इतिहास शिक्षक की विशेषताएं || Characteristics of the history teacher
इतिहास शिक्षक की विशेषताएं - इतिहास शिक्षक में जिन विषयगत गुणों की अपेक्षा की जाती है, उन्हें निम्नांकित वर्गों में विभक्त कर अध्ययन किया जा सकता है
1. शैक्षिक योग्यता
इतिहास शिक्षक का कार्य उचित शैक्षिक योग्यता रखने वाले अध्यापकों को ही दिया जाना चाहिए जिन्होंने इतिहास विषय लेकर निर्धारित न्यूनतम परीक्षा उत्तीर्ण की हो, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक व माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक कक्षाओं का अध्यापन करने के लिए शिक्षक को न्यूनतम शैक्षिक योग्यता इतिहास विषय लेकर क्रमशः उच्च माध्यमिक स्नातक तथा अधिस्नातमक परीक्षा अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण होनी चाहिए।
इतिहास शिक्षक की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता सम्बन्धी नियम का दृढ़ता से पालन किया जाना चाहिए जिससे कि विषय तथा विद्यार्थियों के प्रति उचित न्याय किया जा सके और विषय को रोचक एवं ज्ञानोपयोगी बनाया जा सके।
2. प्रशिक्षण योग्यता
योग्यता की भाँति विद्यालय के विभिन्न स्तरों के अनुकूल निर्धारित न्यूनतम प्रशिक्षण योग्यता का होना एक शिक्षक के लिए अब आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य समझा जाने लगा है। प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर एच० टी० सी० तथा माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर बी०एड्०, बी० टी० अथवा एल० टी० न्यूनतम् प्रशिक्षण योग्यताएँ निर्धारित की गयी हैं। अतः इतिहास-शिक्षक को तद्नुकुल प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है।
3. पाठ्यक्रम सहगामी प्रवृत्तियों में रूचि
एक प्रशिक्षित अध्यापक से अपेक्षा की जाती है कि वह इतिहास की नवीन विकसित विधियों के अनुसरण द्वारा विद्यार्थियों को सक्रियता के माध्यम से विषय ज्ञान प्राप्त करने का अवसर दे। विचार-विमर्श, वाद-विवाद, परिचर्चा, पैनल चर्चा, जयन्ती समारोह, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पर्व, भ्रमण, चल चित्र प्रदर्शन के आयोजन, मानचित्र, समय रेखा, मॉडल, युद्ध-योजना आदि के निर्माण एवं मौलिक स्रोत सन्दर्भों के अध्ययन द्वारा इतिहास के विद्यार्थियों को सक्रियता द्वारा ज्ञानार्जन के अवसर प्रदान किये जा सकते है।
4. प्रयोग एवं प्रयोजन में रूचि
प्रशिक्षित अध्यापक में नवीन विधियों एवं प्रविधियों के प्रयोग, विषयगत समस्याओं के समाधान हेतु क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research), प्रायोगिक प्रयोजन (Experimental Project) तथा विकासात्मक प्रयोजन (Development Project) को क्रियान्वित कर शिक्षण को प्रभावी बनाने में अभिरूचि अवश्य रखनी चाहिए ।
5. व्यावसायिक निष्ठा एवं अभिवृत्ति
प्रत्येक व्यवसाय की सफलता उनके प्रति रखी जाने वाली निष्ठा एवं उसकी निरन्तर अभिवृति में निहित होती है। निष्ठावान व्यक्ति ही अपने व्यवसाय के आदर्शों की रक्षा करते हुए उसके उच्च स्तर को बनाये रख सकता हैं। शिक्षण व्यवसाय में भी शिक्षक को निष्ठावान बनाना है।
इतिहास के शिक्षक में व्यावसायिक निष्ठा की दृष्टि से यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपने विषय में तथा उसके शिक्षण में अभिरुचि रखे तथा अध्यवसाय, परिश्रम एवं कुशलता द्वारा अपने व्यावसायिक स्तर को उच्चतर बनाने का प्रयास करे।
6. विश्व इतिहास का ज्ञान
इतिहास शिक्षक के लिए पाठ्यक्रम के प्रस्तुतीकरण हेतु भारतीय इतिहास के साथ विश्व इतिहास के समुचित आधार पर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का समन्वय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की दृष्टि से उनका महत्व निर्धारित करने में सहायता मिलती हैं।
भारत तथा विश्व के इतिहास के ज्ञान के अतिरिक्त इतिहास शिक्षक के लिए आवश्यक है कि उसे इन दिनों इतिहासों के कम से कम किसी एक युग का तो विशेष विस्तृत अध्ययन करना चाहिए जिससे कि वह अपने विद्यार्थियों में सूक्ष्म अध्ययन एवं अनुसन्धान की अभिवृत्ति विकसित सकें।
7. स्थानीय इतिहास का ज्ञान
विद्यार्थी सर्वप्रथम अपने स्थानीय इतिहास में अभिरुचि रखता है क्योंकि वह वर्तमान में उसके जीवन से सम्बद्ध हैं। स्थानीय इतिहास के माध्यम से उसमें क्रमशः अपने प्रदेश, प्रान्त तथा राष्ट्र के प्रति रूचि विकसित की जा सकती. है। इतिहास-शिक्षक को स्थानीय इतिहास के अध्ययन, अनुसन्धान एवं विद्यार्थियों के समक्ष राष्ट्रीय भावना के अनुकूल उसकी व्याख्या करने में कुशल होना आवश्यक है।
8. ज्वलन्त घटनाओं का ज्ञान
इतिहास-शिक्षक को देश-विदेश में ज्वलन्त घटनाओं का सतत् अध्ययन करते रहना तथा उनका इतिहास-शिक्षण में समुचित सहसम्बन्ध स्थापित करना बड़ा आवश्यक है। इससे इतिहास भूतकाल का एक नीरस विवरण मात्र न रहकर वर्तमान को समझने में एक जीवन शक्ति के रूप में उभर *कर विद्यार्थियों के समक्ष आता है तथा उसके प्रति एक स्वस्थ अभिवृत्ति विकसित होने में सहायता मिलती है।
9. नागरिक शास्त्र का ज्ञान
इतिहास तथा नागरिक शास्त्र में अभिन्न संबंध है। इतिहास शिक्षण का उद्देश्य राष्ट्र के लिए योग्य भावी नागरिकों का निर्माण करना है। इस दृष्टि से इतिहास के अध्ययन द्वारा विद्यार्थियों के समक्ष आता है तथा उसके प्रति एक स्वस्थ अभिवृत्ति विकसित होने में सहायता मिलती हैं।
10. अन्य सम्बद्ध विषयों का ज्ञान
अन्य कुछ ऐसे विषय हैं जिनका इतिहास से सीधा सम्बन्ध तो नहीं है किन्तु ऐतिहासिक प्रक्रिया को समझने के लिए उसका सामान्य ज्ञान इतिहास शिक्षण में अपेक्षित है। उदाहरणार्थ ऐतिहासिक घटनाओं के स्थानीयकरण हेतु भूगोल का ज्ञान, ऐतिहासिक स्रोत सन्दर्भों के अध्ययन हेतु पुरातत्व शस्त्र, मुद्रा-विज्ञान, अभिलेख विज्ञान, अभिलेख संग्रहागार का समन्वय हेतु साहित्य एवं अर्थशास्त्र का ज्ञान, प्राचीनतम ऐतिहासिक युगों के अध्ययन हेतु मानव शास्त्र आदि का सामान्य ज्ञान इतिहास शिक्षक की कुशलता में अभिवृद्धि करता है।
11. विषय में निष्ठा
उपरोक्त विशेषताओं के अतिरिक्त जो सबसे महत्वपूर्ण गुण एक इतिहास-शिक्षक में होना चाहिए, वह है अपने विषय के प्रति पूर्ण निष्ठा। निष्ठा के अभाव में विषय के प्रति लगन और उत्साह नहीं रहता जो उसे सजीव एवं उपयोगी बनाने में सहायक होते हैं।
निष्ठाहीन शिक्षक इतिहास को एक नीरस रटने-मात्र का विषय बना देता है जिससे विद्यार्थियों में विषय के प्रति अरूचि उत्पन्न हो जाती है तथा जनसाधारण में भी इतिहास विषय की पाठ्यक्रम में उपयोगिता पर सन्देह होने लगता है।
12. सतत अध्यवसाय
केवल शैक्षिक योग्यता ही इतिहास-शिक्षण के लिए पर्याप्त नहीं होती, अध्यापक का सतत अध्यवसायी होना भी महत्वपूर्ण है। विषय की सर्वांगपूर्णता एवं परिवर्तित ज्ञानार्जन की दृष्टि से इतिहास-शिक्षक को अपने विषय का निरन्तर अध्यवसाय करते रहना चाहिए। उसे इतिहास के प्रामाणिक ग्रन्थों एवं शोध सामग्री का यथासम्भव अवलोकन कर अपने ज्ञान को अद्यनूतन बनाये रखने का सदैव प्रयास करना चाहिए।
13. अनुसन्धान अभिवृत्ति
अध्यवसायी होने के अतिरिक्त यदि इतिहास-शिक्षक में ऐतिहासिक अनुसन्धान की अभिवृत्ति विद्यमान हो तो वह अपने विषय के निर्माण की वैज्ञानिक प्रक्रिया का स्वयं भी अभ्यस्त हो जाता है और अपने विद्यार्थियों को भी उससे अवगत करा सकता है। यह वैज्ञानिक प्रक्रिया का स्रोत सन्दर्भों पर आधारित ऐतिहासिक तथ्यों की खोज, संग्रह, वर्गीकरण तथा उनकी व्याख्या निहित होती है।
14. ऐतिहासिक भ्रमण एवं पर्यटन में रुचि तथा सक्रियत्ता
इतिहास के अध्ययन से अपने देश, प्रान्त एवं प्रदेश के उन स्थलों के दर्शन की जिज्ञासा उत्पन्न होना स्वाभाविक हैं जो ऐतिहासिक महत्व के रहे हों। इसके अतिरिक्त ऐसे स्थलों, भवनों, भग्नावशेषों एवं संग्रहालय में संगृहीत अवशेषों को देखने से तत्कालीन ऐतिहासिक ज्ञान को सजीव बनाया जा सकता है। इतिहास शिक्षक को ऐसे सामुदायिक स्रोतों का भ्रमण एवं उनके उपयोग पर बल देना चाहिए जिनका ऐतिहासिक मूल्य हो।