बाढ़ नियंत्रण: कारण और निवारण

बाढ़ (Flood)

जब स्थलीय भाग का विस्तृत क्षेत्र लगातार कई दिनों तक जलमग्न रहता है तो उसे 'बाढ़' के अर्थ में प्रयुक्त करते हैं। बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है तथा अतिजल वर्षा का परिणाम है। यह उस समय प्रकोप बन जाती है जब इसके द्वारा अपार जन धन की हानि होती है। बाढ़ का प्रकोप (Flood outbreak) प्राकृतिक और मानव जनित दोनों होता है। वास्तव में बाढ़ प्राकृतिक पर्यावरण का एक गुण है तथा अफवाह बेसिन के जलीय चक्र का एक संघटक है।


बाढ़ नियंत्रण: कारण और निवारण

मानव क्रियाकलापों द्वारा बाढ़ के परिमाण, आवृत्ति तथा विस्तार में वृद्धि हो जाती है। अधिकतम बाढ़ का सम्बन्ध विस्तृत जलोढ़ मैदानों में प्रवाहित होने वाली जलोढ़ नदियों से होता है। विश्व के समस्त भौगोलि क्षेत्रफल के लगभग 3.5 प्रतिशत क्षेत्र पर बाढ़ मैदानों का विस्तार है जिसमें विश्व की लगभग 16.5 प्रतिशत जनसंख्या में निवास करती है।


बाढ़ प्रकोप फैलाने वाली नदियों में गंगा और उसकी सहायक नदियां, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, गोदावारी, नर्मदा, ताप्ती आदि, मिसीसीपी, मिसौरी, (संयुक्त राज्य अमरीका), इरावदी (म्यांमार), दजला और फरात (ईराक), सिन्ध (पाकिस्तान), यांगटिसी क्यांग तथा यलो (चीन) प्रमुख है।


बाढ़ के कारण (Causes of Floods)


सामान्यतया बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है। इसके भयानक प्रकोपों से मानव जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। इन बाढ़ों के आने के निम्नलिखित कारण है।


1. वर्षा की अनिश्चितता (Uncertainty of rainfall)

बाढ़ का एक कारण वर्षा की अनिश्चितता है। अनेक शुष्क भागों में वर्षा की कम्पी के कारण वहाँ के अपवाह मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं और ऐसे स्थानों पर जब वर्षा अधिक हो जाती है तो इन मार्गों पर जल का निकास कठिन हो जाता है और बाढ़ आ जाती है। राजस्थान में आने बाली बाढ़ इसी प्रकार की होती है। अतः वर्षा की अनिश्चतता बाढ़ का प्रमुख कारण है।


2. नदी धारा में परिवर्तन (Changes in river flow)

जब वर्षा काल में जल के दबाव के कारण नदी अपने प्रौढ़ावस्था में सपरिवार बहती है और जल के बढ़ जाने पर धारा में परिवर्तन कर लेती हैं तो बाढ़ की घटनाएँ घट जाती है जिससे जल बाढ़ के रूप में फैल जाता है और जब धारा परिवर्तित होता है तो छाड्न धारा और ताों के माध्यम से विस्तृत क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जाता है।


3. नदी जल पर मलबे का जमाव (Deposition of debris on river water)

जब भूस्खलन से उपस्थित मलबा नदी के तल पर जमा हो जाता है तो वह नदी के अपवाह क्षमता को घटा देता है। फलतः थोड़ी भी अधिक वर्षों के होने पर नदी का जल फैल जाता है और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।


4. वनस्पति विनाश (Vegetation destruction)

हिमालय क्षेत्रों में वनस्पतियों का विनाश होना उत्तरी भाग में बाढ़ का प्रकोप का सबसे बड़ा कारण है क्योंकि अधिकांश नदियां यहीं से निकलती है। बनों के न रहने से अधिक तीव्र ढाल से हिमालय क्षेत्र का वर्षा जल तेजी से नदियों में पहुँचता है जिससे नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है और बाढ़ की सम्भावना बढ़ जाती है।


5. तटस्थ और तटीय अधिवास (Coastal and coastal habitats)

बाढ़ रोकने के लिए अनेक प्रकार के बांध, तटबन्ध एवं तटीय अधिवास बाढ़ के कारण बनते जा रहे हैं क्योंकि इससे एक क्षेत्र या स्थान पर तो बाढ़ से राहत मिल जाती है। लेकिन अन्य क्षेत्रों में इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। तटबन्ध जो जल के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करते हैं जिससे जल बढ़ने पर दूसरी तरफ प्रवाह कर लेता है और बाढ़ का खतरा उत्पन्न कर देता है।


6. नदी भाग में मानवकृत व्यवधान (Man-made disturbances in the riverbed)

मानव की आवश्यकताएँ बढ़ने से अनेक प्रयोग हुए, जिससे उनकी उपयोगिताएँ पूरी हो सकें। उनके इस विविध उपयोगों के कारण नदी धारा में अनेक प्रकार के व्यवधान उत्पन्न हो रहे है। मानव अपनी उपयोगिता के लिए अनेक प्रकार के रेल, सड़क, जलाशय, बांध, बिजली घर विकास किया, ये सारे विकास से नदी का स्वाभाविक अपवाह बाधित हुआ। नदियों की धारा प्रवाह में व्यवधान उत्पन्न हो गए, जिससे बाढ़ का प्रकोप तेजी से बढ़ा।


भारत में प्रतिवर्ष लगभग 30 करोड़ व्यक्ति एवं 40 हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित होती है तथा अरबों खरों की सम्पत्ति नष्ट होती है। 1953 से 1975 के मध्य बाढ़ से होने वाली क्षति अनुमान के अनुसार औसतन 74 लाख हेक्टेयर भूमि प्रति वर्ष प्रभावित होती है जिसमें 31 लाख हेक्टेयर भूमि पर कृषि की गई होती है।


औसतन 8 लाख मकान और 50 हजार पालतू पशुओं का नुकसान होता है। फसल का नुकसान 2 अरब रूपये से अधिक का आंका गया है। इस क्षतिपूर्ति के लिए सरकार को भारी रकम खर्च करनी पड़ती है। वर्षाकाल प्रारम्भ होते ही सरकार बाढ़ से बचाव और बाढ़ बचाव कार्य में जुटी रहती है।


बाढ़ नियन्त्रण के उपाय (Measures of Flood Control)

बाढ़ से होने वाली भारी क्षति को देखते हुए बाढ़ नियन्त्रण पर चिन्तन करने क आवश्यकता है। जिससे बाढ़ विभीषिका को रोका जा सके मूलतः बाढ़ को नियन्त्रित करने के लिए दो तरह के उपाय किये जाते हैं।


1. व्यवहारगत (Behavioral)

चूंकि बाढ़ प्राकृतिक प्रकोप है इसलिए मनुष्य को बाढ़ के प्रकोप का सामना करना है तथा इससे होने वाली क्षति को स्वीकार करना ही पड़ता है। इसलिए इस संकट को व्यवहारगत रखते हुए इस तरह की संरचना बनायी जानी चाहिए कि बाढ़ तक वहाँ से जन जीवन हटकर दूसरी जगह स्थापित हो जाय। जिससे कम से कम क्षति हो।


2. संरचनात्मक (Structural)


संरचनात्मक उपायों के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें आती है-


(i) - बाढ़ के मैदानों को काल प्रखण्डों में बांटकर उनका नियोजन करते है जैसे प्रतिवर्ष, पाँचवें, वर्ष प्रति बीस वर्ष वाले बाढ़ के क्षेत्र। इन क्षेत्रों पर योजना बनाकर कार्य किया जाता है। इसलिए इसे नियोजक विधि भी कहते हैं।

(ii) - नदियों के मार्ग को गहरा कर दिया जाय।

(iii) - बाढ़ से राहत हेतु छत्रक नालियों का निर्माण किया जाना चाहिए।

(iv) - तटबन्ध बनाकर ।

(v) - बांध बनाकर।


गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, कोसौ, गण्डक, घाघरा आदि नदियों के किनारे बाढ़ आना सामान्य घटना है। यहां पर लगभग प्रतिवर्ष बाढ़ आती है। केवल गंगा बेसिन से 60% के लगभग हानि होती है। 1976-78 ई० के मध्य राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, आन्ध्रप्रदेश बाढ़ों से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। 1993 में हिमांचल प्रदेश, पंजाब हरियाणा में 423 व्यक्तियों तथा 20,000 पशुओं की मृत्यु बार्दो से हुई। अभी हाल ही में 2013 में अलकनन्दा नदी के बाढ़ से उत्तराखण्ड में भारी जन हानि हुई। वहाँ केदारनाथ धाम में बाढ़ के कारण भारी तबाही का सामना करना पड़ा।


2. मानव जनित प्रकोप (Human Hazards)

मानव द्वारा जनित कोई भी पर्यावरण अवनयन आपदापन्न प्रकोप उस समय हो जाता है जब वह खतरनाक स्थिति को प्राप्त हो जाता है तथा उससे मानव समाज को असाध्य क्षति होती है। मानव जनित प्रकोप को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है -


(i) नाभिकीय परीक्षण तथा विस्फोट, बड़े-2 जलभण्डारों में अपार जल राशि के संग्रह आदि द्वारा भी बड़े परिमाण वाले खतरनाक भूकम्पों की उत्पत्ति होती है। विश्व की कई भूकम्पीय घटनाओं तथा बांधों एवं जलभण्डारों में गहरा सम्बन्ध स्थापित किया जा चुका है।


(ii) - तेल ढ़ोने वाले जहाजों से खनिज तेल के अधिक मात्रा में रिसाव के कारण सागरीय जल की सतह पर तेल की पतली परतें बन जाती है जो जल की सतह पर तेज गति से फैलती हैं। इनके कारण प्रभावित सागरीय क्षेत्रों में रहने वाले जीव मर जाते हैं। जिस कारण तटीय क्षेत्रों में मानव समुदाय के लिए आहार-पूर्ति का अभाव हो जाता है।


(iii) - किसी क्षेत्र में जमीन के नीचे जहरीले रसायनिक तत्वों का जमाव उस क्षेत्र में बाद में होने वाले मानव अधिवास के लिए प्राण घातक हो सकता है। उदाहरणार्थ, नियाग्राफाल्स नगर के पास लोव नहर के लिए 1892 में खोदी गई खाई को बाद में परित्यक्त कर दिया गया। आगे चलकर इस परित्यक्त कर दिया गया। आगे चलकर इस परित्यक्त खाई का प्रयोग कारखानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ खासकर जहरीले रासायनिक तत्वों के जमाव के लिए किया जाने लगा।


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