Water Pollution: जल प्रदूषण का अर्थ, परिभाषा एवं कारण

जल प्रदूषण (Water Pollution)


जल प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा : जल पर्यावरण का जीवनदायी तत्व है। जल प्रकृति द्वारा प्रदत्त वह संसाधन है जो ब्रह्माण्ड में सृष्टि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण घटक की भूमिका निभाता है।

Go eche के अनुसार "प्रत्येक वस्तु जल से ही उत्पन्न हुई है और प्रत्येक वस्तु जल के द्वारा ही जीवित है।" वनस्पति से लेकर सारे जीव-जन्तु अपने पोषक तत्वों की प्राप्ति जल के माध्यम से ही करते हैं।

जल ही ऐसा संसाधन है जो ठोस, द्रव तथा गैस तीनों रूपों में पाया जाता है। मनुष्य के शरीर में लगभग 65% जल विद्यमान होता है। यही नहीं मनुष्य की सम्पूर्ण क्रियाओं एवं उसके रख-रखाव में जल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह उत्तक और पेशियों को घेरकर उन्हें आपस में चिपकने से रोकता है यह हृदय मस्तिष्क आदि को संरक्षण प्रदान करता है।

यह शरीर के अन्दर विभिन्न संचार तत्वों को बनाए रखता है यही पोषक तत्व, कार्बन डाईआक्साइड, आक्सीजन का वाहक है और शरीर के मलिन पदार्थों को मल-मूत्र और पसीना के माध्यम से बाहर निकलता है। इसी कारण पानी की कमी मनुष्य को सहन नहीं हो पाती और इसकी कमी में अधिकता के कारण उसकी मृत्यु भी हो जाती है।

मनुष्य, वनस्पति तथा जीव जन्तु जिन पोषक तत्वों को ग्रहण करने से स्वस्थ रहते हैं उन पोषक तत्वों को ग्रहण करने से स्वस्थ रहते हैं उन पोषक तत्वों में सबसे अधिक अनिवार्य शुद्ध पेय जल है। शरीर की कार्यशीलता में ऊर्जा से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका जल की होती है क्योंकि जल स्वयं पोषक तत्व है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि और जल के घटते हुए स्रोतों के कारण जल की कमी महसूस की जाने लगीं।

वर्ल्ड रिसोर्सेज के अनुसार, विश्व स्तर पर 1990-95 के मध्य ही जल उपभोग में 6 गुनी वृद्धि जनसंख्या वृद्धि से दो गुनी थी। कृषिगत, औद्योगिक एवं घरेलू उपभोग में तीव्र वृद्धि के चलते अभी वृद्धि दर बढ़ने की संभावना है। सतहगर, जलागार, नदियां, झीलें वर्षा द्वारा आपूर्ति की अपेक्षा निष्कर्षण संकुचित हो रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि तथा आर्थिक, सामाजिक विकास से विशेषकर औद्योगिक एवं घरेलू उपयोग हेतु जल की मांग में तेजी से वृद्धि हो रही है।

जलजमाव की स्थिति एवं मानव स्वास्थ्य की दयनीय दशा, विशेषकर तीव्र औद्योगिकरण वाले विकासशील देशों में, उपलब्ध जल के प्रदूषण से बदतर होती जा रही है। ऐसे देशों में इयूट्राफिकेशन से लेकर, भारी धात्विक प्रदूषण, अम्लीकरण, दीर्घ जीवी जैव प्रदूषांक जैसे आधुनिक प्रदूषण की समस्यायें प्रखर हो रही हैं जब कि परम्परागत समस्या के शुद्ध जलापूर्ति एवं शौच सुलभत का अभाव बना हुआ है।

प्रदूषित जल वह है जिसमें अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों तथा गैों के एक निश्चित अनुपात से अधिक अथवा अनावश्यक तथा हानिकारक पदार्थ घुल जाते हैं। दूसरे शब्दों में जल की भौतिक, रसायनिक तथा जैविक संरचना में ऐसा परिवर्तन जो मानव अथवा किसी प्राणी के जीवन दशाओं के लिए हानिकारक एवं अवांछित हो, जल प्रदूषण कहलाता है।

प्रोबका के अनुररार:- जल प्रदूषण का अर्थ है मनुष्य द्वारा बहती नदी में ऊर्जा या ऐसे पदार्थ का निवेश जिससे जल के गुण में हास हो जाय। दूसरे शब्दों में जल में किसी कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थ का योग, जो जल के भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणों में इतना परिवर्तन कर दें जिससे वह मानव या किसी प्राणी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाय अथवा औद्योगिक या सिचाई कार्यों के लिए उपयोगी न रह जाय, जल प्रदूषण है।

गिलविन (1978) के अनुसार, "मानव क्रियाओं के फलस्वरूप जल में रसायनिक, भौतिक एवं जैविक गुर्गों में लाया गया परिवर्तन जल प्रदूषण कहलाता है।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, "जब जल के भीतर या मानवीय कारणों से कई बाहरी या विजातीय पदार्थ मिलकर जल के स्वाभाविक या नैसर्गिक गुर्णी की परिवर्तित कर देते हैं, जिसका कुप्रभाव जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, तो ऐसा जल प्रदूषित जल कहलाता है।"

इन परिवर्तनों के कारण यह जल उपयोग में आने योग्य नहीं रहता है वैसे जल में स्वतः शुद्ध होने की क्षमता होती है, किन्तु जब शुद्धीकरण की गति से अधिक मात्रा में प्रदूषक जल में पहुँचते हैं तो जल प्रदूषित होने लगता है। यह समस्या तब पैदा होती है जब जल में जानवरों के मल-विषैले औद्योगिक रसायन, कृषि अवशेष, तैलीय और उष्मा जैसे पदार्थ मिलते हैं। इनके कारण ही हमारे अधिकांश जल भण्डार जैसे-समुद्र, नदी, झील तथा भूमिगत जल धीरे-2 प्रदूषित होते जा रहे हैं।

जल प्रदूषण के कारण (Caubes of Pollution of Water)


सभी देशों में जल प्रदूषण को समस्या एक विकट समस्या के रूप में अपना विस्तार करती जा रही है ज्यों-2 समय व्यतीत होता जा रहा है वायु और ध्वनि प्रदूषण से भी तीव्र गत्ति से जल प्रदूषण की स्थिति भयावह होती जा रही है। जल प्रदूषण के कारणों के पीछे या तो मनुष्य द्वारा उसका अनुचित उपयोग होता है।

बढ़ती आबादी से अत्यधिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु अनेक औद्योगिक बहुलताएँ भी जल प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि कर रही हैं। इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में मनुष्य के कार्य करने के साथ 2 किसी न किसी प्रकार से जल के प्रदूषित होने की संभावना बनी रहती है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित रूप से बताए जा सकते हैं-

1. मनुष्य के दैनिक अपशिष्ट

पदार्थ मनुष्य अपने दैनिक कार्यों में उपलब्धता के आधार पर जल का प्रयोग प्रचुरता से करता है। मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जल के स्रोतों यथा नदी, तालाब, कुएँ के आस पास मनुष्यों द्वारा मल-मूत्र त्याग करता, मृत बीव जन्तुओं को जल में डाल देने से जल प्रदूषित हो जाता है।

नदी में डाले जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों के कार्बनिक तत्वों पर जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं और उसे खनिजों में परिवर्तित कर देते हैं जबकि मनुष्यों द्वारा जल में डाला जाने वाला अपशिष्ट पदार्थ जिनका आयोग जीवाणुओं द्वारा होने पर वे खनिजों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। अगर उनकी मात्रा नदी के जल के स्वशुद्धिकरण क्षमता से अधिक होती है तो ऐसे सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि हो जाती है जो हानिकारक होते हैं। तथा वह नदी की स्वच्छन्दता को प्रभाविक कर उसमें दुर्गन्ध भर देते हैं।

2. औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ

बढ़ती आबादी से बढ़ती आवश्यकताओं के कारण उद्योगों के विकास में तीव्र गति से वृद्धि हुई। इन औद्योगिक इकाईयों द्वारा जल का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इनके द्वारा उपयोग में लिए गए जल में अनेक प्रकार के लवण, अम्ल, क्षार, गैसों तथा रसायन घुले हुए होते हैं, जल में घुले हुए ये औद्योगिक अपशिष्ट सीधे नदी, तालाब, झील अथवा अन्य जल स्रोतों में प्रवाहित कर दिए जाते हैं।

जिसके परिणाम स्वरूप जल प्रदूषण की स्थिति उत्पनन हो जाती है। यह प्रदूषित जल जब, मनुष्य, जीव-जन्तु, वनस्पति सभी प्रयोग में लाते हैं, प्रभावित हो जाते हैं। उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः बढ़ते हुए औद्योगिकीकरण से जल प्रदूषण में वृद्धि भी होती जा रही है।

3. कृषि रसायनों द्वारा जल प्रदूषण

जनसंख्या की तीव्रतम वृद्धि के कारण खाद्यान्नों की मांग में भी तीव्र गति से वृद्धि होना सामान्य बात है। अतः कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने खेतों में अनेक रसायनिक खार्तों और कीटनाशक दवाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया। ये रसायनिक खादों या इसके रासायनिक पदार्थ वर्षा के जल के साही एक अच्छी मात्रा में नदी, तालार्बो एवं झीलों या अन्य जल स्रोतों में चली जाती हैं। जिसके फलस्वरूप जल में शैवाल वचनस्पतियों में वृद्धि होने लगती है जो अपने विकास में जल की अधिकांश आक्सीजन के उपभोग कर लेने से जल में आक्सीजन की कमी हो जाती है। जिसका विपरीत प्रभाव जलजीवों और मनुष्य पर पड़ता है।

4. शक्ति उत्पादक संयंत्रों द्वारा जल प्रदूषण

अनेक प्रकार के शक्ति उत्पादक यंत्रों को ठण्डा करने के लिए अधिक से अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है। मुख्य रूप से परमाणु संयंत्रों में प्रचुर मात्रा में जल के प्रयोग में लाया जाता है। इन संयंत्रों से निकलने वाले जल का तापमान अत्यधिक होता है। और उसमें रेडियोन्यूलीलाइड पदार्थ की अत्यधिक मात्रा पाई जाती है। यह जल प्रायः सीधे स्रोतों में छोड़ दिया जाता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव जल जीवों पर पड़ता है। जिसके कारण कुछ जीव या तो मर जातें है, बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, नहीं तो दूसरी जगह पलायन कर जाते है।

5. अपनार्जक प्रदूषण

बढ़ती हुई औद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप साफ-सफाई के लिए अनेकों प्रकार के अपमार्जक (डिटरजेन्ट) बाजार में आ गए हैं। इनका उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ये अपमार्जक जब पानी में बुलकर जलाशयों या जलस्रोतों में पहुंचते हैं ती पानी की सतह पर इनके तौस कणों की पतली पर्ते बन जाती है इन पर्ती के कारण सूर्य का प्रकाश जल में प्रवेश नहीं कर पाता। जिसके परिणाम यह होता है कि जल में आक्सीजन की कमी हो जाती और जल में आक्सीजन की कमी होने से जल प्रदूषित हो जाता है। यह जल जीवों, पशुओं और मनुष्यों पर हानिकारक प्रभाव डालता है।

6. खनिज तेल

खनिज तेल को जलमार्ग द्वारा ले जाने वाले जहाजों द्वारा भारी मात्रा में तेल को जल सतह पर छोड़ने तथा कभी-2 जहाजों का समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त होने जल प्रदूषण होने लगता है। लेकिन जब यह खनिज तेल निकाले जाते समय या अन्य जगहों पर पहुँचाने में भूमि पर निखर जाते हैं। तो भूमि पर बिखरने वाला तेल वर्षा के समय मिट्टी के साथ बहकर जलाशयों में पहुँचकर प्रदूषण फैलाता है।

7. शवों के जल प्रवाह से प्रदूषण

अनेक मृत जीव जन्तुओं, पशुओं एवं मनुष्यों के शव को नदियों में विसर्जित कर देने से भी जल प्रदूषित हो जाता है। कई स्थानों पर जली, अधजली लाश, प्रज्जवलित अग्नि और उनसे उत्पन्न राख को नदियों में डाल दिया जाता है जिससे जल के तापमान में वृद्धि होती है और जल प्रदूषित हो जाता है।

जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव एवं इसे नियन्त्रित करने या रोकने के उपाय


जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव (Effect of water Pollution)

प्रदूषित जल से समुद्री जीबों, जलीय पादपों तथा मानव जाति को हानि पहुँचने लगता है। इससे इन सबका जीवन खतरे में पढ़ जाता है और उनकी वृद्धि भी रूक जाती है। जल प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। इससे मनुष्य अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है जैसे सांस रोग, हैजा, पीलिया, पेचिस, रतिरोग, अतिसार, मोतीझारा, लकवा आदि।

जैसा कि ऊपर मुख्य प्रदूषक तत्त्वों को बताया गया उनमें से सबसे खतरनाक जल प्रदूषक फ्लोराइड है जिसकी मात्रा अधिक होने से रीढ़ की हड्‌डी टेढ़ी हो जाती है, हाथ तथा पैरों की हड्डियाँ लचक जाती है, दांतों में छेद होने लगते है तथा उन पर धब्बे पड़ने लगते हैं।

शरीर बेडौल हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर फ्लोराइड की मात्रा को कम करने के उपाय किए जा रहे हैं। इसी प्रकार के ऐसे अनेक प्रदूषक तत्व जैसे पारा, शीशा, सोडियम, फिनोल, जस्ता, नाइट्राइड आदि की अधिकता से जल प्रदूषित होने के कारण अनेक रोग उत्पन्न हो रहे हैं। उदाहरणार्थ हिमोग्लोबिन की कमी, सिर दर्द, कम सुनना, ब्रास चिलस, ब्लूवेषी आदि। इनकी भी रोकथाम के लिए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।

जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय


बढ़ती हुई आबादी तथा औद्योगीकरण में लगातार हो रही वृद्धि से जल प्रदूषण की समस्या काफी विकट हो गई है। इसको नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. औद्योगिक संस्थाओं को तब तक स्थापित न होने दिया जाय, जब तक उसके द्वारा अपशिष्ट जल को विसर्जित करने की उचित व्यवस्था न हो जाय।
2. औद्योगिक संस्थाओं द्वारा बिसर्जित जल और मनुष्यों के द्वारा विसर्जित मल-मूत्र जल को नदियों में जाने से पूर्व विशाल प्लांटों द्वारा उन्हें हानिरहित किया जाय।
3. प्रत्येक क्षेत्र में बाहित शोधन बन्त्र लगाए जायं जिससे जल से प्रदूषणकारी तत्व पृथक किए जा सकें।
4. जल प्रदूषण को कम करने के पुनर्चक्रण तरीकों का विकास करना आवश्यक है। इसके द्वारा अनेक अपशिष्ट पदार्थों को उपयोगी बनाया जाय। जैसे गोबर गैस या बायो गैस प्लांट लगाए जायं।
5. ताप विद्युत उत्पादक केन्द्रों को ठण्डा रखने के लिए जल के स्थान पर किसी अन्य साधन का का प्रयोग किया जाय।
6. औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों का चक्रीकरण करके जल प्रदूषण को कम किया जाय।
7. पशुओं और मनुष्यों के लिए अलग-अलग तालाबों की व्यवस्था हो।

जल प्रदूषण रोकने के उपाय (Measures to Control water pollution)


जल प्रदूषण रोकने के निम्नलिखित उपाय होने चाहिए -

1. पर्यावरण संरक्षण की चेतना का विकास पर्यावरणीय शिक्षा के माध्यम से किया जाय।
2. उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषकों के निस्तारण की समुचित व्यवस्था की।
3. नदी, तालाब आदि में कपड़े, धोने, पशुओं को नहलाने अन्दर घुसकर पानी लेने पर प्रतिबन्ध लगाया जाय।
4. मल-मूत्र, कूड़ा करकट के निस्तारण की उचित व्यवस्था की जाय।
5. संदूषित एवं प्रदूषित जल के लिए सस्ती एवं प्रभावी विधियां खोजी जांय।
6. मृत जीवों को जल में विसर्जित करने पर रोक लगाई जाय।
7. कृषि में कीटनाशी आदि रसायनों के प्रयोग को हतोत्साहित किया जाय।
8. जल को किटाणुरहित बनाने के लिए रसायनों का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाय।
9. मछलियों की कुछ जातियां जलीय खरपतवारों का भक्षण करती हैं ऐसी मछलियों को पाला जाय।
10. पेय जल स्रोतों पर विशेष ध्यान दिया जाय।
11. सीवर की व्यवस्था शहरों, गांवों में भली प्रकार से किया जाय।
12. संदूषित जलाशयों की मिट्टी निकालकर उन्हें साफ किया जाय।
13. औद्योगिक वाहित जल के उपचार की विधियों पर अनुसन्धान किया जाय।
14. जनसाधारण को जल प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों, तथा रोकथाम की विधियों के बारे में जागरूक बनाया जाय।
15. लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए अनेक प्रकार के कार्यक्रम बनाए जाय तथा उन्हें अनेक माध्यमों से प्रचारित और प्रसारित करवाया जाय।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top