Noise Pollution: ध्वनि प्रदूषण का अर्थ, परिभाषा, कारक, प्रभाव और ध्वनि प्रदूषण से बचने के उपाय

ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution):- अर्थ एवं परिभाषा


इस जगत में पाए जाने वाले समस्त प्राणियों के लिए ध्वनि एक अनुपम वरदान है। ध्वनि सम्प्रेषण का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। हम अपने विचारों, और भाषा को दूसरों तक पहुंचाने में ध्वनि की ही सहायता लेते हैं। ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है। प्राणि मात्र जब भी कोई कार्य करता है अथवा कोई अभिव्यक्त करता है तो उससे वायुमण्डल पर दबाव पड़ता है और वायु तरंगे उत्पन्न हो जाती है, जिससे आवाज आती है, इसे ही हम ध्वनि की संज्ञा देते हैं।


ध्वनि तीव्र या कम हो सकती है। तीव्र आवार वाली ध्वनि, जो सामान्यतः कार्यों को अप्रिय लगती है' शोर' की सीमा में आ जाती है। जहाँ एक और अच्छे विचारों को अच्छे शब्दों या सन्तुलित संगीत द्वारा ध्वनि मनुष्यों को सुख पहुंचती है वहीं दूसरी ओर अधिक तीव्रता से हमें यह विचलित भी कर देती है और इसका दुष्प्रभाव कष्टप्रद हो जाता है।


बी० रॉय (B. Roy): के अनुसार "अनिच्छापूर्ण ध्वनि जो मानवीय सुविधा, स्वास्थ्य तथा गतिशीलता में हस्तक्षेप करती हो अथवा प्रभावित करती हो, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।"


साइमन्स के अनुसार "बिना मूल्य की अथवा अनुपयोगी ध्वनि प्रदूषण है।" ध्वनि प्रदूषण आधुनिक युग की एक विकट समस्या है। अनैच्छिक या कष्टकर ध्वनि जो मनुष्य का कष्टमय एवं विचलित कर देती है ध्वनि प्रदूषण के रूप में परिभाषित की जाती है।


ध्वनि प्रदूषण के कारक (factors of noise pollution)


ध्वनि प्रदूषण के अनेकों कारक है जिन्हें हम मुख्य रूप से दो भागों में बांट सकते हैं -


1. प्राकृतिक कारक

2. मानवजनित कारक ।


1. प्राकृतिक कारक (Natural Factor)


प्राकृतिक कारकों की श्रेणी के अन्तर्गत-


बादलों की गड़गड़ाहट, 

तूफानी हवाएँ, 

ज्वालामुखी

भूकम्प, 

तेज बारिश, 

तूफान 

बिजली आदि को रखा जा सकता है।


2. मानव जनित कारक (Man Generated Factor)


मानव-जनित कारकों की संख्या अधिक हैं जिनमें कुछ निम्नलिखित हैं -


(क) परिवहन :-

ध्वनि प्रदूषण में परिवहन के साधनों जैसे हवाई जहाज स्कूटर, बस, कार रेलगाड़ी, स्वचालित वाहन आदि आते हैं की भूमिका अहम होती है।

(ख) उद्योग और कारखानें

इसमें जनरेटर्स, मशन सचाइरन आदि आते हैं।

(ग) घरेलू उपकरण एवं मनोरंजन के साधन

इसके अन्तर्गत प्रेशर कूकर, वाशिंग मशीन मिक्सी कूलर, टीवी, रेडियो, टेपरिकार्डर, म्यूजिक सिस्टम आदि आते हैं।

(घ) अन्य वस्तुएँ एवं उपकरण

अन्य बस्तुओं जैसे सेना में प्रयोग किए जाने वाले टैंक, हथगाले, मशीनगन, विखंडित सामग्री और पूजादि।


1. स्थल पर प्रयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर, हारमोनियम, ढोलक, तबला आदि आते हैं। इसके अतिरिक्त मकानों के निर्माण में प्रयोग किए जा रहे मशीन, आटा चक्की, सिनेमा घर, नेताओं के भाषण, बाजारों की भीड़ आदि भी ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं।


ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव (Effect of Noise Pollution)


ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य पर शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार का प्रभाव पड़ता है। जो ध्वनि की चाल के आधार पर तीव्र और कम होता है इसके शारीरिक और मानसिक प्रभावों का विवरण अग्रलिखित है-


1. शारीरिक प्रभाव (Physical Effects)

ध्वनि प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव शरीर पर पड़ता है। बहुत तेज ध्वनि होने से अथवा ऐसी जगह रहने से या काम करने से कान के पर्दे के फटने तक की आशंका रहती है। ध्वनि प्रदूषण का सबसे अधिक दुष्प्रीगव कार्यों पर पड़ता है। अतः तीव्र ध्वनि में रहने से कान सुन्न हो जाता हैं, कानों से कम सुनाई देता है। तीव्र शोर में रहने वाले व्यक्तियों के हृदय, पाचन तन्त्र, तन्त्रिका तन्त्र पर प्रभाव पड़ता है, रक्तचाप बढ़ जाता है, हृदय गति तेज हो जाती है और दिल का दौरा पड़ने की संभावना भी बनी रहती है।


तेज शोर में वार्तालाप करने में व्यक्ति अपने स्वर तन्त्र पर अधिक जोर लगाता है जिससे उसके स्वर तन्त्र में सूजन आ जाती है। गले में खराश आ जाती है जो बाद में रोग का रूप धारण कर लेता है ध्वनि के तेज होने से आंखों द्वारा रंग पहचानने की क्षमता में कमी आ जाती हैं आंखों की पुतलियों का आकार छोटा हो जाता है।


रात्रि काल में कम दिखाई पड़ने लगता है। इससे शरीर की बाहरी त्वचार में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना और बारीक चर्म के परत को उतारने की भी आशंकाएँ बनी रहती हैं। स्नायुतंत्र विशेषज्ञों के अनुसार शोर पीड़ितों में सिर दर्द, जी मिचलाना चक्कर आना, बेचैनी और थकान के अलावा एक खास प्रकार की मिर्गी भी आने की सम्भावना रहती है।


2. मानसिक रोग (Mental Effects)

ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता का असर व्यक्ति के मनस पर भी पड़ता है। शोर की अधिकता से व्यक्ति व्याकुल हो जाता है और कभी-2 मानसिक सन्तुलन भी खो बैठता है। अधिक शोर से व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, भ्रम, अनिद्रा, सहनशक्ति एकाग्रता में भी कमी आ जाती है। व्यक्ति का धीरे-धीरे बौद्धिक ह्रास होने लगता है और वह मानसिक सन्तुलन खो बैठता है।


ध्वनि प्रदूषण से बचने के उपाय (Psecautionary Measures of Noise Pollution)


ध्वनि प्रदूषण आज एक ऐसी समस्या बन चुकी है जो मनुष्य को किसी न किसी रूप में हर तरह से हानि पहुँचाती है। यह ऐसा प्रदूषण जो किसी को दिखाई तो नहीं देता लेकिन लोगों पर बुरा असर डाल देता है। यह मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल रहा है।


धीरे-धीरे लोग मानसिक दिवालियापन के शिकार हो रहे हैं और मृत्यु के सन्निकट होते जा रहे हैं। इससे लोगों में तमाम तरह के रोग उत्पन्न हो रहे हैं जिससे लोगों में शारीरिक एवं मानसिक क्षमता कमजोरी होती जा रही है। आज हमें इस प्रदूषण से बचने के बारे में चिन्तन करके, इससे बचने के उपाय के बारे में सोचना चाहिए। वैसे ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।


1. शोर पर नियन्त्रण

सर्वप्रथम शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों और यन्त्रों पर नियन्त्रण किया जाना चाहिए। शोर उत्पन्न करने वाले मशीनों और यन्त्रों पर ऐसे शोध हों, जिससे शोर पर नियन्त्रण हो या तो शोर को कम किया जा सके। उदाहरणार्थ बस, ट्रक, कार, बाइक, वायुयान, मशीनें आदि के इन्जनों को या तो शोर नियन्त्रण कवों से ढका जाय, या तो शोर नियन्त्रण कवचों से ढका जाय, या शोर नियन्त्रण वाले इन्जन बनाए जाय, जिससे शोर कम हो सकें।


तेज सायरन, हार्न का प्रयोग आबादी वाले क्षेत्रों में प्रतिबन्धित किया जाय। बाइक, स्कूटर, जीव, कार आदि गाड़ियों का साइलेन्सर नियमित रूप से चेक हो और उनकी साफ-सफाई होती रहे। जिससे शोर कम किया जा सके। सड़कों के दोनों ओर घने वृक्ष लगाए जाय। वृक्षों में ऐसे वृक्ष लगाए जाएं जो ध्वनि चूषक जैसे- जामनु आम, कनेर, नौम, पीपल, इमली, गुलमोहर, तेन्दु आदि हों। इससे यह लाभ होगा कि वृक्षों की गहरी मोटी पट्टी शोर को कम कर देगी।


2. शोर के फैलाव की रोकथाम

उद्योगों, कारखानों द्वारा उत्पन्न शोर को फैलने से रोकने के लिए विभिन्न तकनीकी व्यवस्थाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे-कारखानों और उद्योगों में शोर शोधक या ध्वनि अवशोषक दीवारों तथा मशीनों के चारों और मफलरों का कवच लगाकर शोर का स्तर 90 डेसीबल तक किया जा सकता है।


जो व्यक्ति अधिक शोर वाले स्थानों पर कार्य करते हों, उन्हें कानों में 'ईयर प्लग्स' की सुविधा दी जानी चाहिए। कर्मचारी को लम्बे समय तक शौर बाले स्थान पर न रहना पड़े ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए। कल कारखानों को शहर से दूर स्थापित किया जाना चाहिए। ऐसो व्यवस्था करने पर शोर के फैलाव को कम किया जा सकता है।


3. व्यवस्थाओं में अपेक्षित परिवर्तन करके रोकथाम

ध्वनि प्रदूषण जहाँ भी होगा उसका हानिकारक प्रभाव वहाँ रहने वाले लोगों पर अवश्य पड़ेगा। अतः जहाँ तक सम्भव हो वहाँ स्वयं व्यक्तिगत, संस्थान या सरकार के अधिकारी उन व्यवस्थाओं में परिवर्तन करने का प्रयास करे जो शोर को बढ़ावा दे रहे हैं। इससे शोर कम किया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं-


(i) ऐसे संवेदनशील स्थान जैसे विद्यालय, अस्पताल, सामुदायिक केन्द्र या अधिकतम आबादी वाले क्षेत्र को 'साइलेन्स जोन्स' बना दिया जाए।


(ii) बड़े-बड़े उद्योगों, कारखानों के बाहर वृक्ष लगा दिए जाए। जो अनेक प्रकार की जहरीली गैर्सों के अवशोषण करने के साथ ध्वनि तीव्रता को भी कम कर देते हैं।


(iii) भारी वाहनों को आबादी वाले भागों से जान पर रोक लगा दिया जाए। बाइक, जीप, कर आदि छोटे वाहनों में पावर हार्न लगाने पर रोक हो, उनके साइलेन्सर नियमित रूप से चेक हो। जिससे तेज आवाज से बचा सके।


(iv) व्यक्तिगत तौर पर अपने घरों मे रेडियो, टीवी, टेपरिकार्डर को धीमी आवाज में चलाया जाय। पूजा पाठ करते समय भजन, कीर्तन के समय लाउड़स्पीकर का प्रयोग न हों स्वयं धीमे बोलने की आदत डाली जाए।


4. ध्वनि प्रदूषण के बारे में जानकारी देना

ध्वनि प्रदूषण जो आज के परिप्रेक्ष्य में खतरनाक होती जा रही है। इसका मुख्य कारण लोगों को इसके बारे में जानकारी और जागरूकता का अभाव है। इसलिए प्रत्येक आयु के स्तर पर लोगों को ध्वनि प्रदूषण के कारण और परिणाम के बारे में समुचित जानकारी दी जानी चाहिए इसके लिए अनेक विधाओं जैसे संगोष्ठी, व्याख्यान, नुक्कड़ नाटक समाचार पत्र, पत्रिका, रेडियो कार्यक्रम, टीवी, सिरीयस, डाक्यूमॅण्टरी आदि को अपनाकर लोगों को शिक्षित ओर जागरूक किया जा सकता है।


जैसे-2 लोग इस प्रदूषण के दूष्प्रभाव के बारे में जानेंगे वैसे ही वह इनसे बचने के प्रयास में लग जाएंगे। विद्यालयों में ध्वनि प्रदूषण की जानकारी दी जानी चाहिए। उसे व्यवहार में सम्मिलित किया जाना चाहिए। पुस्तकालयों में शोर कम करने, कक्षा में न बोर्ले इस प्रकार के विचार बच्चों में आने चाहिए। पाठ्यक्रम में प्रदूषण को अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिए।


5. कानून बनाकर ध्वनि प्रदूषण पर रोकथाम

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार द्वारा कानून बनाए जाने चाहिए। भारत में शोर नियन्त्रण के सन्दर्भ में स्पष्ट और अलग से कोई केन्द्रीय कानून नहीं है। अभी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में ऐसी व्यवस्था रखी गई है जिसमें किसी भी प्रकार के प्रदूषण के सन्दर्भ में नियम बनाए जा सकते हैं और उन्हें कठोरता से लागू किया जा सकता है।


इस नियम के धारा 15 में नियमों का पालन न करने पर 5 वर्ष तक की सजा तथा 1 लाख तक आर्थिक दण्ड का भी प्रावधान है। लेकिन आज तक ध्वनि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए न तो नियम बने और न कार्यवाही ही हुई। इसलिए आज इस अधिनियम के तहत ध्वनि प्रदूषण के सन्दर्भ में नियम बनाकर उसे संसद में पारित कराने की महती आवश्यकता है।


हालांकि राज्य स्तर मध्य प्रदेश राजस्थान और बिहार ने कुछ अधिनियम जरूर बनाएं। लेकिन वे प्रभावहीन ही साबित हुए। मध्य प्रदेश ने 'संगीत और शोर नियन्त्रण अधिनियम 1950 राजस्थान ने शोर अधिनियम नियन्त्रण 1963 तथ बिहार सरकार ने ध्वनि विस्तारक यन्त्र को बजाने पर नियन्त्रण अधिनियम 1955 बनाए पर उनकी व्यापक यथार्थता सिद्ध नहीं हो सकी।


6. राष्ट्रीय स्तर के प्रयासों की आवश्यकता

यद्यपि अमेरिका, ब्रिटेन आदि विकसित राष्ट्रों की तुलना में शोर प्रदूषण की समस्या भारत में उतनी गम्भीर नहीं है। परन्तु भविष्य में औद्योगिकीकरण के वृद्धि के कारण यह समस्या निश्चित रूपसे आनी है। अतः सरकार को वायु प्रदूषण तथा जल प्रदूषण के समान शोर नियन्त्रण के लिए उपयुक्त विधान बनाने की तथा जन जागरूकता के लिए प्रयास प्रारम्भ कर देने चाहिए।


उद्योगों में व्याप्त ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए मजदूर मालिक ओर सरकार तीनों का ही पर्याप्त सहयोग अपेक्षित है क्योंकि इससे होने वचाले शारीरिक और मानसिक नुकसान मजदूरों, उद्योगों और राष्ट्रों को भी होता है। अतः इस पर बृहद स्च्तर पर प्रयास करने की आवश्कयता है जिससे इससे होने वाले दुष्प्रभाव से बचा जा सके।


आज ध्वनि प्रदूषण की समस्या इतनी व्यापक हो गई है कि इस पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास जारी है कि ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम हो। इसके लिए विश्व के अनेक देशों में ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए कानून भी बनाए गए और उन्हें सही रूप से लागू करने के लिए प्रयास भी जारी हैं।


उदाहरणार्थ- इंग्लैण्ड में शोर रोकथाम अधिनियम 1960 बना है जिसमें रात्रि में 9 बजे से प्रातः 8 बजे तक ध्वनि विस्तारक यन्त्रों पर रोक है। अमेरिका में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए शोर नियन्त्रण अधिनियम 1972 बनाया गया है। जापान में मूल कानून में प्रदूषण नियन्त्रण के सन्दर्भ में पर्यावरणीय जागृति व नियन्त्रण हेतु यथेष्ठ प्रावधान है। आज ध्वनि प्रदूषण को कम करने और उससे बचने के लिए हमें हर स्तर पर चिन्तन करने की आवश्यकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में धीरे-धीरे जनसाधारण की उपेक्षा पाकर, उनमें जागरूकता और जानकारी की कमी के कारण जाने-अनजाने में लगातार वृद्धि हो रही है। इसलिए यदि हर्मे स्वास्थ्य, और सन्तुलित रहना है तो इस समस्या की तरफ ध्यान देना ही होगा। जब तक हम इस ओर जागरूक नहीं होंगे तब तक स्वस्थ समाज की नींव नहीं रखी जा सकेगी। इसलिए सबसे पहले हमें समाज में समायाजित होने, उसे स्वस्थ और सन्तुलित बनाने के लिए स्वयं जागरूक होना होगा।

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