सामाजिक विज्ञान में पाठ्य-पुस्तक विधि का क्या महत्व है?
पाठ्य-पुस्तक विधि
यह विधि सबसे अधिक प्रचलित विधि है। " यह विधि पाठ्य पुस्तक को आधार मानती है, जैसे कोई अन्य विधि किसी समस्या या योजना को आधार मानकर चलती है।" इस विधि का प्रयोग भाषा-शिक्षण में किया जाता है। सामाजिक अध्ययन शिक्षण के अन्तर्गत भूगोल में क्रियात्मक पक्ष एवं मानचित्र सम्बन्धी ज्ञान देने के लिए यह विधि उपयोगी है।
आजकल कुछ विद्वान् इस विधि को 'तू' पढ़ मैं सुनूँ' या 'तू पढ़ विधि' के नाम से भी पुकारते हैं जो कि युक्तिसंगत नहीं है बल्कि इसका बिगड़ा हुआ रूप है, क्योंकि विद्यार्थी बारी-बारी से पढ़ते हैं और अध्यापक सुनता है अथवा अध्यापक पढ़ता है तो विद्यार्थी सुनते हैं।
इस प्रकार पुस्तक का प्रयोग करने को 'पाठ्य पुस्तक विधि' नहीं कहा जा सकता। इसका प्रयोग तो शिक्षण सामग्री के रूप में होता है और शिक्षण सामग्री का प्रयोग करते समय कौन-कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिए? यह बात अध्यापक को मालूम होनी चाहिए तभी वह इस विधि का प्रयोग कर सकता है।
पाठ्य-पुस्तक विधि के महत्त्व पाठ्य पुस्तक विधि के निम्नलिखित महत्त्व हैं-
(1) इस विधि के प्रयोग से भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक शब्दावली, भौगोलिक आदि को कण्ठस्थ कराया जा सकता है।
(2) इस विधि द्वारा शिक्षक निर्दिष्ट कार्य को पूरा करने में समर्थ होता है।
(3) अध्यापक को विषय-सामग्री उम्बन्धी तैयारी नहीं करनी पड़ती है।
(4) पाठ्य पुस्तकें विद्यार्थियों को लक्ष्य करके लिखी जाती हैं, अतः विद्यार्थियों के लिए लाभकारी होती हैं।
(5) यदि कोई बात कक्षा में पूर्ण रूप से समझ में नहीं आती है तो विद्यार्थी पुस्तक की सहायता से उस बात को समझ सकता है।