पर्यावरणीय प्रतिबल सिद्धान्त
पर्यावरणीय मनोविज्ञान में जिस सिद्धान्त का सबसे अधिक उपयोग किया गया है, वह पर्यावरणीय प्रतिबल सिद्धान्त या पर्यावरणीय दबाव सिद्धान्त (Environmental Stress Theory) है। प्रतिबल (Stress) सम्प्रत्यय का उपयोग कभी-कभी सिर्फ पर्यावरणीय घटनाओं हेतु ही होता है और जैविक (Organismic) अवयव के लिए तनाव का प्रयोग होता है, परन्तु यहाँ प्रतिबल (Stress) सम्प्रत्यय का उपयोग या प्रयोग सम्पूर्ण उद्दीपक अनुक्रिया की परिस्थिति के लिए होता है, जबकि प्रतिबलक (Stresser) का उपयोग सिर्फ पर्यावरणीय अवयव हेतु होता है।
पर्यावरण के विभिन्न अवयवों जैसे- प्राकृतिक आपदाएँ, व्यवसाय का दवाव, स्थानान्तरण अर्थात् एक स्थान से दूसरे स्थान पर जान का दबाव, नगरों की भीड़ तथा चिल्लाहट आदि को अनाकर्षण उद्दीपक कहा जाता है। इस प्रकार के अनाकर्षण उद्दीपकों को ही प्रतिबलक (Stresser) कहते हैं। इस प्रकार के अनाकर्षण उद्दीपकों से व्यक्ति का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है।
प्रतिबलक एक मध्यवर्ती चर के रूप में होता है, जिसका उपर्युक्त अनाकर्षण उद्दीपकों की प्रतिक्रिया के रूप में व्याख्या किया जाता है। इस प्रतिक्रिया में तीनों अवयव (सांवेगिक, व्यवहारिक तथा दैहिक) सम्मिलित रहते हैं। दैहिक अवयव (Physicological Component) की अवधारणा का प्रतिपादन सर्वप्रथम सेली (Sellye) ने 1956 में किया जिसे साधारणतया सर्वांगी या दैहिक प्रतिबल (Systmatic Stress) के नाम से भी जाना जाता है।
इसी प्रकार व्यवहारिक या व्यवहारपरक तथा सांवेगिक अवयद का प्रतिपादन लेजारस ने। 1966 में किया, जिसे मनोवैज्ञानिक प्रतिबल (Psychological Stress) कहा जाता है।

