व्याख्यान विधि के गुण - Vyaakhyaan Vidhi ke Gun
1. बोले हुए शब्दों का छपे हुए शब्दों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होना
यह निश्चित रूप से सत्य है कि बोले हुए शब्द छपे हुए शब्दों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होते हैं। अध्यापक अपनी मुख मुद्राओं, हाव-भाव तथा ध्वनि आदि के द्वारा उस वास्तविक भाषा या अर्थ को प्रस्तुत कर सकता है जिसे वह बालकों को प्रदान करना चाहता है।
वह उस दृश्य, कहानी अथवा संदेश की नाटकीयता भी प्रदान कर सकता है जिसे वह बालकों के सम्मुख रखना चाहता हो। इस प्रकार उसकी वार्त्ता छपी हुई पुस्तक की अपेक्षा अधिक सरल तथा रोचक हो सकती है।
2. भाषण का तत्काल दोहराया या सुधारा जाना
जब भी अध्यापक यह अनुभव करे कि विद्यार्थी उसकी वार्ता को समझ या सराह नहीं रहे, तो वह तुरन्त अपने कथन को दोहरा सकता है तथा भावों व विचारों को विस्तारपूर्वक समझा सकता है। एक चतुर अध्यापक कभी भी अपने विद्यार्थियो के बौद्धिक स्तर से उच्च वार्ता करना पसन्द नहीं करेगा।
3. विद्यार्थी को सुनकर सीखने का अनुभव व प्रशिक्षण मिलना
प्रजातान्त्रिक देशों में हमें बालकों को प्रौढ़ जीवन हेतु भी प्रशिक्षित करना होता है ताकि प्रजातान्त्रिक नागरिक के रूप में वे राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों में पूर्ण रूप से तथा प्रभावशाली ढंग से भाग ले सकें। हम सब जानते हैं कि आजकल हम चाहे दूसरों अनुसरण, भाषणों तथा वार्ताओं का नेतृत्व करें या का हमारे प्रौढ़ जीवन में विशेष महत्त्व है।
इसके लिए हमें स्कूल स्तर से ही बालकों को तैयार करना होता है। । अतः स्कूल के सभी बालकों के लिए समय-समय पर वार्ताओं तथा मनोरंजन का आयोजन किया जाना चाहिए।
4. विद्यार्थियों के समय तथा शक्ति की बचत
कभी-कभी बालकों को सामाजिक अध्ययन के जटिल तथ्य पाठ्य पुस्तकों से स्पष्ट नहीं हो पाते। पाठ्य पुस्तकों में विस्तार का तो नितान्त अभाव पाया ही जाता है, अपितु कभी-कभी तो व्याख्या भी अशुद्ध होती है।
इस प्रकार यह सम्भव है कि बालक तथ्यों की भूल भुलैया में ही खो जाए। यह भी सम्भव है कि वे इन जटिलताओं के स्पष्टीकरण के लिए अन्य साधनों के अध्ययन में ही अपना बहुत-सा मूल्यवान समय व शक्ति व्यर्थ खोते रहें। ऐसी अवस्था में अध्यापक द्वारा भली प्रकार तैयार करके सुन्दर ढंग से दी गई वार्ता बड़ी सहायक सिद्ध हो सकती है।
5. विद्यार्थियों को प्रेरित करने का उत्तम साधन
क्योंकि अध्यापक को भाषण के लिए काफी तैयारी करनी पड़ती है, अतः इसका लाभ सारी कक्षा को पहुँच जाता है।
अध्यापक की अपनी तैयारी, उत्साह तथा रुचि के कारण अच्छे विद्यार्थियों को भी प्रेरणा मिलती है और वे अधिकाधिक ज्ञान-प्राप्ति हेतु योजनाओं, समस्याओं तथा इसी प्रकार की अन्य क्रियाओं को क्रियान्वित करते हैं।
व्याख्यान विधि के दोष
(2) इस विधि में विद्यार्थी के स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता है, वह सुनना चाहता हो या सुनना चाहता हो, उसे भाषण सुनना ही पड़ता है।
(3) यह विधि 'बाल केन्द्रित' नहीं है। अतः छात्र की रुचि, क्षमता आदि का ध्यान नहीं रखा जाता है।
(4) यह विधि बालक को श्रोता बनाती है। अतः वह निष्क्रिय होता जाता है।
(5) इसके प्रयोग से कक्षा का वातावरण सजीव नहीं बन पाता है।
(6) यह विधि 'रटने की प्रवृत्ति' को बढ़ावा देती है।
(7) सभी अध्यापक इस विधि का अनुसरण नहीं कर सकते, क्योंकि सभी अध्यापकों को न तो विषय-वस्तु का अच्छा ज्ञान ही होता है और न वे भाषण देने में निपुण ही होते हैं।