विद्यालय पाठ्यक्रम में नागरिक शास्त्र की स्थिति || Status of Civics in School Curriculum
प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डॉ० डी० सी० मिश्र ने अपने शब्दों में लिखा है कि "नागरिकशास्त्र व्यक्ति को उचित ज्ञान एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करके योग्य नागरिक बनाता है जिससे व्यक्ति समाज में अपने को व्यवस्थित कर सके तथा समाज को उन्नति के पथ पर अग्रसर कर सके।
यह शास्त्र व्यक्तियों के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का ज्ञान प्रदान करता है और यह भी बताता है कि एक आदर्श नागरिक अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों का पालन इस ढंग से करे जिससे व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं विश्व का कल्याण हो सके।" नागरिकशास्त्र को विद्यालय पाठ्यक्रम में एक पृथक् विषय का स्थान मिला है। इसके अधोलिखित कारण हैं-
1. अमेरिकन स्वतन्त्रता युद्ध तथा फ्रांस की क्रान्ति के परिणामस्वरूप प्रजातान्त्रिक शासन के लिए शक्तिशाली माँग की गई और स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के नारे लगाये गये जो कि प्रजातन्त्र के मूलाधिकार हैं। लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था जनता, जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाई जाने वाली सरकार है।
इस कारण यह आवश्यक हो गया है कि जनता सामाजिक तथा राजनैतिक रूप से जागरूक हो। इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विद्यालय पाठ्यक्रम में नागरिकशास्त्र को एक पृथक् स्थान प्रदान किया गया जिसके अध्यापन से बालकों को सफल व्यावहारिक एवं आदर्श सामाजिक एवं नागरिक जीवन व्यतीत करने के लिये तैयार किया जा सके।
2. आधुनिक समाज एक जटिल समाज है जिसे समझने तथा व्यवस्थित होने के लिए इस शास्त्र का ज्ञान परमावश्यक है। इसके ज्ञान से मनुष्य अपना सजीवन व्यतीत करने के लिए समर्थ हो जाता है। इसीलिए विद्यालय पाठ्यक्रम में नागरिकशास्त्र को स्थान प्रदान किया गया है।
3. सफल एवं सुखद जीवन के लिए सभ्य जीवन की कला तथा विज्ञान में मनुष्य को प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक है। अतः प्रत्येक समाज के सदस्यों को सफल एवं सुखद नागरिक जीवन की कला में प्रशिक्षण प्रदान कराना परमावश्यक है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए विद्यालय पाठ्यक्रम में नागरिकशास्त्र को एक पृथक् विषय का स्थान प्रदान किया है।
4. विद्यालय पाठ्यक्रम में इसको स्थान प्रदान करने का मुख्य कारण यह भी है कि इसके द्वारा हमारी सभ्यता की महत्त्वपूर्ण विशेषता जीवन के प्रजातन्त्रीय ढंग को सुरक्षित एवं उन्नत बनाया जाता है। यह शास्त्र बालकों को उचित प्रकार से प्रदर्शित करता है जिससे बालकों में उचित प्रकार की सामाजिक एवं वैयक्तिक आदतों का निर्माण हो सके।