मूल्यांकन द्वारा बालक की प्रगति का मूल्यांकन ( Moolyaankan Dvaara Baalak Kee Pragati ka Moolyaankan)
मूल्यांकन द्वार छात्रों के व्यवहारगत परिवर्तन, मूल्यों, योग्यताओं, चरित्र, रुचियों, अभिवृत्तियों एवं उपलब्धियों का ज्ञान होता है।
सामाजिक अध्ययन में प्रयुक्त शिक्षण विधियों तथा प्रविधियों को उपादेयता एवं कमियों को ज्ञात करना भी मूल्यांकन का ही कार्य है।
सामाजिक अध्ययन शिक्षण अधिगम हेतु उचित शिक्षण-व्यूह रचना का विकास तथा सुधार भी मूल्यांकन द्वारा सम्पादित होता है।
मूल्यांकन का कार्य केवल उद्देश्य प्राप्ति की सीमा को जानने तक ही सीमित नहीं है, वरन इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि किन उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो सकी है, ताकि समुचित उपचारात्मक अनुदेशन दिया जा सके।
कक्षा में छात्रों के उद्देश्य प्राप्ति के आधार पर उनका स्तरीकरण एवं प्रमाणीकरण भी मूल्यांकन द्वारा किया जाता है।
मूल्यांकन का एक प्रमुख उद्देश्य एवं कार्य यह भी है कि प्रक्रिया शिक्षक तथा छात्र दोनों के लिए पुनर्बलन (Reinforcement) का कार्य करती है।