दार्शनिक शिक्षण प्रतिमान - PhilosophicalTeaching Paradigm
दार्शनिक शिक्षण प्रतिमान- सन् 1965 में इजराइल सेलफर ने शिक्षण के तीन दार्शनिक प्रतिमानों का वर्णन किया है। सेलफर महोदय का यह विचार था कि शिक्षण में ज्ञानात्मक, मनोवैज्ञानिक एवं सार्वभौमिक तत्त्व निहित होते हैं। शिक्षण में निहित ये तत्त्व ही शिक्षण की प्रकृति की व्याख्या करते हैं। शिक्षण की विशेषताओं को आधार मानकर इजराइल सेलफर ने दार्शनिक शिक्षण प्रतिमानों के तीन प्रतिमानों का विकास किया-
(i) प्रभाव प्रतिमान
दार्शनिक शिक्षण प्रतिमानों का सर्वप्रथम प्रतिमान प्रभाव प्रतिमान है। यह प्रतिमान अत्यधिक सरल एवं व्यापक माना जाता है। शिक्षण से आशय विद्यार्थियों द्वारा संचय करना है। जॉन लॉक के अनुसार, "बालक का जन्म से मस्तिष्क सक्त रहता है। शिक्षण द्वारा प्रदत्त अनुभव ही उसके मस्तिष्क पर जो प्रभाव डालते हैं उसे अधिगम कहते हैं।
मानसिक शक्तियों के अभ्यास के माध्यम से विद्यार्थियों में प्रत्यक्षीकरण, विभेदीकरण, धारण एवं चिन्तन की क्षमताओं को विकसित किया जाता है। लक्षण के माध्यम से छात्रों को बाह्य तत्त्वों का अनुभव प्रदान किया जाता है तथा विद्यार्थी प्रत्यक्षीकरण के माध्यम से व्यवस्था करता है। अधिगम प्रक्रिया के अन्तर्गत ज्ञानेन्द्रियों को अनुभूतियों एवं भाषा सिद्धान्तों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। शिक्षण प्रभावोत्पादकता, अध्यापक की योग्यता, कुशलता एवं सम्प्रेषण की क्षमताओं पर निर्भर करती है।"
(ii) सूझ प्रतिमान
दार्शनिक शिक्षण प्रतिमानों का दूसरा महत्त्वपूर्ण शिक्षण प्रतिमान है- सूझ प्रतिमान। यह प्रतिमान प्रभाव प्रतिमान से बिल्कुल पृथक् प्रकार का है। शिक्षण के माध्यम से विचारों अथवा ज्ञान को विद्यार्थियों के मानसिक भण्डार में पहुँचना रहता है, प्रभाव प्रतिमान कहलाता है. जबकि सूझ प्रतिमान उपर्युक्त धारणा का खण्डन करता है। सूझ प्रतिमान के अनुसार छात्रों के मन को केवल इन्द्रियों की अनुभूति द्वारा ही प्रदान नहीं किया जा सकता वरन् ज्ञान के लिए पाठ्यक्रम की सूझ होना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
(iii) नियम प्रतिमान
प्रभाव एवं सूझ प्रतिमान की अपनी पृथक् पृथक् सीमाएँ हैं। दार्शनिक शिक्षण प्रतिमानों के तीसरे नियम प्रतिमान में स में सूझं प्रतिमान की कमियों का परिष्करण किया गया है। काण्ट महोदय ने शिक्षण के अन्तर्गत तर्क शक्ति को अधिक महत्त्व प्रदान करते हुए तर्क में किन्हों नियमों का अनुसरण किया है। काण्ट महोदय का कहना है कि "ज्ञानात्मक पक्ष में तर्क एक प्रकार से सत्य हेतु विभिन्न प्रमाणों को प्रस्तुत करता है।"