ब्रिटेन में अभिसमयों की भूमिका | Role of conventions in Britain in Hindi
ब्रिटिश अभिसमय अनेक प्रकार के होते हैं। कुछ का सम्बन्ध राजा या रानी, उनके कार्य और शक्तियों से है । कुछ मन्त्रिमण्डल से सम्बन्धित हैं इसी प्रकार कुछ अभिसमय संसद् के विषय में हैं तो कुछ राष्ट्रमण्डल के विषय में उल्लेखनीय अग्रलिखित हैं -
( क ) राजा से सम्बन्धित अभिसमय
1 . राजा अपने मन्त्रियों से परामर्श से कार्य करता है ।
2. मन्त्रिमण्डल के निर्माण हेतु राजा लोकसभा के बहुमत दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है ।
3. प्रधानमंत्री द्वारा निर्मित मन्त्रिमण्डल को राजा अपने मन्त्रिमण्डल के रूप में स्वीकार कर लेता है ।
4. राजा संसद को प्रतिवर्ष एक बार आहूत करता है ।
5. राजा मन्त्रिमण्डलीय बैठकों में सम्मिलित नहीं होता ।
6. प्रधानमन्त्री के परामर्श पर ही राजा लोकसभा को भंग करता है ।
7. संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए गए विधेयकों पर राजा को स्वीकृति देनी पड़ती है । यद्यपि वैधानिक रूप से सम्राट को विधेयकों पर निषेधाधिकार प्राप्त है , लेकिन विगत 150 से भी अधिक वर्षों से इसका प्रयोग होने से अब यह एक अभिसमय बन गया है ।
( ख ) मन्त्रिमण्डल से सम्बन्धित अभिसमय
1 . मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से संसद ( व्यवहार में लोकसभा ) के प्रति उत्तरदायी है ।
2. मन्त्रिमण्डल सामूहिक और सम्मिलित उत्तरदायित्व के सिद्धान्त के अनुसार कार्य करता हैं
3. मन्त्रिमण्डल को लोकसभा का विश्वासपात्र न रहने पर त्याग - पत्र देना पड़ता है । यदि प्रधानमन्त्री चाहे तो राजा को लोकसभा को भंग करने का परामर्श दे सकता है । नवम्बर, 1972 में आव्रजन नियमों के अनुमोदन पर एडवर्थ हाथ की अनुदारदलीय सरकार पराजित हो गई पर उसने इसी कारण त्याग - पत्र नहीं दिया ।
4. मन्त्रिमण्डल को अपने सम्पूर्ण अधिकार के साथ घरेलू संकट का प्रतिकार करना चाहिए , लेकिन उसे तुरन्त संसद को आमन्त्रित करके उससे मन्त्रणा अश्वय करनी चाहिए ।
( ग ) संसद् से सम्बन्धित अभिसमय
1 . लोकसभा के अध्यक्ष को निर्दलीय होना चाहिए ।
2. अवकाश ग्रहण करने वाले अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचन होना चाहिए और जितनी बार वह चाहे उसे निर्वाचित किया जाना चाहिए ।
3. अध्यक्ष को अपने निर्णायक मत का प्रयोग बहुत कम और इस प्रकार करना चाहिए कि संसद् स्वयं निर्णय कर सके ।
4. लॉर्ड सभा जब अपीलीय न्यायालय के रूप में कार्य करती हो , तब कानूनी लॉडर्डो को उसमें अवश्य सम्मिलित होना चाहिए और उनके अतिरिक्त अन्य किसी लॉर्ड अथवा पीयर को लॉर्ड सभा के न्यायिक मामलों में भाग नहीं लेना चाहिए ।
5. लोकसभा किसी वित्त - विधेयक पर तभी विचार करती है है जबकि उसे राजा अर्थात् कैबिनेट ) की सिफारिश पर पेश किया जाए ।
6. लोकसभा अनुदान की माँग में कमी कर सकती है या उसे अस्वीकार कर सकती है , किन्तु उसमें वृद्धि नहीं कर सकती ।
7. कानून बनने से पूर्व प्रत्येक विधेयक का तीन बार वाचन होना चाहिए ।
8. शासक दल की ओर से एक भाषण होने के बाद दूसरा भाषण विरोधी दल के सदस्य का होता है ।
( घ ) राष्ट्रमण्डल विषयों में राजा को से सम्बन्धित अभिसमय
1. राष्ट्रमण्डल से सम्बन्धित अपने राष्ट्र - मण्डलीय विभाग के मन्त्री से परामर्श करना चाहिए ।
2. किसी भी उपनिवेश के सम्बन्ध में संसद् तभी कोई कानून बनाएगी जब पनिवेश की ओर से इस बारे में स्पष्ट प्रार्थना की गई हो और स्पष्ट अनुमति दे दी गई हो । ब्रिटिश संविधान के अभिसमयों की संख्या बहुत बड़ी है । इसके अतिरिक्त इन अभिसमयों की रूप प्रगतिशील है , अतः वे समय की प्रगति के साथ , और लोगों के व्यवहार के अनुरूप बदलती व बढ़ती रहती हैं ।
ब्रिटिश संविधान में अभिसमयों का महत्त्व
( i ) अभिसमयों द्वारा ब्रिटिश राजपद को सीमा - बद्ध किया जाकर उसके सब अधिकारों को मन्त्रिमण्डल को हस्तान्तरित किया गया है ।
( ii ) अभिसमयों ने लोकसभा के प्रति मन्त्रिमण्डलीय सामूहिक एवं व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को विकसित किया है ।
( iii ) अभिसमयों ने अनेक प्रकार से संविधान का विकास किया है और यांविधानिक विकास की स्थिति में पहुँचाया है कि मन्त्रिमण्डलीय निर्माण और विघटन प्रत्यक्ष रूप में निर्वाचकगण करते हैं ।
( iv ) अभिसमयों ने ब्रिटिश शासन व्यवस्था को बदलती हुई सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल प्रगतिशील बनाए रखा है ।
( v ) ब्रिटिश शासन - व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण और मौलिक संस्थाएँ जैसे राजपद , संसद , मन्त्रिमण्डल , प्रधानमन्त्री आदि अभिसमयों की ही उपज हैं । अनेक व्यवस्थाएँ कानून पर नहीं बल्कि अभिसमयों पर आधारित हैं , जैसे संसद् का दो सदनों में संगठन होना , संसदीय कार्य - पद्धति का एक बड़ा भाग सम्राट की स्थिति , कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका में सीमा विभाजन आदि।
( vi ) अभिसमयों ने संविधान को न केवल कार्यरूप प्रदान किया है बल्कि ब्रिटिश शासन व्यवस्था को श्रेष्ठतम रूप भी दिया है।
( vii ) ब्रिटेन में विरोधी दल की समस्त मान्यता अभिसमयों पर ही आधारित है।