पर्यावरण प्रदूषण : अर्थ, परिभाषा, कारण तथा प्रभाव

पर्यावरण प्रदूषण : अर्थ, परिभाषा, कारण तथा प्रभाव

पर्यावरण प्रदूषण (Environment Pollution)- पर्यावरणीय प्रदूषण की अर्थ एवं परिभाषा पर्यावरणीय प्रदूषण का अर्थ मुख्यतः लोगों के आस-पास के क्षेत्रों में प्रदूषित करना है, अर्थात प्रदूषण से अभिप्राय जल, वायु, मृदा, का क्रमिक रूप से दूषित होना है। इन सबके दूषित होने से पर्यावरण में हानिकारक व अवांछित अवशिष्ट पदार्थ पैदा हो जाते हैं।


पर्यावरण प्रदूषण : अर्थ, परिभाषा, कारण तथा प्रभाव

अवांछित अपशिष्ट पदार्थों के पैदा होने तथा एकत्रित होने से जल वायु तथा मृदा पर दूषित प्रभाव पड़ता है। जल, वायु और मृदा के दूषित होने से मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इसमें अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। जब कोई वस्तु किसी अन्य अनचाहे पदार्थों से मिलकर अपने भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन लाती है तो वह उपयोग के काम की नहीं रहती, तो वह प्रक्रिया और परिणाम दोनों ही प्रदूषण कहलाते हैं।


वह पदार्थ अथवा वस्तुएँ जिनसे प्रदूषण होता है प्रदूषक कहलाते हैं। इसी तरह से प्रदूषण की व्याख्या अनेक जगहों पर मिलती हैं- "वायु जल और मृदा में किसी भौतिक, रसायनिक, जैविक के अनचाहे परिवर्तन से, जिससे प्राणिमात्र के स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण को प्रभावी तौर से हानि पहुँचती हो, प्रदूषण कहलाता है।"


इस प्रकार हम उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कह सकते हैं कि निःसन्देह इस प्रकार के कार्य से उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण ने मानव जीवन को संकट में डाल दिया है। चूंकि पर्यावरण की रचना वायु, जल और मृदा आदि से मिलकर हुई। ये सभी घटक पारस्परिक सन्तुलन बनाए रखने के लिए एक दूसरे को प्रभावित करते रहते है।


यदि मनुश्य इनका उपयोग करते समय इसके साथ सामंजस्य नहीं बैठाता तो पर्यावरण असन्तुलित हो जाता है। इसलिए इस संकट से बचने के लिए एक सामान्य व्यक्ति को इससे संबंधित सभी आवश्यक जानकारी देने का प्रयास किया जाना चाहिए।


एश्चम हैरी के अनुसार: "पर्यावरणीय प्रदूषण जो मानवीय समस्याओं को प्रगति के ताने बाने तक पहुंचाता है, स्वयमेव सामान्य सामाजिक संकट का प्रमुख अंग है। यदि सभ्यता को लौटाकर बर्बर सभ्यता तक नहीं लाना है तो उस पर विजय प्राप्त करना आवश्यक है।


ओडम के अनुसार - "बायु, जल, मिट्टी, के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक गुर्गों के किसी ऐसे वांछनीय परिवर्तन से जिससे मनुष्य स्वयं को संपूर्ण परिवेश के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुंचात है। प्रदूषण कहते है।"।


पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण (Main Causes of Environmental Pollution)

पर्यावरण प्रदूषण के अनेक कारण हैं। आज प्रदूषण इतना अधिक फैलता जा रहा है कि इसने सम्पूर्ण जीब और जगत को विचलित कर दिया है। यह समस्या इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि यह अब केवल स्थानीय, राष्ट्रीय ही नहीं रही है बल्कि इसने अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर लिया है। इसका बिस्तार सम्पूर्ण संसार में हो चुका है और इसके लिए मनुष्य स्वयं ही उत्तरदायी है। पर्यावरण प्रदूषण के कारणों को हम निम्नलिखित रूप में लिपिबद्ध कर सकते हैं- 


1. बढ़ती आबादी (Population)

भारत ही नहीं अपितु विश्व की तीव्रगति से बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण को प्रदूषित करती है। प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति, प्राकृतिक संसाधनों को सौमित उपलब्धता, अनियन्त्रित भीड़, कोलाहल, ध्वनि प्रदूषण की अधिकता का विनाश आदि बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण का प्रमुख कारण है। 


2. औद्योगीकरण (Industrialization)

मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विज्ञान और तकनीकी के सहारे अनेक उद्योग, विभिन्न प्रकार के कल-कारखानें स्थापित किए गए है। तीव्रगति से स्थापित होने वाले इन उद्योगों ने वायुमण्डल को ही प्रदूषित नहीं किया है अपितु इनके अपशिष्ट पदार्थों ने जल को भी प्रदूषित किया है और कर रहे हैं। वाहनों के धुओं और आवाज ने प्रदूषण को और अधिक बढ़ावा दिया है।


अतः औद्योगीकरण प्रदूषण का प्रमुख आवश्यक कारण है। उद्योगों से निकलने वाले धुएँ (कार्बन पदार्थों) से हवा दूषित हो रही है, जल और मिट्टी दोनों प्रदूषित हो रहे हैं। आज औद्योगीकरण प्रदूषण का मुख्य कारण है।


3. शहरीकरण (नगरीकरण) (Urbanization)

उद्योगों की स्थापना मुख्यतः शहरों में हुई क्योंकि उद्योग स्थापना के प्रमुख आधार (बिजली आदि) शहरों में उपलब्ध थे। इस औद्योगिक प्रगति ने रोजगार के लिए लोगों को आकर्षित किया, परिणामस्वरूप गांवों से लोगों का पलायन शहरों की ओर हुआ। इस बढ़ती शहरी आबादी ने अनेक पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है और दे रहे है। अतः बढ़ता शहरीकरण का मोह पर्यावरणप प्रदूषण का महत्वपूर्ण कारण है।


4. वैज्ञानिक प्रगति (Science and Technology) 

विज्ञान और तकनीकी को प्रगति ने अनेक शोध, खोज के आधार पर प्रत्येक क्षेत्र का तीव्र गति से विकास किया है। इस विकास में अनेक रासायनिकों का प्रयोग बढ़ा है, ऊर्जा स्रोतों का विकास हुआ है। इस प्रकार जितनी तेजी से तकनीकी विकास हुआ है, विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा है, उतनी ही तेजी से इनके अपशिष्टों के कारण पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ा है। अतः वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी शोधों ने प्रदूषण को बढ़ावा दिया है। इस प्रकार यह वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी विकास प्रदूषण का महत्वपूर्ण कारण है।


5. तेल से चलने वाले साधन (Fuel-based Vahicles)

आधुनिक वाहन, यातायात के साधनों में कोयला, पेट्रोल, गैस आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे गैस, धुआँ आदि वायुमंडल में फैल जाता है और पर्यावरण को प्रदूषित करता है। यही नहीं इनके लिए सड़क और रेल मार्गों का निर्माण किया जाता है जिससे भूमि और बनस्थति (पेड़-पौधों) का विनाश होता है, फलस्वरूप पर्यावरणय प्रदूषित होता है।


इस प्रकार असवागमन के साधन पर्यावरण पदूषण के महत्वपूर्ण कारण है। सड़क पर विभिन्न वाहनों के धुओं में हानिकारक कार्बन-डाई आक्साइड (स्कूटर, मोटर साइकिल, कार, मोटर टुक ट्रेनें, बसें आदि की इतनी मात्रा है कि इनसे वायु प्रदूषित हो रही है, दमा जैसे रोग चढ़ रहें हैं और तेल पदार्थों के अत्यधिक प्रयोग होने से एक दिन ये भी समाप्त हो जायेंगे।


6. वन विनाश एवं अनियोजित विकास

अभियोजित विकास से एक क्षेत्र पर दबाव अधि एक हो जाता है जबकि दूसरे क्षेत्र का विकास अवरुद्ध हो। जैसे औद्योगिक विकास से शहरीकरण और शहरों में अत्यधिक जनसंख्या के दबाव से प्रदूषण को तीव्र गति से बढ़ावा मिला है।


इसी प्रकार मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति और स्वार्थ पूर्ति हेतु वनों की अंधाधुन्ध कटाई की है। इसके फलस्वरूप पर्यावरण असन्तुलित हुआ है और पर्यावरण प्रदूषण में उतनी ही तेजी से वृद्धि हुई है जितनी तेजी से वनों का विनाश हुआ है। यहीं नहीं इससे मिट्टी का कटान बढ़ रहा है, समय से वर्षा होने पर प्रभाव पड़ रहा है और साथ ही वन सम्पदा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है।


7. कीटनाशक एवं रासायनिक खादों का अनियन्त्रित प्रयोग (Use of Chemicals)

आजकल कृषि में रासायनिक खादों का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है और अवांछित खरपतवार एवं कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए कीटनाशक दबावों का प्रयोग बढ़ा है। ये पदार्थ मिट्टी, जल, वायु आदि में एकत्रित होकर उसे प्रदूषित कर देते हैं। फिनाइल, गंधक, डी०डी०टी०, पोटेशियम, सल्फर डाई-ऑक्साइड आदि पदार्थों एवं अन्य विविध कोटनाशकों के प्रयोग से पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता है। इस प्रकार कीटनाशक पर्यावरण प्रदूषण का महत्वपूर्ण कारण है।


8. घरों और उद्योगों से निकलने वाला कूड़ा-कर्कट (Waste Materials)

कूड़े-कर्कट का ढेर जीवाणुाओं को जन्म देता है। जीवाणुओं के प्रभाव से यह सड़ने लगता है, इससे दुर्गन्ध और गैसें निकलने लगती है। ये सब पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं।


9. अपशिष्ट रासायनिक पदार्थ (Waste Chemicals)

उद्योग से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ जल और वायु को दूषित करते है। ये पदार्थ जलीय जीवों पर भी बुरा प्रभाव डाल रहे है।। इसके साथ ही गन्दे पदार्थों को नदियों में प्रवाहित करने से जल दूषित हो रहा है। इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा देने में अपशिष्ट रासायनिक पदार्थ का भी महत्वपूर्ण योगदान है।


10. इलैक्ट्रिक उपकरणों का प्रयोग (Use of Electronic Tools) 

वर्तमान में इलैक्ट्रानिक उपकरणों-रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, कम्प्यूटर आदि से इलेक्ट्रानिक रेंज (Rays) निकलती है। शोधों के परिणाम बताते हैं कि इनसे आँखों और फेफड़ों की बीमारियाँ और कैंसर जैसी भयंकर बीमारियाँ बढ़ेगी।


11. जागरूकता की कमी (Lack of Awareness)

बढ़ते हुए प्रदूषण और प्राकृक्तिक संसाधनों के दोहन का एक बड़ा कारण यह भी है कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता नहीं है, वे इस समस्या को इतनी गम्भीरता से नहीं ले रहे हैं जितनी कि यह गम्भीर है।


अतः हम कह सकते हैं कि पर्यावरण प्रदूषण काकोई एक कारण नहीं है अपितु अनेक कारण ह। ये घर से प्रारम्भ होकर स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे है, और मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहे है, अनेक रोगों को जन्म दे रहे हैं। इनका बुरा प्रभाव प्रत्येक क्षेत्र में स्पष्ट दिखाई दे रहा है।


पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख प्रभाव (Major Effects of Environmental Pollution)

मनुष्य वस्तुओं का उपभोग खाकर, पौकर एवं सूघ कर करता है किन्तु ये तीनों ही आज प्रदूषित है। एवं प्रदूषित प्रभाव प्रत्येक वर्ग पर पड़ रहा है। प्रदूषण के प्रभाव को हम निम्नलिखित रूप में समझ सकता है।


1. पर्यावरण प्रदूषण से मानव के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, यह प्रदूषण अनेक रोर्गों को जन्म देता है और मानव जीवन में असुरक्षा बढ़ जाती है। 


2. पर्यावरण प्रदूषण अनेक प्राकृक्तिक आपदाओं को जन्म देता है। इसके कारण जीव, जगत की अत्यधिक हानि उठानी पड़ती है। 


3. पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव से समय चक्र बदलने लगता है। ऋतुओं-सर्दी, गर्मी, वर्षा का चक्र परिवर्तित होने लगता है और जीवों को अपनी जैविक क्रियाओं में कठिनाई होने लगती है।


4. पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव मनुश्रू के लिए उपयोगी वस्तुओं, धातु, कपड़ा, इमारतें आदि की हानि पर भी पड़ता है। मनुष्य को इनकी हानि का सामना करना पड़ता है।


5. पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव फसलों पर भी पड़ता है। मनुष्य को प्राप्त होने वाली - भोज्य पेय और व्यापारिक फसलों की हानि होती है और इनकी पूर्ति करना कठिन कार्य हो जाता है।


6. पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव प्राकृतिक असन्तुलन पैदा करता है। इससे जल, वायु और भूमि में हानिकारक परिवर्तन होते है और जीवों के लिए पदार्थों की हानि होती है।


7. पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव को कम करने अथवा नियन्त्रित करने के लिए अत्यधिक धन का अपव्यय करना होता है। यहीं नहीं मानव स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव के रोगों की रोकथाम के लिए अत्यधिक व्यय करने पर भी नियन्त्रण होने में अधिक कठिनाई होती है। जैसे पोलियों, कैन्सर आदि।


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