कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिये
कार्यकारिणी के आधार पर साधारणतया दो प्रकार की सरकार होती है-
( 1 ) मन्त्रि - परिषद् सरकार
( 2 ) अध्यक्षात्मक सरकार
कार्यपालिका और व्यवस्थापिका दोनों के कार्यकारिणी का व्यवस्थापिका सभा से अलग-अलग प्रकार का सम्बन्ध है। मन्त्रिमण्डल प्रणाली में मन्त्रि - परिषद के सदस्यों को व्यवस्थापिका सभा का सदस्य होना आवश्यक है । ऐसा अवश्य सम्भव है कि कुछ अवधि के लिए ऐसा कोई व्यक्ति मन्त्रि-परिषद में सम्मिलित किया जा सकता है जो व्यवस्थापिका सभा का सदस्य नहीं है।
यह अवधि 6 माह है। यदि इस अवधि में वह व्यवस्थापिका का सदस्य नहीं बन पाता है तो इसके उपरान्त वह मन्त्रि-परिषद का सदस्य नहीं रह सकता है। मन्त्रि-परिषद का निर्माण व्यवस्थापिका सभा के बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल में से किया जाता है। बहुमत दल का नेता प्रधानमन्त्री बनता है और उसके परामर्श से कार्याकरिणी का प्रधान अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है । ये उसी समय तक अपने पदों पर आसीन रह सकते हैं जब तक कि उनको व्यवस्थापिका सभा के निम्न सदन के बहुमत का समर्थन प्राप्त है। यह सदन अविश्वास का प्रस्ताव पास कर उनको उनके पद से पृथक कर सकता है।
इस संवैधानिक कावस्था के होते हुये भी वास्तविकता यह है कि संसदात्मक शासन में वास्तविक कार्यपालिका ही व्यवस्थापिका को नियंत्रित करती है। इसका कारण यह है कि मन्त्रिमण्डल का व्यवस्थापिका में बहुमत रहता है।
अतः अपने बहुमत के आधार पर वह अपनी इच्छानुसार विधेयक पारित करती है एवं बजट को स्वीकृत करती है। बहुमत के कारण ही उसे अविश्वस के प्रस्ताव का भी डर नहीं रहता । वास्तव में व्यवस्थापिका के कार्यों पर मन्त्रिमण्डल का प्रभुत्व स्थापित हो जाता है । अध्यक्षात्मक शासन का संगठन शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त के आधार पर होता है । कार्यपालिका और व्यवस्थापिका एक दूसरे पर अंकुश रखते हैं, परन्तु एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते ।
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति के परामर्शदाता अथवा मन्त्री व्यवस्थापिका सभा के सदस्य नहीं होते हैं और न वे उसके प्रति उत्तरदायी ही होते हैं उनका कार्यकाल राष्ट्रपति की इच्छा पर पूर्णरूप से निर्भर हैं । वे व्यवस्थापिका सभा की कार्यवाहियों में भाग नहीं ले सकते और न कोई विधेयक प्रस्तुत हैं। इस प्रकार के व्यवस्थापिका सभा से पूर्णतया स्वतन्त्र है । इतना अवश्य है कि वहाँ के राष्ट्रपति को कुछ बातों की स्वीकृति उच्च सदन से लेनी होती है।
यह उनकी शक्ति पर एक प्रतिबन्ध है । स्विट्जरलैण्ड की भी कार्यकारिणी व्यवस्थापिका सभा से पूर्णतया स्वतन्त्र है । उसका कार्यकाल निश्चित है और वह इस समय तक कार्य करती रहेगी चाहे व्यवस्थापिका सभा का उन पर विश्वास हो या न हो । इस प्रकार व्यवस्थापिका सभा उसको उसके पद से अलग नहीं कर सकती है ।
निष्कर्ष -
सामान्यता कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के बीच टकराव की स्थिति नहीं आती है। क्योंकि ऐसा होने पर राज्य के कार्यों में गतिरोध का भय रहता है। अतः कार्यपालिका और व्यवस्थापिका मिलकर कार्य करती है।
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