पर्यावरणीय संकट (प्रकोप) || Environmental Hazard
पर्यावरणीय संकट या प्रकोप भूकम्प, ज्वालामुखी, बाढ़, तूफान, वायु, जल, भूमि, शोर, आदि से होने वाली भयावह एवं प्रलयकारी स्थिति, जिसके कारण अपार जन-धन की हानि होती है। पर्यावरण प्रकोप चारों ओर से घेरे हुए हैं और पर्यावरणीय प्रकोप पर्यावरण को हानि पहुंचाना है अथवा पर्यावरण को हानि पहुंचने का जोखिम है।
अतः पर्यावरणीय प्रकोप से तात्पर्य किसी भी स्थिति या घटनाओं के उस कथन से है जिसमें चारों ओर से घिरे प्राकृतिक पर्यावरण को हानि पहुंचती है और मानव के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह प्रदूषण और प्राकृतिक आपदा से सम्बन्धित है जैसे तूफान, भूकम्प, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोट आदि।
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अतः प्राकृतिक प्रकोप चाहे वह प्राकृक्तिक हो, रासायनिक हो, जैविक हो, यह मनुष्य, जीवों एवं पर्यावरण को हानि पहुंचाता है।
प्राकृतिक प्रकोप के कारण (Causes of Environmental Hazard)
प्राकृतिक प्रकोप के अनेक कारण हैं किन्तु सुविधा की दृष्टि से इन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -
1. प्राकृतिक प्रकोप एवं संकट
मानव जनित प्रकोप प्राकृतिक प्रकोप एवं संकट (Natural Hazards & disaster) :- प्राकृतिक प्रकोप एवं संकट वाह्य (वायुमण्डल से उत्पन्न होने वाले) तथा आन्तरिक (पृथ्वी के अन्दर से उत्पन्न होने वाले) प्रक्रमों द्वारा उत्पन्न होते हैं। जो मानव को शारीरिक, मानसिक, एवं आर्थिक दृष्टि से क्षति पहुँचाते हैं।
UNDRO (United Nations Diasaster Relife Coordinatior) की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में जो भी प्राकृक्तिक प्रकोप या संकट आते हैं उनमें से 90% विकासशील देशों में घटित होते हैं।
इस रिपोर्ट पर अगर सूक्ष्मतम अध्ययन किया जाय तो यह पूरी तरह से सत्य प्रतीत नहीं लगती। क्योंकि जो प्राकृतिक प्रकोप होते हैं वह विकसित या विकासशील देशों की सीमा को नहीं देखते, यह किसी राजनैतिक या आर्थिक सीमा की परवाह नहीं करते।
आज बड़े-बड़े तूफान विकसित देशों को हो तबाह कर रहे है। वास्तव में UNDRO ने अपनी जो रिपोर्ट दी है उसके पीछे कारण यह है कि अधिकांश विकासशील देश उष्ण एवं उपोष्ण प्रदेशों में स्थित हैं जहाँ वायुमण्डलीय प्रक्रमों द्वारा आये दिन कई प्रकार के प्रकोपों जैसे भूकम्प, सूखा, बाढ़ आदि का आविर्भाव होता रहता है।
M. Harshizume के अनुसार, विकासशील देश प्रायः प्रकोपी से पीड़ित रहते हैं। वास्तव में वे प्रकोपों के साथ रहते हैं। प्राकृतिक प्रकोपों के कारण विकासशील देशों में इतनी अधिक आर्थिक क्षति होती है कि विकास परियोजनाएँ मटियामेट हो जाती है।
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