वन विनाश के कारण || Causes of Deforestation in Hindi
1. औद्योगिक विकास (Development of Industry):-
औद्योगिक विकास हेतु उद्योगों को लगाने हेतु दो ही प्रकार की भूमि चयनित की जाती है, (1) कृषि योग्य या फिर (2) वन क्षेत्र भूमि । अतः परिणामस्वरूप इन मूल्यवान क्षेत्रों के विनाश की स्थिति उत्पन्न होती है। वनों की बलि देकर औद्योगिक विकास का सपना नहीं ठहराया जा सकता।
2. बढ़ती जनसंख्या (Over Population):-
अत्यधिक जनसंख्या का अर्थ है कि अधिक से अधिक घर, बड़े शहर, वनोत्पादित वस्तुओं की अधिक खपत आदि। इन सबका परिणाम यह होता है कि बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी करने के लिए वनों को साफ किया जाता है। बेहतर यह होगा कि हम जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण करें।
3. कृषि क्षेत्र का विस्तार (Expansion of Agriculture Sector):-
बढ़ती जनसंख्या की खाद्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वन क्षेत्रों की भूमि के प्रयोग के कारण वनों को काटकर कृषि भूमि में परिवर्तित किया जा रहा है तथा कृषि क्षेत्र का विस्तार बिना सोचे समझे किया जा रहा है।
4. खनन (Mining):-
खनिज पदार्थों की प्राप्ति हेतु उस क्षेत्र के वनों को काट कर साफ किया जाता है। इस प्रक्रिया में केवल खान के ऊपर के पेड़ ही नहीं करते वरन् आस-पास के पेड़ भी परिशोधन और उससे जुड़े उद्योगों को स्थान देने के लिए काटे जाते है। साथ ही, खनन माफिया की इस परेशानी को बढ़ा देते है।
5. वनों में पशुचारण (Animal Movement):-
प्राचीन समय से जंगलों में पशु चराए जाते है लेकिन पूर्व में वन अधिक होने के कारण यह कार्य विभिन्न क्षेत्रों में चक्रीय रूप से किया जाता था जिससे किसी क्षेत्र विशेष में दोबारा चराने से पूर्व वह भूमि उपजाऊ शक्ति प्राप्त कर लेती थी। लेकिन वर्तमान समय में वनों का क्षेत्रफल कम होने के कारण मृदा पर बोझ अत्यधिक बढ़ जाती है और वह अनुपजाऊ हो जाती है इससे भी वन नष्ट हो रहे हैं। साथ, ही वनों में पशु अनियन्त्रित तरीके से घूमकर वनों को हानि पहुँचाते है।
6. जंगली आग (Forest Fire):-
गर्भ स्थानों में वन में आग लगने की सम्भावना बढ़ जाती है। गरमी में सूखी लकड़ी, टहनी व पत्तियाँ वनों में बहुतायत से रहती है। वनाग्नि हेतु मानवीय भूलं तथा प्राकृतिक दोनों कारण समान रूप से जिम्मेदार है। प्राकृतिक कारों में गर्मी व सूखे में पत्तियों व टहनियों के रगड़ खाने से अन्य आग लग जाती है। जबकि मानवीय कारकों में धूम्रपान, खाना पकाने में आग का प्रयोग, वन बस्तियों में आग लगना इत्यादि प्रमुख हैं। कुछ शरारती तत्व जान-बूझकर भी जंगलों में आग लगा देते है।
7. स्थानान्तरित कृषि (Shifting Agriculture):
कुछ क्षेत्रों में झूमिंग या स्थानान्तरित खेती की जा रही है जिसके अन्तर्गत एक स्थान के वनों को जलाकर खेती की जाती है। फिर कुछ वर्षों में दूसरे स्थानों के जंगलों को जला कर वहाँ खेती शुरू कर दी जाती है। इस प्रक्रिया से वनों का विनाश होता है। सरकार को इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट निति बनानी चाहिए।
8. जैविक कारण (Biotic Reasons):-
अनेक बार वन में किसी प्रकार की किट, बैक्टीरिया या फफूंद कर आक्रमण होता है जिससे भारी मात्रा में वनों का विनाश होता है। इससे होने वाली हानि को कम करने के लिए रसायनों का छिड़काव करना पड़ता है जोकि वनों की गुणवत्ता को कम करता है। कभी-कभी ऐसा करना आवश्यक भी हो जाता है जिसके विपरीत परिणाम देखने को मिलते है।
9. बाँधों का निर्माण (Construction of Dams):-
बाँधों के निर्माण के लिए वन क्षेत्रों को साफ किया जा रहा है। सिंचाई विद्युत उत्पादन तथा विकास हेतु आज वनों को काटकर बाँधों का निर्माण किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में टीहरी बांध बनाने से 36,000 हेक्टेयर जंगल नष्ट किए गए। इस सम्बन्ध में अनेक बाँधों का निर्माण प्रत्यक्षताः हम देखते हैं।
10. शहरीकरण (Urbanisation):
जनसंख्या वृद्धि तथा आधुनिकीकरण के कारण वर्तमान समय में वनों को काटकर शहरों का निर्माण किया जा रहा है। विकास के नाम पर आज मनुष्य ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन कर रहा है। अतः वनों को काटकर शहर तथा नगरौं का निर्माण किया जा रहा है। आधुनिकता के इस दौर में शहरीकरण की प्रक्रिया में कितना अधिक नुकसान बन क्षेत्रों को उठाना पड़ा है इसका अनुमान सहज रूप से लगाया जा सकता है।
11. व्यक्तिगत स्वार्थ (Personal Interest):
हम सभी जानते हैं कि आज समाज में व्यक्तिगत स्वार्थ चरम पर है। व्यक्ति हर समय अपने स्वार्थों एवं हितों की पूर्ति में लगा रहता है। उसे समाज के हित की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। उसने 'जियो और जीनो दो' के आदर्श वाक्य को झुठला दिया है तथा अपने स्वयं के हितों को साधने में डटा रहता है।
यहाँ तक कि जिस प्रकृति ने उसे अनेकों अमूल्य उपहार भेंट में दिये है वह उनकी भी अनदेखी करता है और प्रकृति के स्वरूप को बिगाड़ने व नष्ट करने में तनिक भी संकोच नहीं करता। वन-सम्पदा से उसे अपने हितों की तो चिन्ता है लेकिन उसका संरक्षण करना वह अपना दायित्व नहीं समझता।