वैश्विक उष्णता के कारण एवं प्रभाव - Causes and Effects of Global Warming

वैश्विक उष्णता के कारण (Causes of Global Warming)


1. हरित गृह गैसों में वृद्धि (Increase in Green House Gases) :-

विश्वतापन में हो रही वृद्धि का मूल कारण बढ़ता हरित गृह गैसों का उत्सर्जन है, जिसमें उद्योग एवं यातायात के साधन प्रमुख है। संवेर्गों से सर्वाधिक उत्सर्जन 57%CO, का उत्सर्जन होता है जबकि 27% हिस्सा यातायात जनित होता है। विगत शताब्दी में भूमि उपयोग में तीव्रता से परिवर्तन आया है जिसमें दलदली भूमि में परिवर्तन प्रमुख है।


वनों का विनाश कर कृषि को बढ़ावा दिया गया है। सीवरेज पाइप लाइन से मीथेन का रिसाव होता है। नई शैली को सेप्टिक व्यवस्था किण्वन को बढ़ावा दे रही है। CFC एवं लोजन के साथ अक्रियाशील कार्बन यौगिकों का उद्योग तथा कृषि में रासायनिक खाद के प्रयोग से नाइट्रस आक्साइड की मात्रा में वृद्धि हुई है। Global Warming के लिए वैज्ञानिकों ने अब तक 30 हरित गृह गैसों की पहचान की है। प्रमुख गैसों में कार्बन डाई ऑक्साइड (CO₂) क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) मीथेन (CH), हेलोन, नाइट्स ऑक्साइड (N₂O), ओजोन गैसें वायुमण्डल में "Green House Effect" पैदा करके पृथ्वी का ताप बढ़ाती हैं।


2. ओजोन परत में छिद्रीकरण (Ozone Depletion):-

ओजोन वायुमण्डल में धरातल से 20 से 35 किमी की ऊँचाई पर पायी जाने वाली गैस है। ओजोन परत सूर्य से आने वालों हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोककर सुरक्षा कवच का कार्य करती है। किन्तु विगत कुछ दशकों से मानवीय क्रियाकलापों द्वारा उत्सर्जित हानिकारक रसायनों यथा-सी.एफ.सी. नाइट्रेट आक्साइड, कार्बन टेट्रा क्लोराइड, क्लोरोफार्न, क्लोरीन इत्यादि के कारण ओजोन के विनाश से ओजोन परत पतली होती जा रही है जिसे 'ओजोन छिद्रीकरण कहते हैं।


3. निर्वनीकरण (Deforestation):-

उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वनों की अंधाधुंध एवं अविवेकपूर्ण कटाई को भी ग्लोबल वार्मिंग का कारण माना जाता है। भारत में प्रतिवर्श अनुचानतः 17 लाख हेक्टेयर वनों की कटाई हो रही है।


4. मानवीय क्रियाएँ (Human Activities):-

आईपीसीसी की फरवरी, 2007 में प्रस्तुत रिपोर्ट कहती है कि विश्वतापमान के लिये सर्वाधिक उत्तरदायी मनुष्य स्वयं है। जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि पालन-पोषण के लिये प्राकृतिक संसाधन का अंधाधुंध प्रयोग, जंगलों का विनाश, यातायात संसाधनों की तीव्र वृद्धि, नित्य नये-नये उद्योगों की स्थापना, ऊर्जा के श्रोतों का अंधाधुंध प्रयोग, विनाशकारी हथियारों का प्रयो तथा परमाणु परीक्षण किये जा रहे हैं, जिनसे निकलने वाले विकिरण न सिर्फ मानव के लिये अपितु जीवनदायी पर्यावरण के लिए अत्यधिक हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं।


वैश्विक उष्णता के प्रभाव (Effects of Global Warming)


21 वीं सदी के मौसमी बदलावों की तीव्रता वैश्विक उष्णता का परिणाम है। आई.पी. सी.सी. तथा इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉपिकल मीटिरियोलॉजी (पुणे) ने स्पष्ट किया है कि तापमान बढ़ने से बाढ़, सूखा तथा तापीय लहरों की आवृत्तियाँ चरम पर होंगी, साथ ही कृषि, जैव विविधता, हिमनद, जल संसाधन आदि अत्यधिक प्रभावित होंगे।


1. समुद्री जल स्तर में वृद्धि (Rise in Sea-level):-

वैश्विक उष्णता के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों तथा पर्वतीय हिमनदों के पिघलने से समुद्री जलस्तर के ऊपर उठने की आशंका है। आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 21वीं सदी के अन्त में समुद्री जल स्तर में 18 से 58 सेमी तक वृद्धि होने की आशंका है। परिणामस्वरूप सागरतटीय क्षेत्र जलमग्न हो जायेंगे।


एक अनुमान के अनुसार 20वीं सदी में समुद्री जलस्तर में 0.1 से 0.2 मीटर की वृद्धि हुई है। तटीय जलमग्नता से सर्वाधिक प्रभावित हाने वाले देश बांग्लादेश, मिश्र थाईलैण्ड, चीन और इण्डोनेशिया है। भारत का तटीय क्षेत्र भी प्रभावित होगा जो कि अत्यन्त उपजाऊ एवं सघन जनसंख्या वाला क्षेत्र है।


2. जैव-विविधता पर प्रभाव (Effect on Bo-diversity):

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के 100 वैज्ञानिकों के दल द्वारा शोध कर प्रकाशित पुस्तक "सस्टेनिंग लाइफ" में स्पष्ट किया गया है कि विश्वतापन से दुनिया में जोवों की 6000 प्रजातियाँ संकट ग्रस्त हैं। दुनिया का विस्तृत डेल्टाई क्षेत्र सुन्दर बर भी संकट में है। भारत में वनस्पति एवं जीव जन्तुओं की 25 प्रतिशत प्रजातियाँ सन् 2030 तक विलुप्त हो जायेंगी।


3. कृषि पर प्रभाव (Effect on Farming):-

वैश्विक उष्णता के कारण जमीन की उर्वरता घटने की आशंका है। परिणामस्वरूप फसलोत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, पृथ्वी के कई हिस्सों में एक ही मौलिक मौसम दीर्घकाल तक बना रहेगा, सर्दी हो तो सर्दी ही रहेगी, गर्मी है तो गर्मी ही रहेगी। लगातार गर्मी में फसलों को नर्मी नहीं मिलेगी तो सर्दी के कारण फसलों की गर्मी नहीं मिलेगी।


वैश्विक उष्णता का प्रभाव गेहूँ, चावल, मक्का, आलू आदि पर अधिक पड़ेगा। इस तरह धरती बंजर होती जायेगी। बढ़ते तापमान का प्रभाव वर्तमान में चल रही अनेक योजनाओं पर भी पड़ेगा जिनमें नदी घाटी परियोजनायें प्रमुख हैं। अनेकों बहुउद्देश्यीय योजनायें तथा नदी जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा।


4. नदियों पर संकट (River Crists):-

तापमान में वृद्धि के कारण पर्वतीय हिमनद निरन्तर पिघलते जा रहे हैं जिन नदियों का श्रोत पर्वतीय हिमनद है उनमें भयंकर बाढ़ आने की आशंका है तथा उनके नष्ट हो जाने से नियतवाही नदियों के सूखने का अंदेशा है।


5. पेयजल संकट (Water Crises) :-

आई.पी.सी.सी. 2007 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2080 तक एक अरब दस करोड़ लोगों को पीने के लिये पानी नसीब नहीं होगा तथा 20 करोड़ से 60 करोड़ लोगों को अनाज उपलब्ध नहीं होगा। पेयजल और खाद्यान्न संकट पृथ्वी के बढ़ते तपमान का ही परिणाम होगा। यह मानवता के लिये भयानक मंजर का संकेत है। वर्ष 2050 तक बढ़ते तापमान के कारण प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में 30 प्रतिशत की कमी आयेगी।


6. मौसम पर प्रभाव तथा प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि (Weather Changes and Natural) :-

आईपीसीसी रिपोर्ट 2007 के अनुसार, आने वाले दशकों में उच्च अक्षांशों (बह क्षेत्र जहाँ मौसम खास ठण्डा रहता है) में वर्षा में कमी आयेगी। गर्म रातें बढ़ेगी तथा ठण्डी रातें घटेगी। सम्पूर्ण विश्व के तापमान बढ़ने की सर्वाधिक दर आर्कटिक क्षेत्र में है। शुष्क क्षेत्रों में सूखे की आवृत्ति बढ़ेगी। इसके अलावा कई आपदाओं का प्रकोप बढ़ेगा।


अनावृष्टि, अतिवृष्टि, अकाल, लू और गर्म हवाओं का प्रकोप बढ़ेगा। हाल ही में नेचर पत्रिका ने स्पष्ट किया है कि अमेरिका में चक्रवातों (हरिकेन) की बारम्बारता का बढ़ना भी विश्वतापन का ही परिणाम है।


7. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effect on Human Health) :-

तापमान वृद्धि से धरातल एवं जल एक दोनों परिवेश बदल रहे हैं, जिनका प्रभाव मानव स्वास्थ्थ्य पर पड़ रहा है, स्वच्छ जल घट रहा है, खाद्य सुरक्षा संकट में है, बाढ़ एवं सूखा बढ़ रहे हैं। सूखे से प्रतिवर्ष 4 मिलियन लोगों की मौत हो रही है।


जलवायु में परिवर्तन के कारण मध्य एवं उच्च अक्षांशों में कई जल जनित एवं कीटाणु जनित रोगों के फैलने की आशंका है। इससे त्वचा कैंसर एवं आँखों से सम्बन्धित बीमारियाँ भी बढ़ रही


8. ऊर्जा संकट (Energy Crisis):

तापमान में वृद्धि के कारण मध्य अक्षांशीय प्रदेशों में एयर एयरकंडीशनर पंखा, कूलर आदि से अधिक प्रयोग से विद्युत खपत बढ़ेगी, जिससे ऊर्जा संकट उत्पन्न हो जायेगा।


वैश्विक उष्णता को नियंत्रित करने के उपाय (Measures to Control GW)

वैश्विक तापन की समस्या किसी एक देश या राष्ट्र की समस्या नहीं है वरन् यह सम्पूर्ण पृथ्वी तथा मानव जाति की समस्या है। अतः इसके लिये सभी को सम्मिलित प्रयास करने पड़ेंगे। आँकड़े बताते हैं कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में विकसित देशो अग्रणी हैं जो कि विश्व की 2/3 हरित गैसें उत्सर्जित करते हैं।


अमेरिका 30 प्रतिशत रूस 15 प्रतिशत तथा चीन 12 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है, भारत 6 प्रतिशत गैसें उत्सर्जित करता है। हम जानते हैं कि इस समस्या से एकाएक निपटना मुश्किल है। अतः इसके सम्भावित समाधान हेतु एक नियोजित रणनीति बनानी होगी तथा समय रहते ऐसे कदम उठाने होंगे जो आवश्यक हों।


वैसे अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय समस्याओं पर अनेकों सम्मेलनों का समय-समय पर आयोजन किया जाता रहा है, परन्तु सिर्फ विचार-विमर्श करना ही समस्या का समाधान नहीं है अपितु इसके लिये सार्थक कार्यक्रमों को क्रियात्मक रूप देना पड़ेगा। आइये, सर्वप्रथम कुछ प्रयासों पर नजर डालें।


संक्षेप में, वैश्विक उष्णता को नियंत्रित करने के उपाय (measures to control global warming) निम्नलिखित है -


(i) अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाएं।

(ii) सौर ऊर्जा तथा बायोगैस का प्रयोग अधिक से अधिक किया जाए जिससे वायुमण्डल में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम हो।

(iii) सी०एफ०सी० गैस के उत्सर्जन पर रोक लगाई जाए।

(iv) वन क्षेत्रों का विस्तार किया जाए।

(v) औद्योगीकरण की प्रक्रिया हेतु मानक निर्धारित किए जाए।

(vi) लोगों को जागरूक कर उक्त समस्या के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास किया जाय जिससे हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम हो।

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