Sea level rise: समुद्र स्तर का उठना क्या होता है?

समुद्र स्तर का उठना क्या होता है?

समुद्र स्तर का उठना (Rasing of Sea Level) :- विश्वतापन बढ़ते हरितगृह प्रभाव का परिणाम है। जिसमें पृथ्वी पर के तापक्रम में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस बढ़ते तापमान का असर विश्व भर के मौसम तंत्र पर पड़ना स्वभाविक है। जिससे कई समस्याओं की उत्पत्ति सम्भव है। विश्व के अनेक क्षेत्रों में वर्षा अधिक होगी तथा कहीं पर सूखे पड़ने लगेगें।


समुद्र स्तर का उठना क्या होता है?

इसके परिणाम स्वरूप खाद्यान्न उपज गड़बड़ा जाएगी और भोजन की कमी देखने को मिल सकती है। इस भावी परन्तु अनिश्चित जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक नाटकीय प्रभाव समुद्र तल के उत्थान के माध्यम से होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार उस शताब्दी में समुद्रतल 0.15 मी० ऊँचा उठा है। आज 18000 वर्ष पूर्व अन्तिम हिम युग के अवसान के समय समुद्र तट विद्यमान से 100 से 150 मीटर निम्न स्च्तर था।


जबकि कि 1 लाख वर्षों पूर्व, जब औसत तापमान विद्यमान की अपेक्षा 1°C से 2°C था, समुद्रतल विद्यमान तल से 5 से 7 मीटर ऊँचा था। 2050 ई० तक आकलित औसत तापमान वृद्ध के आधार पर समुद्रतल के 0.5 से 1.5 मीटर ऊँचा उठ जाने का अनुमान किया जाता है। इससे मालवीय जैसे निम्न समुद्र तटीय भाग जल निमग्न हो जाएंगे जिनमें आज की 25% अर्थात् एक अरब जनसंख्या बेघर हो जाएगी।


समुद्री खारा पानी के ऊपर आ जाने से पेय जल संकट उपस्थिति हो जाएगा और समुद्री अपरदन भी बढ़ जाएगा। हिमालय पर ग्लेशियर तेजी से पिघला रहे है। गंगोत्री ग्लेशियर प्रतिवर्ष 30 मीटर की रफ्तार से सिकुड़ रही है। उसका तात्कालिक घातक परिणाम यह होगा कि समुद्र के जल स्तर से 8 सेन्टीमीटर प्रतिवर्ष रफ्तार से वृद्धि हो जाएगी। जल स्तर 2 मी० बढ़ा तो मालवीय बांग्लादेश और भारत के कुछ हिस्से जल मग्न हो जाएंगे।


इस जलवायु परिवर्तन से इस बात की भी सम्भावना बढ़ जाती है कि हो सकता है ध्रुवों पर बर्फ पिघलने लगे जिससे समुद्री तल की ऊंचाई में वृद्धि हो जाय। और निचले भूभाग जल मग्न हो जायें। यह अनुमान है कि वर्तमान तापमान की वृद्धि गति से अगले सौ वर्षों में पृथ्वी पर का तापमान 3°C तक बढ़ सकता है जिसके फलस्वरूप 10 से 15 सेमी0 तक की जल सतह की वृद्धि से स्थिति बहुत अस्त व्यस्त हो जाएगी।


अनेक देशों के महत्त्वपूर्ण नमभूमि क्षेत्र, कच्छ वनस्पति तथा प्रवाल भित्ति क्षेत्र समाप्त हो जाएंगे। जिससे सम्पूर्ण विश्व की जैविक विविधता और उससे प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभों से हमें वंचित होना पड़ेगा।


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