जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों पर पर्यावरण का प्रभाव

जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों पर पर्यावरण का प्रभाव | Effect of Environment on Population and Natural Resources

जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपभोग और तीव्र दोहन हो रहा है जिसका परिणाम मृदा निम्नीकरण, जैव विविधता में कमी और वायु, जल स्रोतों के प्रदूषण के रूप में दिखाई पड़ रहा है। अत्यधिक दोहन के कारण पर्यावरण का क्षरण हो रहा है तथा मानव जाति और उसकी उत्तरजीविता के लिये खतरा उत्पन्न कर रहा है। पर्यावरण अवनयन विशेषकर निर्धन ग्रामीणों मे गरीबी बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख कारक है।

 

जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों पर पर्यावरण का प्रभाव | Effect of Environment on Population and Natural Resources


प्राकृतिक संसाधनों विशेषकर जैवविविधता पर ग्रामीण निर्धनों व आदिवासियों की निर्भरता स्वतः सिद्ध है। देखा जाए तो महिलाओं पर इन प्राकृतिक संसाधनों के अवनयन का बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि इन संसाधनों को एकत्र एवं उपयोग के लिये वे प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी होती हैं।


कुछ मानवीय क्रियाकलापों जैसे-वनोन्मूलन के कारण मृदा अपरदन, भूस्खलन, गाद का जमाव, वन्य पर्यावरण में क्षति हो रही है, जिसके फलस्वरूप वन्य जीवों के संकटापन्न होने की स्थिति उत्पन्न हो रही है तथा कई वन्यजीव विलुप्त होने की कगार पर हैं। 


अनवीकरणीय ऊर्जा के अत्यधिक उपयोग से पद्मवरण प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। बढ़ती जनसंख्या के लिये स्थान, आश्रय और उपयोगी वस्तुओं को आवश्यकता के कारण पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है और इन सभी वस्तुओं को उपलब्ळ कराने के लिये नाटकीय तरीके से भूमि का प्रयोग बदल रहा है।


पर्यावरण अवनयन पर्यावरण में उत्पन्न असंतुलन का परिणाम है जो मानवीय या प्राकृतिक गतिविधियों के कारण होता है। ऐसी मानवीय गतिविधियाँ जिनका प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उनमें शमिल हैं


1. खनन

2. औद्योगीकरण

3. आधुनिक कृषि

4. शहरीकरण

5. आधुनिक प्रौद्योगिकी


1. खनन का पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental impact of mining)

पृथ्वी धातुओं और खनिज संसाधनों से परिपूर्ण है। प्रौद्योगिकी विकास की प्रक्रिया ने खनन तकनीकों को सुदृढ़ किया है जिससे संसाधनों का उत्तरोत्तर रूप में तेजी से खनन किया जा रहा है। अब इन संसाधनों के समाप्त होने की आशंका वैज्ञानिकों व विश्लेषकों द्वारा व्यक्त की जा रही है।


पृथ्वी से खनिजों के निष्कर्षण के दौरान बड़ी मात्रा में कूड़े का ढेर उत्पन्न होता है। खनिज अपशिष्टों के ढेर से भूमि का एक बहुत बड़ा भाग घिर जाता है जो कृषि कार्यों के लिये भी अयोग्य हाता है। खनन क्षेत्र अधिकांशतः दुर्गम या वनीय क्षेत्रों में होते हैं जिससे वनोन्मूलन की समस्या भी उत्पन्न होती है।



2. औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव (Impact of industrialisation on environment)

तीव्र गति से जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक वस्तओं का निर्माण किया जाता है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि इन्हीं आवश्यक वस्तुओं के निर्माण का परिणाम है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया का पर्यावरण पर प्रीतव इसलिये देखा जाना जरूरी है क्योंकि कच्चे माल के रूप में उद्योग प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं।


जिनके शीघ्र समाप्त हो जाने का खतरा है। भारत सरकार ने पर्यावरण के प्रति मैत्रीपूर्ण भारतीय उत्पादों के लिए इकोमार्क नाम एक लेबलिंग योजना वर्श 1991 में प्रारंभ की। उद्योगों से निकली विषैली गैसों द्वारा वायुप्रदूषण तथा निसृत अपशिष्ट द्वारा जल प्रदूषण के साथ मृदा प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है जो मानव तथा अन्य जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।


3. आधुनिक कृषि का पर्यावरण पर प्रभाव (Impact of modern agriculture on environment)

जनसंख्या में तीव्र वृद्धि उत्पादों की मांग में वृद्धि की है जिससे अधि क-से-अधिक फसलों को ठगाने के लिये वनों को खेती के उपयुक्त भूमि में बदला जा रहा है। यह समस्या विशेषतः जनजातीय क्षेत्रों में देखी जा रही हैं। खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के लिये शुरू की गई हरित क्रांति ने कृषि में कृत्रिम उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा दिया है जिससे (भूमि एवं जल प्रदूषण) अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ हो रही है।


कृषि में कीटनाशकों के बढ़ते उपयेग से फसल को हानि पहुँचाने वाले कीटों के साथ वे कीट भी मर जाते हैं जो कृषि में परागरण की क्रिया के लिए उपयोगी होते हैं। कीटनाशकों की मात्रा में वृद्धि खाद्य श्रृंखला को भी प्रभावित करती हैं।


कृषि में बढ़ता बाजारीकरण उच्च उत्पाद देने वाली किस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देता है जिससे उच्च उत्पाद देने वाली फसले पारम्परिक फसलों वाली कृषि स्थान ले लेती है। पारम्परिक फसेलें बहुफसली पद्धति पर आधारित होने के कारण फलस चक्रण के नियमों का पालन करती थी जिससे मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी नहीं होती थी, किन्तु उच्च उत्पाद वाली फसलें एकल कृषि को बढ़ावा देती हैं जो लम्बे समय में मृदा में पोषक तत्त्वों में कमी लाती है जिससे उत्पादन एवं उत्पादकता प्रभावित होती है।


4. शहरीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव (Impact of urbanisation on environment)

बढ़ता शहरीकरण विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देता है क्योंकि शहर अपनी मूलभूत सुविधाओं के कारण जनसंख्या के आकर्षण का केन्द्र होते हैं। शहरों में बढ़ती जनसंख्या के कारण स्थानीय संसाधन पर गहन दबाव पड़ता है जिससे नित नई समस्याओं का जन्म होता है।


शहरों में लोगों के निवास, उद्योगों की स्थापना तथा सड़क व अन्य सुविधाओं हेतु उपजाऊ भूमि का ही उपयोग हो रहा है। यह प्रवृत्ति निकट भविष्य में खाद्य संकट का कारण बन सकती है। शहरी जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उद्योगों को शहरों या उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में स्थापित किया जाता है। ये स्थापित उद्योग शहरों में प्रदूषण के बड़े स्रोत हैं।


शहरों में प्रदूषण के बड़े स्रोत हैं। शहरों में परिवहन के साधनों यथा-बस, कार, ट्रक आदि से निकलता धुआँ यहाँ प्रदूषण का बड़ा कारण है। घरेलू व औद्योगिक बहिस्रवों को बिना किसी निपटान के सीधे झीलों या नदियों में डाला जाता है। जिससे इन नगरों के समीपवर्ती झील व नदियों का पानी पीने योग्य नहीं रह गया है और इससे मानव के साथ जलीय जीवों के अस्तित्व पर भी संकट उत्पन्न हो गया है।


नगरीय क्षेत्रों में कंक्रीट की इमारतों, सड़क व अन्य आधारीय क्षेत्रों के निर्माण में सीमेन्ट व कंक्रीट की अधिकता रहती है। इन इमारतों को बनाने में पेड़ो, वनीय क्षेत्रों को साफ किया जाता है जिससे वे कंक्रीट संरचना सूर्यातपन का अधिक अवशोषण करती हैं।


नगरीय क्षेत्रों में प्रदूषण आदि के कारण नगरी धूम कोहरा के निर्माण से नगरी क्षेत्र का तापमान आसपास के क्षेत्र से 5 डिग्री से 8 डिग्री तक अधिक होता है तथा नगर उष्मा द्वीपके रूप में कार्य करने लगता है। इससे किसी नगर में विशिष्ट जलवायु विकसित होती है जो यहाँ की मौसमी जलवायवीय व पर्यावरणीय दशाओं को प्रभावित करती है।


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