सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा ( Sookshm Shikshan ka arth Evan Paribhaasha )
सूक्ष्म अध्यापन अध्यापकों को कक्षा अध्यापन प्रक्रिया की शिक्षा देने हेतु निर्मित नवीन शिक्षा प्रणाली है। आधुनिकतम अवधारणा के अनुसार केवल जन्मजात गुणों से ही युक्त अध्यापक नहीं प्राप्त होते, वरन् अध्यापकों को उत्पादित (निर्मित) किया जा सकता है और अध्यापक निर्माण का दायित्व प्रशिक्षण संस्थानों पर है। इस दायित्व के निर्वहन में शैक्षिक तकनीकी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अवधारणा की मान्यता है कि अध्यापकों का व्यवहार परिवर्तन सम्भव है तथा इस कार्य के सम्पादन एवं प्रभावशाली अध्यापकों के निर्माण हेतु शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से जो विधि विकसित की गई है, उसका नाम है सूक्ष्म शिक्षण।
इस विधि को 1963 ई० में डी० एलन ने स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षण व्यवहारों एवं शैक्षिक प्रक्रिया के विकास हेतु विकसित किया। इन शिक्षण व्यवहारों या प्रक्रियाओं को शिक्षण कौशल का नाम दिया गया। सूक्ष्म शिक्षण वास्तव में कक्षा अध्यापन की विधि नहीं है। यह शिक्षक प्रशिक्षण की एक प्रयोगशाला एवं विश्लेषणात्मक विधि है।
सूक्ष्म शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य छात्राध्यापकों में विभिन्न शिक्षण कौशलों को विकसित करना है। डी० एलन ने इसे परिभाषित करते हुए कहा- " सूक्ष्म शिक्षण किसी कक्षा आकार एवं समय में सूक्ष्म पदीय परिस्थिति है।" मैक्नाइट के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण वह सूक्ष्मपदीय शिक्षण परिस्थितियाँ हैं जिनका आयोजन पुराने कौशल में सुधार एवं नवीन कौशलों के विकास के लिए किया जाता है।"
सूक्ष्म शिक्षण में अन्तर्निहित मान्यताएँ
1. सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है, परन्तु उद्देश्य शिक्षण कौशलों का विकास करना है, छात्रों की योग्यता का विकास करना नहीं।
2. सूक्ष्म शिक्षण सामान्य कक्षा की अध्यापन जटिलताओं को न्यून करता है, क्योंकि इसमें कक्षा का आकार, विषय-वस्तु तथा समय कम हो जाता है।
3. सूक्ष्म शिक्षण विशेष शिक्षण कौशल विकास के प्रशिक्षण पर केन्द्रित होता है। अध्यापन के समय एक कौशल का अभ्यास उसमें प्रवीणता प्राप्त होने तक किया जाता है।
4. प्रतिपुष्टि (Feed back) की सुविधा के कारण सूक्ष्म शिक्षण द्वारा अध्यापकों को अभ्यास में अधिक नियन्त्रण की अनुमति प्रदान की जाती है, जिससे प्रशिक्षण कार्यक्रम में उच्चस्तरीय नियन्त्रण की रचना की जा सके।
5. सूक्ष्म शिक्षण परिणामों के ज्ञान तथा प्रतिपुष्टि आयाम को विस्तार प्रदान करता है। यह एक उच्च स्तरीय वैयक्तिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है।
सूक्ष्म शिक्षण के विभिन्न घटक
सूक्ष्म शिक्षण के विभिन्न घटक- सूक्ष्म शिक्षण में कुछ घटकों की उपस्थिति अनिवार्य है, क्योंकि इस प्रविधि की सफलता इन घटकों के बिना संदेहजनक प्रतीत होती है। सूक्ष्म शिक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित हैं-
1. सूक्ष्म शिक्षण परिस्थिति- इस घटक के अन्तर्गत कक्षा का आकार, विषय-वस्तु का विस्तार तथा शिक्षण विधि सम्मिलित है। सूक्ष्म शिक्षण के लिए उपयुक्त परिस्थिति है- एक कक्षा में 5 से 10 छात्र, 5 से 20 मिनट की अवधि का शिक्षण चक्र तथा एक इकाई में विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण।
2. शिक्षण कौशल - प्रशिक्षण कार्यक्रम में छात्राध्यापकों के शिक्षण कौशल के विकास को प्रमुखता दी गई है। जैसे-व्याख्या अथवा भाषण कौशल, श्यामपट्ट लेखन कौशल अथवा प्रश्न पूछने का कौशल इत्यादि।
3. छात्र अध्यापक- -सूक्ष्म शिक्षण का एक और महत्त्वपूर्ण घटक है छात्र-अध्यापक, जिनमें विभिन्न कौशलों का विकास करना ही सूक्ष्म शिक्षण का लक्ष्य है।
4. प्रतिपुष्टि उपकरण - छात्राध्यापकों में व्यवहारगत परिवर्तन प्राप्त करने हेतु प्रतिपुष्टि प्रदान करना अत्यन्त आवश्यक है, जिसके लिए उपकरणों की आवश्यकता होती है, जैसे- वीडियो टेप आडियो टेप अथवा प्रतिपुष्टि प्रश्नावली आदि।
5. सूक्ष्म शिक्षण प्रयोगशाला- सूक्ष्म शिक्षण हेतु एक प्रयोगशाला का होना भी परमावश्यक है, जिसमें प्रतिपुष्टि के लिए आवश्यक सुविधाएँ एवं उपकरण संगठित किएँ जा सकें।