पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व - Questionpurs

पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व ( Need and importance of environmental education )

पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता (Need of Environment Education)

विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा परिस्थितिकी के संदर्भ में बदलते सामाजिक मूल्यों का आकलन करने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा आवश्यक है। आज विज्ञान के बढ़ते चरण, औद्योगिकीकरण और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण पूरी विश्व में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है।

इसकी रोकथाम के लिए जहाँ एक ओर सरकारी नियम और कानून बनाये जा रहे हैं वही दूसरी ओर लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए पर्यावरण शिक्षा का सहारा लिया जा रहा है। पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से इस पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी जगत और उस पर आने वाली संभावित विपदाओं से सचेत करने तथा उन्हें सुखमय जीवन देने का प्रयास करना है।

इसके साथ ही उन्हें योग्य भी बनाता है कि वे भविष्य में आने वाली समस्यायों के बारे में जानकर उनका सार्थक हल ढूढ़ने का प्रयास भी करें। इस संदर्भ में पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है :-

1. मानव को संयमित जीवन व्यतीत करने के लि प्रशिक्षण देने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है।

2. मानव की सोच तथाउसके व्यवहार से बदलाव लोने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है। 

3. सौरमण्डल में केवल पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन संभव है। इसे नष्ट होन से बचाने के लिए तथा उस पर बसेने प्राणी मात्रों को सुखमय जीवन प्रदान करने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है।

4. प्रकृति को पुनः संतुलित करने तथा भावी संततियों को विरासत में सुंदर भविष्य छोड़ने के लिए जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है।

5. पर्यावरण की सीमाओं की जानकारी देने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है।

6. पेड़ और वनस्पति हो केवल कार्बन डाई आक्साइड को प्राणुवायु आक्सीजीन में परिवर्तित कर सकते हैं। अत: वायुमण्डल में आक्सीजन की आवश्यकता मात्रा बनाए रखने तथा कार्बन डाई आक्सीजन की वृद्धि से होने वाली पर्यावरण विकृतियों से परिचय कराने हेतु व्यक्तियों को 'करने' तथा 'न करने' की बाते बताने के लिए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यक है।

7. प्रकृति के संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सिखाने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है।

8. औद्योगिक क्रान्ति तथा वैज्ञानिक उपलब्धियों के फलस्वरूप सुख-सुविधाओं के उपकरणों ने चारों ओर अनेक प्रकार के प्रदूषण फैला रहे हैं। उसे नियंत्रित करने तथा उससे बचाव के उपाय सुझाने के लिए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता है।

9. वन, वन्य जीवन, खनिज सम्पदा, ऊर्जा आदि के संरक्षण के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक है।

10. वनोन्मूलन से उत्पन्न दुष्परिणामों की जानकारी देने तथा वनोन्मुलन की समस्या को सुलझाने के लिए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता है।

11. खनन से उत्पन्न पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी देने के लिए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता है।

अध्ययन-अध्ययापन की सुविधा की दृष्टि से इन आवश्यकताओं को हम निम्न शीर्षकों में भी क्रमबद्ध कर सकते हैं -

1. प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण के लिए:-

हमें यह देखने को मिल रहा है कि मनुष्य भौतिक सम्पदा का दोहन, अपनी आवश्यकता और स्वार्थपरकता के कारण तेजी से कर रहा है और यदि यही दशा रही तो हमारी भावी सन्ततियों को विरासत में प्राकृतिक सम्पदा के रूप में कुछ भी नहीं मिलेगा। मनुष्यों को प्राकृतिक सम्पदा के सीमित प्रयोग को ओर अग्रसर करने और उसे भावी संततियों के लिए बचाए रखने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है।

2. प्रकृति प्रदूषण की रोकथाम के लिए :-

आज संसार में वनों के काटने, औद्योगिक संस्थानों को चलाने और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण गंदगी फैलने से हमारा प्राकृतिक पर्यावरण-जलवायु, मिट्टी आदि प्रदूषित हो रहे हैं। इस प्रदूषण की रोकथाम के लिए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता है।

3. बच्चों के उचित पोषण और स्वास्थ्य विकास के लिए:

मानव को जीवन की रक्षा के लिए शुद्ध वायु, जल, सूर्य का प्रकाश और शुद्ध खाद्यान्न की आवश्यकता होती हैं। वायु एवं जल जो प्राकृतिक पर्यावरण के अंग हैं, को शुद्ध खाद्यान्नों की आपूर्ति के लिए खाद्यान्नों को प्रदूषण से बचाना आवश्यक हैं। यही तभी संभव है तभी संभव है जब बच्चों, युवकों, प्रौढ़ो, को प्रदूषण की रोकथाम के उपाय बताए जाए। उनके पालन के लिए उनमें रूचित जागृत की जाय। इसके लिए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता है।

4. जनकल्याण और आर्थिक प्रणाली की रक्षा के लिए:-

इस भौतिकवादी युग की सबसे बड़ी देन स्वार्थपरक है, आज अधिकतर व्यक्ति अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचते हैं। उन्हें जनहित और कल्याण के बारे में सोचने के लिए समय ही नहीं मिलता। लेकिन वह इस बारे में नहीं जानते कि वह इस स्वार्थपरकता में अपना और अपने भावी सन्तति का अहित कर रहे हैं।

ये यह नहीं सोच पाते कि उनके इस स्वार्थपरकता के कारण प्राकृतिक संसाधन कम हो रहें हैं और अगर ऐसे ही चलता रहा तो आगे चलकर अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।

प्रकृति में जो प्रदूषण फैल रहा है उसके कुप्रभाव से उनका स्वास्थ्य भी खराब हो जाएगा। बड़े-बड़े नगरों में बायु और जल प्रदूषण के कारण दमा, तपेदिक और पीलिया आदि रोग कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं। इसलिए जनकल्याण और आर्थिक प्रणाली को लम्बे समय तक बनाए रखने के लिए पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता है।

पर्यावरणीय शिक्षा का महत्व (Importance of Environmental Education )

पर्यावरणीय की समस्या विश्व की समस्या है। यह समस्या बहुत ही भयंकर समस्या है क्योंकि यह समस्या आज बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। इस समस्या के विधान के लिए ही पर्यावरणीय शिक्षा का विधान किया गया। पर्यावरण के बारे मे जब से सोच प्रारम्भ हुई तभी से बुद्धिजीवियों ने पर्यावरण की सुरक्षा सुधार एवं सरंक्षण की बात रखनी शुरूकर, इस हेतु कोई नैदानिक या उपचारात्मक तरीके अपनाने पर बल दिया।

यह बात सन् 1972 में स्टाकहोम में 'मानव पर्यावरण' पर हो रहे अर्न्तराष्ट्रीय सम्मेलन में रखी गई, वहाँ इस बात पर प्रस्ताव पारित हुआ कि पर्यावरणीय समस्यायों को सुलझाने और उन्हें दूर करने के लिए 'पर्यावरण शिक्षा' कार्यक्रम को मूर्त रूप प्रदान किया जाय।

इसक बाद सन् 1975 में बेलगेड चार्टर और 1977 में हुए तिबलिसी अन्तर्देशीय सम्मेजन में जिन बिन्दुओं को आधार बनाकर पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की उपोदेयता और प्रस्तुति दी, वह सभी पर्यावरण शिक्षा के महत्व के अन्तर्गत आते हैं। इनके आध्ययर पर पर्यावरण शिक्षा का महत्व निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है -

1. पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से लोगों को पर्यावरण की सत्य और तथ्यात्मक जानकारी प्रदान की जानी चाहिए।
2. जानकारी के आधार पर संभावित कारणों का पता लगाना चाहिए।
3. उन समस्यायों की जानकारी देना जो निकट भविष्य में घट सकती है और उससे जनजीवन संकट में पड़ सकता है।
4. उन समस्यायों का हल खोजना जो निकट भविष्य में घट सकती हैं। उनके बारे खुद जानना और लोगों का बताना की इस संकट से कैसे बचा जा सकता है।
5. इन समस्याओं को समझने और उनसे निपटने अथवा हल खोजने हेतु मनुष्य तैयार करना जिनसे यह सभी तक पहुच सके।
6. लोगों को पर्यावरण, संरक्षण, सुरक्षा, सुधार के कार्यों में लगने केलिए प्रेरित करना तथा उनमें रूचि जागृत कराना।
7. भावी संततियों के भविष्य को समझकर ही कार्यों को करने की समझ विकसित करना।
8. लोगे में यह भावना आत्मसात करने के लिए तैयार करना वह स्वयं सुखी रहें और दूसरे प्राणी भी सुखों से रहें।
इन उपर्युक्त कथनों में वे सभी तथ्य समाहित हो गए हैं जिनकी ओर वास्तविक ध्यान ले जाना पर्यावरण शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है।

इससे स्पष्ट होता है कि हम बुद्धिमत्तापूर्ण प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग करें, वनों की सुरक्षा करें, उन्हें नष्ट होने से बचाएँ, प्रदूषण रोके, स्वच्छ जल, वायु, खाद्यान्न और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध करें, तभी हम स्वयं सुखी रहेंगे और दूसरे प्राणो भी सुखी रहेंगे। इन सभी बिन्दुओं के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पर्यावरण शिक्षा आज की महती आवश्यकता है।

हम सभी को इसको उपादेयता स्वीकार करनी चाहिए और इसके कार्यक्रमों में सफलतापूर्वक अपना सक्रिय योगदान देना चाहिए। जिससे पर्यावरण की समस्यार्यों को समझने में आसानी हो सके और लोग इसकी सुरक्षा, सुधार और संरक्षण कर अपने भावी जीवन को सुखमय व्यतीत कर सके। अतः कहा जा सकता है कि पर्यावरण शिक्षा इस भौतिकवादी युग के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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