों का आयोजन किया जाना चाहिए। उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि आज हमारा सबसे महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करन है।
उन्हें इसी प्रकार की नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। शिक्षक के द्वारा छात्रों को यह बताया जानक चाहिए कि वे जिन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करें उससे दूसरे को हानि नहीं पहुंचनी चाहिए जो संसाधन पुनः जीवित नहीं हो सकते उनका उपयोग विवेक और बुद्धिमता से तथा आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिए। इस प्रकार के ऐसे तमाम कार्य जिन्हें शिक्षक ही कर सकता है तथा छात्रों के माध्यम से इनके प्रति लोगों में रूचि एवं जागरूकता उत्पन्न कर सकता है।
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