उदोलन सिद्धांत ( Arousal Theory )
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के इस सिद्धान्त के अनुसार जब पर्यावरणीय उद्दीपक व्यक्ति के सम्पर्क में आता है, तब व्यक्ति के उदोलन का स्तर पहले से अधिक हो जाता है, अर्थात् पर्यावरणीय उद्दीपकों से व्यक्ति का उदोलन स्तर बढ़ जाता है। व्यक्ति के उदोलन के स्तर का मापन दो स्तर पर किया जाता है-
(1) दैहिक स्तर,
(2) व्यावहारिक स्तर।
उदोलन के स्तर का मापन दैहिक स्तर पर बढ़े हुए हृदय गति एवं रक्तदाब जैसे- स्वचालित क्रियाओं के द्वारा किया जाता है, जबकि व्यावहारिक स्तर पर, शारीरिक क्रियाओं में वृद्धि एवं आत्म प्रतिवेदन के द्वारा किया जाता है। स्नायुदैहिकी के अनुसार 'मस्तिष्क के उदोलन केन्द्र के द्वारा मस्तिष्क की क्रियाओं में होने वाली वृद्धि को ही उदोलन कहते हैं।'
हेब्स नामक मनोवैज्ञानिक ने इस उदोलन को नाम दिया है। वरवाइन ने बताया है कि व्यक्ति के सोने की स्थिति से लेकर अत्यधिक उत्तेजित होने की स्थिति के बीच, जो विभिन्न स्तर पर उदोलन होता है, उसे सरलता से देखा जा सकता है।
विभिन्न विद्वानों ने उदोलन को विभिन्न नामों की संज्ञा दी है। कुछ विद्वानों ने उदोलन को आनन्द (Pleasure) तथा कुछ ने प्रभुत्व (Dominance) नाम दिया है। मेहरावियन एवं रसेल ने उदोलन (Arousal) को आनन्द तथा प्रभुत्व के अलावा एक तीसरी विमा के रूप में स्वीकार किया है, जिसके द्वारा सभी प्रकार के पर्यावरण की व्याख्या की जा सकती है।
उदोलन सिद्धान्त (Arousal Theory) निम्न तथा उच्च उदोलन की स्थिति में व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव का भविष्यकथन विभिन्न प्रकार से करता है। यह सिद्धान्त पर्यावरणीय कारकों (तापमान, भीड़, कोलाहल आदि) का व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है, उसकी व्याख्या करने में अत्यन्त उपयोगी होता है।