Soil Pollution: मृदा प्रदूषण का अर्थ, परिभाषा, कारण एवं रोकने के उपाय

मृदा प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Soil Pollution )


मृदा प्रदूषण का सम्बन्ध मुख्य रूप से भूमि की उर्वरा शक्ति पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से है। वर्तमान मानव समाज के द्वारा उत्पन्न जनसंख्या वृद्धि के कारण आवश्यक खाद्य पदार्थ की पूर्ति हेतु कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उपज बढ़ाने की दृष्टि से अनेक रसायनों और खादों के प्रयोग का सुझाव दिया जाता रहा है।

जिसके परिणाम स्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति में हास् हो रहा है इसे ही मृदा प्रदूषण के नाम से जाना जाता है। मिट्टी का निर्माण अनेक प्रकार की चट्टानों के टूटने फूटने से होता है। इसकी निर्माण प्रक्रिया लम्बे समय में जीवों, जलवायु व अन्य भौतिक कारणों की अन्योन्या क्रियाओं से होता है।

डोक्या शेव के अनुसार, "मृदा मात्र शैलों, पर्यावरण जीवों और समय की आपसी क्रियाओं का परिणाम है।"

मिट्टी में विविध लवण, खनिज, कार्बनिक पदार्थ, गैसें एवं जल एक निश्चित अनुपात में होते हैं, लेकिन जब इन भौतिक एवं रसायनिक गुणवत्ता में अतिक्रम आता है तो मृदा में प्रदूषण हो जाता है। मृदा प्रदूषण से तात्पर्य मानव के विभिन्न क्रियाओं के फलस्वरूप मि‌ट्टी अवांछनीय तत्वचों के प्रवेश में से है। इनसे मृदा की गुणवत्ता घटने लगती है और मृदा का हास् प्रारम्भ हो जाता है।

मृदा की गुणवत्ता की इस के लिए उत्तरदायी कारक प्रदूषित जल, रसायनयुक्त कीचड़, कूड़ा कीटनाशक दबा, कृत्रिम उर्वरक का अधिक प्रयोग आदि है। इनका मृदा के भौतिक रसायनिक एवं जैविक गुणों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को मृदा प्रदूषण कहते हैं।

दूसरे शब्दों में मृदा में विविध प्रकार के खनिज तत्व, लवण, कार्बनिक पदार्थ गैसें एवं जल निश्चित मात्रा में होते हैं जब मृदा में इन तत्त्वों का अनुपात बिगड़ जाता है तब मृदा प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

मृदा प्रदूषण के कारण ( Causes of Soil Pollution )

1. घरेलू अपशिष्ट

इसके अन्तर्गत मुख्यतः सूखे कचरे जैसे साग-सब्जी, सूखी घास, धूल, राख, कागज, शीशिया, कौच या चीनी मिट्टी के टूटे बर्तन, प्लास्टिक सामग्री, टायर, अधजली लकड़ी, सूखे गोबर आदि आते हैं तथा रसोई से निकले पदार्थों में सब्जियां, दाल फलों, के छिलकें, सड़े गले फल अण्डों के छिलकें, सड़ा मांस, खाने का जूठन आदि आते हैं। इस प्रकार का जो कचरा अव्यवस्थित रूप से इधर-उधर डाल दिया जाता है वहीं भूमि प्रदूषण का कारण बनता है।

2. भू-क्षरण -

गौरी के अनुसार "भू-क्षरण मृदा को चोरी एवं रेंगती हुई मृत्यु है।" भू-क्षरण द्वारा कृषि क्षेत्र की ऊपरी सतह की मि‌ट्टी कुछ वर्षों में समाप्त हो जाती है। जबकि 6 सेमी० गहरी पर्त के निर्माण में लगभग 2400 वर्ष लगते हैं। जबकि 6 सेमी० गहरी पर्त के निर्माण में लगभग 2400 वर्ष लगते हैं। यह भूक्षरण प्राकृतिक क्रियाओं एवं मानव क्रिया-कलापों द्वारा सम्पन्न होता है। इनके क्षरण से मृदा प्रदूषण में बढ़ोत्तरी हो जाती है।

3. कृषि अपशिष्ट

बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति की दृष्टि से गहन कृषि द्वारा अधिक अन्न उत्पादन पर बल दिया जाता है। इसके लिए अनेक प्रकार की खाद, कीटनाशक दवाईयाँ आदि प्रयोग में लायी जाती हैं। खेतों में अनावश्यक बचे हुए पौधों के ढेर जब वर्षा के जल के साथ मिलते हैं तो वे सड़ने लगते है। जो प्रदूषण के कारण बनते हैं।

4. वनोन्मूलन

वन मृदा निर्माण में जैविक तत्व प्रदान करते हैं और भूक्षरण को नियन्त्रित करते हैं। जहाँ पर भी वनों का विनाश बड़े स्तर पर हुआ है वहाँ की मृदा के जैविकीय गुण समाप्त होते जा रहे हैं। इन वनों के बिना वाष्पीकरण में वृद्धि, ताप में वृद्धि तथा भूमिगत जल में कीं होती जा रही है। जिससे भूप्रदूषण बढ़ रहा है।

5. औद्योगिक अपशिष्ट

जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ती हुई आवश्यकताओं के कारण औद्योगिक संस्थानों में भी वृद्धि होती जा रही है। इन औद्योगिक संस्थानों के बहुत सारे अपशिष्ट पदार्थ जैसे-ताँबा, पारा, सौस प्लास्टिक, एल्यूमिनियम, कपड़ा, कागज मिट्टी में मिलकर इसे प्रदूषित करते हैं। अनेक औद्योगिक संगठनों से निकलने वाले रसायन जब पानी के साथ भूमि पर गिरते हैं तो भूमिः प्रदूषित कर देते हैं।

6. अधिकतम सिंचाई

कृषि में सिंचाई का अधिक महत्व है लेकिन कृषि के लिए बरदान देने बालो नहरें अन्तोगत्वा अभिशाप सिद्ध हो रही हैं। इससे मृदा में खारापन बढ़ता है और खेती में पानी का जमाव बना रहता है जिससे भूप्रदूषण का डर बना रहता है।

7. नाभिकीय विस्फोट

अनेकों प्रकार के परीक्षणों के लिए होने वाले नाभिकीय विस्फोटों से मृदा कणों में रेडियोधर्मी तत्वों के साथ क्रिया होती है। जिससे मृदा के मौलिक खनिज एवं रसायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है और भूमि प्रदूषित हो जाती है।

8. नगरपालिका अपशिष्ट

नगरपालिका शहर के सभी प्रकार के कूड़ा-करकट, मानव एवं पशु मल, मरे हुए जानवर, आदि के अपशिष्ट पदार्थों को एक स्थान पर शहर के बाहर डालती रहती है। यह भी मृदा प्रदूषण का कारण है।

मृदा प्रदूषण को रोकने के उपाय (Measures to Control soil Pollution)


भूमि पर अधिकांश प्रदूषण ठोस अपशिष्ट का होता है। जिसे इटाकर दूसरे स्थान पर ले जाने में समय, धन और श्रम तीनों का व्यय होता है। लेकिन इसकाब कोई विकल्प भी नहीं है। भूमि प्रदूषण पर नियंत्रण करने या रोकने के निम्नलिखित उपाय है-

1. गांव या शहर में अपशिष्ट पदार्थ को संग्रह करने का एक उचित एवं निश्चित स्थान होना चाहिए।
2. इन अपशिष्ट पदार्थों का उचित समय पर निस्तारण होना चाहिए।
3. वनोन्मूलन पर रोक लगाई जानी चाहिए, इसके साथ ही वृक्षारोपण को प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए।
4. उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट का निस्तारण ठीक प्रकार से किया जाना चाहिए। ताँबा, पारा, सीसा, कागज, लकड़ी फावड़ा, आदि रासायनिक पदार्थों को इधर-उधर मृदा में नहीं फेंकना चाहिए। उद्योगों में प्रदूषण नियन्त्रक यन्त्र लगाए जाने चाहिए।
5. कृषि कार्य में कृत्रिम उर्वरकों के स्थान पर परम्परागत खाद का प्रयोग होना चाहिए। कीटनाशक रसायनों का प्रयोग कम से कम होना चाहिए।
6. भू-क्षरण को रोकने के दीर्घकालिक उपाय किए जाने चाहिए।
7. बाढ़ नियन्त्रण के लिए योजना बनाकर उन्हें सुचारू रूप से लागू किया जाना चाहिए।
8. कृषि योग्य खेतों में पानी के निकास को उचित व्यवस्था होनी चाहिए। नहरों एवं नालियों को पक्का बनाया जाना चाहिए। नहरों का निर्माण प्रदूषण की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
9. प्रदूषित जल के बहाव के लिए अलग से व्यवस्था की जानी चाहिए, प्रदूषित जल का वृहत भूमि पर बहाव को नियन्त्रित किया जाना चाहिए।
10. नाभिकीय विस्फोट मृदा में नहीं किया जाना चाहिए।
11. ढालनुमा भूमि पर सीढ़ीनुमा कृषि पद्धति अपनाने पर बल दिया जाना चाहिए।
12. कुछ अपशिष्ट भार्गों को पुनः चंक्रकित कर प्रयोग किया जाना चाहिए। ताकि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी हो सके।

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