पुनर्बलन सिद्धांत - Reinforcement Theory

पुनर्बलन सिद्धांत - Reinforcement Theory

हल ने सीखने का एक औपचारिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया है. जिसमें अनेक स्वयं सिद्धियों एवं प्रमेय हैं। हल का यह कार्य, 1943, 1951, तथा 1952 में प्रकाशित हुआ। हल सीखने के सिद्धान्तों के एक प्रभावशाली प्रतिपादकों में से हैं। इन्होंने प्रेरणात्मक चरों का मापन ही नहीं किया है वरन् प्रेरणा सम्बन्धी अध्ययनों को मात्रात्मक रूप दिया है। हल का सिद्धान्त जिनमें 17 स्वयं सिद्धियाँ Mathematico Deductive Theory के नाम से जाना जाता है।


चूँकि हल द्वारा प्रतिपादित सभी स्वयं सिद्धियों का केन्द्र सम्प्रत्यय पुनर्बलन है, अतः हल के सिद्धान्त को पुनर्बलन के सम्बन्धी प्रयोगों पर आधारित है जो मुख्यतः उसने चूहों पर किये हैं। पशु मनोविज्ञान के सम्बन्धी प्रयोगों पर आधारित है जो मुख्यतः उसने चूहों पर किये हैं। हल के अनुसार जीव की अनुक्रियाओं की भविष्यवाणी तब की जा सकती है जबकि सम्वन्धित चरों का ज्ञान हो जाय। उसने जीव की अनुक्रिया की भविष्यवाणी के लिए सम्बन्धित चरों को संकेतों के रूप में तथा सम्पूर्ण प्रक्रिया को समीकरण के रूप में व्यक्त किया है। सन् 1943 में प्रतिपादित समीकरण निम्न प्रकार से हैं-


sEr = sHr x डी


जबकि : sEr = प्रतिक्रिया सम्भाव्यता अथवा प्रतिक्रिया करने की शक्ति (Reaction Potential)

sHr = आदत शक्ति (आदत शक्ति)

डी = इंटर्नॉड (ड्राइव)


उपरोक्त समीकरण का अर्थ है कि जीव प्रतिक्रिया करने की शक्ति आदत शक्ति ओ अन्तनोंद के गुणफल के बरावर होती है। आदत शक्ति और अन्तर्नोद में कोई भी चीज यदि शुन्य होती है तो निश्चय ही जीव की प्रतिक्रिया करने की शवि भी शून्य हो जायेगा यदि जीव भूखा नहीं है तो उसमें अन्तर्नोद (D) उत्पन्न नहीं होगा अर्थात् अन्तर्मोद शून्य होगा।


इसी प्रकार से यदि जीव ने पहले कभी प्रत्युत्तर की अनुक्रिया नहीं की है तो आदत शक्ति शून्य होगी। स्पष्ट है कि यदि D शून्य होगा अथवा sHr शून्य होगा अथवा दोनों शून्य जीव प्रत्युत्तर नहीं देगा अथवा प्रतिक्रिया करने की शक्ति (sEr) नहीं होगी अथवा सीखेगा नहीं। बस तभी सीखेगा जबकि D और sEr की कुछ न कुछ मात्रा या मूल्य होगी।

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