इतिहास शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक का क्या महत्व है ?

इतिहास शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक का क्या महत्व है ? || What is the importance of textbook in history teaching?


पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम के अनुरूप पुस्तकों का निर्माण किया जाता है। शैक्षिक उद्देश्यों की यह विभिन्न प्रकार की कलाओं तथा ज्ञान राशि को अर्जित करने के लिए आवश्यक उपयोगी और महत्वपूर्ण होती हैं वर्तमान समय में पाठ्य-पुस्तकों का महत्व शिक्षा के उपकरण के रूप में अधिक बढ़ गया है।


पाठ्य-पुस्तकों के महत्व के विषय में क्रॉनबैक का कथन है, "अमेरिका में आज शैक्षिक केन्द्र-बिन्दु पाठ्य-पुस्तक है। इसका विद्यालय में महत्वपूर्ण योगदान है। इसका अतीत में अधिक महत्व था और आज भी शक्तिशाली महत्व है। इसके लिए विशेष रूप से तैयार की जाती है जो कि किसी एकाकी विषय या सम्बन्धित विषयों के कोर्स का प्रस्तुतीकरण करती है।"


पाठ्य-पुस्तक से हमें स्वतन्त्र तर्क, चिन्तन एवं निर्णय करने का अवसर प्राप्त होता है। पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता योजना एवं इकाई पद्धतियों में भी होती है। इकाई की पूर्ण तैयारी के लिए पाठ्य-पुस्तक आवश्यक है।


पाठ्य-पुस्तकों के महत्व के बारे में हर्ल आर० डगलस का कथन है कि, "शिक्षकों के बहुमत ने अन्तिम विश्लेषण के आधार पर पाठ्य-पुस्तक को 'वे क्या और किस प्रकार पढ़ाएंगे' की आधारशिला बतलाया है। संक्षेप में पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व को निम्नलिखित रूपों में वर्णित किया जा सकता है -


1. ज्ञान के संरक्षण के लिए ज्ञान के संरक्षण के लिए पुस्तकों की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है क्योंकि किसी भी ज्ञान को मौखिक रूप से अधिक समय तक अपने मूल रूप में संरक्षित नहीं किया जा सकता। पुस्तकों के अभाव में अगर ज्ञान संरक्षित नहीं होगा तो हम अपनी सभ्यता एवं संस्कृति का संरक्षण भी न हीं कर सकते। इसलिए संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हस्तान्तरण के लिए पुस्तकों का महत्व अत्यन्त आवश्यक एवं उपयोगी है।


2. समान पाठ्यक्रम के निर्धारण में सहायक सम्पूर्ण राष्ट्र में एक समान शिक्षा प्रणाली के लिए एक समान पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है। एक समान पाठ्यक्रम के निर्धारण में पुस्तकें अत्यन्त आवश्यक एवं उपयोगी है। क्योंकि पाठ्य-पुस्तक सभी स्तरों पर किसी विषय में निहित पाठ्य-सामग्री, विद्यार्थियों के मनोविज्ञान और समय की उपलब्धता को ध्यान में रखकर लिखी जाती हैं इसमें शिक्षकों तथा छात्रों दोनों को क्या पढ़ाना है ? और क्या पढ़ना है? की जानकारी हो जाती है। इसलिए पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता, उपयोगी एवं महत्व है।


3. नवीन ज्ञान एवं सूचनाओं के संग्रह में सहायक पाठ्य-पुस्तकें नवीन ज्ञान एवं सूचनाओं के संग्रह में सहायक होती हैं। पुस्तकों के द्वारा छात्र अपनी वैयक्तिक भिन्नता के अनुरूप कार्य करके स्वाध्याय द्वारा निर्धारित कार्य को पूरा कर सकता है। शिक्षक पाठ्य पुस्तकों की सहायता से छात्रों को नवीन ज्ञान की जानकारी कर सकता है। वह नित नई खोजों और आविष्कारों से खुद परिचित होकर छात्रों और समाज को भी उससे परिचित कर सकता है। इसलिए नवीन ज्ञान और सूचनाओं के संग्रह में पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व है।


4. समय, शक्ति और श्रम की बचत पाठ्य पुस्तकों की सहायता से समय, शक्ति और श्रम को बचत होती है। पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से शिक्षक को किसी शिक्षण प्रकरण पर सामग्री खोजने में समय नष्ट नहीं करना पड़ता। उन्हें पुस्तकों की सहायता से आसानी से शिक्षण-सामग्री उपलब्ध हो जाती है। उन्हें किसी प्रकारण पर कितना समय देना है, प्रकरण को कितना विस्तार देना है। इसकी जानकारी शिक्षक को पाठ्य पुस्तकों की सहायता से हो सकती है। इससे शिक्षकों के समय, शक्ति और रम की बचत होती है। इसलिए, समय, श्रम और शक्ति की बचत के लिए पाठ्य-पुस्तक आवश्यक एवं उपयोगी हैं।


5. शिक्षकों के लिए उपयोगी पाठ्य-पुस्तकें शिक्षकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। शिक्षक पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से पाठ्यक्रम को साप्ताहिक, मासिक, वार्षिक आधार पर बाँटकर अपनी शिक्षण प्रणाली को सुगम बना सकता है। वह अपनी दैनिक पाठ्यचर्या व योजनाओं को पाठ्य-पुस्तक की सहायता से सरल एवं आसान बना सकता है। वह पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से अपने शिक्षण कार्य को सरल एवं रोचक बनाकर छात्रों को आकर्षित कर सकता है। इसलिए शिक्षकों के शिक्षण कार्य को सरल एवं आसान बनाने में पाठ्य-पुस्तक अत्यन्त आवश्यक एवं उपयोगी है।


6. सामूहिक शिक्षण में लाभप्रद सामूहिक शिक्षण में पाठ्य-पुस्कें अत्यन्त लाभप्रद होती हैं। शिक्षक पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से सभी छात्रों को एक साथ पढ़ा सकता है और इसकी सबसे बड़ी उपलब्धता यह है कि कक्षा शुरू होने से पूर्व ही शिक्षक और छात्र दोनों को जानकारी होती है कि किस विषय-वस्तु पर अध्यापन एवं अध्ययन करना है। पाठ्य पुस्तकों की सहायता से कम समय में एक साथ अधिक छात्रों को समुचित ज्ञान कराया जा सकता है। इस दृष्टिकोण से पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्त्व है।


7. शिक्षक का विकल्प: पाठ्य-पुस्तकें शिक्षकों के विकल्प के रूप में कार्य करती हैं। वर्तमान समय में दूरवर्ती शिक्षा और मुक्त शिक्षा के माध्यम से अनेक पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। इन छात्रों को पाठ्यक्रम के साथ पाठ्य-पुस्तकें भी हस्तान्तरित की जाती हैं। छात्र बिना शिक्षक के ही पाठ्य-पुस्तकों के माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर परीक्षा देते हैं और अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण भी होते हैं। इसलिए शिक्षकों के विकल्प के रूप में पाठ्य-पुस्तक उपयोगी, आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं।


8. वैयक्तिक शिक्षण में सहायक पाठ्य-पुस्तकें वैयक्तिक शिक्षण में सहायक होती हैं। वर्तमान समय में अनेक वैयक्तिक शिक्षण प्रणालियों का आविष्कार भी हो चुकार है। इन वैयक्तिक शिक्षण प्रणालियों में तो पाठ्य-पुस्तक की महत्ता और भी बढ़ जाती है। पाठ्य-पुस्तकों की सहायता से बच्चे स्वयं पाठ्य सामग्रियों की खोज करके अध्ययन करते हैं।


9. विशिष्ट बालकों के लिए उपयोगी: वैसे तो पाठ्य-पुस्तकें सभी शिक्षकों और बालकों के लिए आवश्यक एवं उपयोगी होती हैं किन्तु पाठ्य-पुस्कें विशिष्ट बालकों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार के बालक प्रायः विद्यालयों में उचित तरीके से अपनी विषय-वस्तु को नहीं सीख पाते। अतः वह शिक्षण के बाद स्वाध्याय द्वारा अपना कार्य पूरा कर सकते हैं। प्रतिभाशाली बालक आगामी पाठों का भी अध्ययन करके अपना समय शिक्षण कार्य में लगाकर सदुपयोग कर सकते हैं। इसलिए विशिष्ट बालकों के पूर्ण ज्ञान के लिए पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व है।


10. मनोरंजन एवं ज्ञानार्जन में सहायक पाठ्य-पुस्तकें ज्ञानार्जन और मनोरंजन में सहायक होती हैं। शिक्षक और छात्र पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से अनेक प्रकार से मनोरंजन करते हैं। वे नाटक, कहानी, उपन्यास, एकांकी आदि के माध्यम से अपना मनोरंजन करते हैं। इतना ही नहीं वे महापुरुषों की जीवनियों के माध्यम से अपना ज्ञानार्जन करते हैं। इसलिए मनोरंजन एवं ज्ञानार्जन के लिए पाठ्य-पुस्तकों की आवश्यकता, उपयोगिता और महत्व है।


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