इतिहास शिक्षण में अनुदेशनात्मक उद्देश्य ( Instructional Objectives in Teaching History )
इतिहास शिक्षण में अनुदेशनात्मक उद्देश्य: इतिहास शिक्षण में अनुदेशनात्मक अर्थात किसी विशेष पाठ या प्रकरण अधिगम हेतु शिक्षक को नियत कक्षा अवधि में अपने सीमित साधनों के अन्तर्गत पूरे होने वाले कुछ निश्चित और अतिविशिष्ट और निश्चित कक्षा-कक्ष शिक्षण अधिगम उद्देश्यों जिन्हें प्रायः अनुदेशनात्मक उद्देश्यों की संज्ञा दी जाती है के माध्यम से ही वह अपने छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने की चेष्टा करता है। अर्थशास्त्र के अध्ययन, आवश्यकता, महान तमा उनके अध्ययन उद्देश्यों को औपचारिक रूप से विद्यालयों में पढ़ाने के उद्देश्य को ही अनुदेशनात्मक उद्देश्य कहते हैं।
कार्ट एवं गुड के अनुसार- अनुदेशनात्मक उद्देश्य यह स्तर, लक्ष्य या मानदण्ड है जिवे छात्रों द्वारा विद्यालय कार्य की समाप्ति पर प्राप्त किया जाना है। शिक्षण का कार्य छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन करना होता है। समाज जिस प्रकार के व्यक्तियों को चाहता है शिक्षण द्वारा उसी प्रकार के व्यवहारों का विकास किया जाता है। इस प्रकार शिक्षण कार्य छात्रों में समाज द्वारा वांछित व्यवहारों का विकास किया जाता है। इस दृष्टिकोण से शिक्षण या अनुदेशनात्मक उद्देश्यों से तात्पर्य छात्र व्यवहारों में पूर्व निर्धारित परिवर्तन लाने से है।
अनुदेशनात्मक उद्देश्य का महत्व अनुदेशनात्मक उद्देश्य स्पष्ट, सुनिश्चित मापनीय तथा सीमित होते है। अनुदेशनात्मक उद्देश्य के निम्नलिखित महत्व बताए जा सकते हैं-
1. अनुदेशनात्मक उद्देश्य मापनीय होते है उन्हें उचित मापदण्डों द्वारा मापा जा सकता है।
2. अनुदेशनात्मक उद्देश्य स्पष्ट होते है। परिणामस्वरूप अर्थशास्त्र शिक्षण के उद्देश्य भी स्पष्ट होते है।
3. अनुदेशनात्मक उद्देश्य वास्तविक तथा व्यवहारिक होते है।
4. अनुदेशनात्मक उद्देश्य का क्षेत्र सीमित होता है। परिणामस्वरूप इनसे छात्रों के समस्त व्यवहारों को परिमार्जित या परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
5. अनुदेशनात्मक उद्देश्यों को एक निश्चित कथन द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
6. अनुदेशनात्मक उद्देश्यों का सीधा सम्बन्ध छात्रों के व्यवहारगत परिवर्तनों से होता है।
7. अनुदेशनात्मक उद्देश्य प्राण्यनीय होते है। इन्हें सुनिश्चित शिक्षण क्रियाओं के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।