कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग ( सैडलर आयोग ) के सुझाव एवं विशेषताएं
कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बन्धित सुझाव
कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बन्धित सुझाव आयोग मूल रूप में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में जाँच करके अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए ही गठित हुआ था। यह आयोग प्रमुख समस्याओं का गहन अध्ययन करके इस विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि -
1. विश्वविद्यालय का आकार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है ।
2. विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कालेजों की संख्या बढ़ती जा रही है ।
3. इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध विद्यालयों की छात्र संख्या का विस्तार बहुत अधिक तेजी से हो रहा है ।
इसी आधार पर कमीशन ने इस बात का अनुभव किया कि विश्वविद्यालय के समक्ष अनेक कठिनाइयाँ हैं जिनका निवारण अनिवार्य है । अतः कलकत्ता विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में निम्न प्रस्ताव रखे गये-
( क ) शीघ्र ही ढाका में एक आवास - शिक्षण विश्वविद्यालय की स्थापना की जाय ।
( ख ) कलकत्ता नगर के समस्त शिक्षण संस्थाओं को इस प्रकार से संगठित किया जाय कि शिक्षा प्रदान करने वाले एक विश्वविद्यालय का स्वरूप धारण कर ले ।
( ग ) कलकत्ता नगर के आस - पास के विद्यालयों को इस प्रकार संगठित किया जाय कि थोड़े से स्थानों में विश्वविद्यालय केन्द्रों के क्रमिक विकास को प्रोत्साहित करना सम्भव हो सके ।
सैडलर आयोग के प्रतिवेदन की आवश्यक विशेषताएँ
कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के सुझाव विश्वविद्यालय शिक्षा के उत्थान का मार्ग प्रदर्शित करते हैं । यह सुझाव मुख्य रूप से एक विश्वविद्यालय से सम्बन्धित थे परन्तु ये इतने विस्तृत और व्यावहारिक थे कि इनका महत्त्व संम्पूर्ण देश के विश्वविद्यालयों के लिए था। आयोग की सिफारिश एक कठिन परिश्रम और विस्तृत अध्ययन के पश्चात् प्रस्तुत की गयी थी, अतः उनमें विशदता का गुण स्वाभाविक रूप से आना ही चाहिए ।
इन सुझावों के फलस्वरूप भारतीय विश्वविद्यालयों कुछ हद तक सुधार अवश्य सम्भव हो सका। इस आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय अब वास्तविक ज्ञान के केन्द्र बन गये। आयोग का सेबसे सराहनीय कार्य विश्वविद्यालय के आन्तरिक संगठन में सुधार करना है। इस कार्य के हो जाने से विश्वविद्यालय का कार्य अधिक गतिशीलता और सुचारुता से चलने लगा। विश्वविद्यालयों में आपसी सम्बन्ध घनिष्ठतम हो गये ।
पुस्तकीय ज्ञान के साथ - साथ शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्राथमिकता प्रदान करने का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं रह गया था जिसमें इस आयोग द्वारा प्रकाशन डाला गया हो। इतनी सारी बातें होते हुए भी इस आयोग को दोष से परे नहीं कहा जा सकता है । अधिकांश सुझाव संघर्ष से पहले कर दिए गये। हमारे यहाँ और इंग्लैण्ड की स्थिति में अन्तर था।
अतः विश्वविद्यालयों का सुधार लन्दन, ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज के आधार पर किया जाना व्यावहारिक न था । माध्यमिक शिक्षा को शिक्षा विभाग से अलग कर बोर्ड के अन्तर्गत किया जाना भी बहुत बुद्धिमत्तापूर्वक कदम न था । कुछ भी हो यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि यह आयोग उ शिक्षा के लिए अत्यन्त उपयोगी था।
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