इकाई योजना के सोपान - Steps of Unit Plan

इकाई योजना के सोपान - Steps of Unit Plan

(1) सम्पूर्ण अवलोकन

इस सोपान में अध्यापक शिक्षण इकाई के उद्देश्यों का निर्धारण इस प्रकार करता है कि छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। साथ ही छात्रों को नवीन ज्ञान को रुचिपूर्वक ग्रहण करने हेतु प्रेरित किया जाता है। इसके अन्तर्गत अध्यापक इकाई की प्रकृति एवं क्षेत्र उद्देश्य कथन के माध्यम से छात्रों के सम्मुख प्रस्तावना के बाद प्रस्तुत करता है।


(2) उद्देश्य का निर्धारण -

प्रत्येक इकाई के शिक्षण के पूर्व इस इकाई के सामान्य तथा विशिष्ट उद्देश्यों का निर्धारण कर लिया जाता है अर्थात् इकाई शिक्षण द्वारा छात्रों में किस प्रकार व्यावहारिक परिवर्तन की अपेक्षा की जा रही है।


(3) अधिगम परिस्थितियाँ-

छात्रों को विषय वस्तु को तार्किक क्रम में प्रस्तुत करके अधिगम अनुभव प्रदान किया जाता है। इसमें निम्नलिखित क्रियाएँ सम्पादित होती हैं-


(i) प्रारम्भिक क्रियाएँ -

प्रारम्भ में छात्रों को पाठ के लिए तैयार एवं प्रेरित करने के लिए ऐसी क्रियाओं को योजना में स्थान देते हैं, जो छात्रों को नवीन ज्ञान प्राप्त करने की सीढ़ी तक पहुँचाए तथा सीखने की जिज्ञासा उत्पन्न करे। इस कार्य में जो विधियाँ प्रयुक्त होती हैं वे हैं- प्रश्न विधि, समस्या विधि, नवीन इकाई का पूर्व इकाई से सह-सम्बन्ध, विचार प्रेरक प्रयोग या प्रदर्शन, वाद-विवाद विधि।


(ii) अधिगम क्रियाएँ -

अधिगम क्रियाएँ छात्रों के वांछित व्यवहार परिवर्तन की दिशा में कार्य करती हैं, इसके अन्तर्गत शिक्षक पाठ प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है। 


(iii) अंतिम क्रियाएँ -

इसमें इकाई का अन्त किया जाता है। इसके लिए संक्षिप्तीकरण पुनः निरीक्षण तथा अभ्यास कार्य किया जाता है, जिससे प्राप्त ज्ञान छात्रों के मस्तिष्क में स्थायी रूप ले सके। यह सोपान ज्ञान की पुनरावृत्ति का है।


(iv) मूल्यांकन -

मूल्यांकन में विद्यार्थियों के वांछित व्यवहार परिवर्तन तथा उद्देश्यों की प्राप्ति का मूल्यांकन किया जाता है।


इकाई योजना के गुण ( Ikaee Yojana ke Gun )

(1) यह एक मनोवैज्ञानिक योजना विधि है।
(2) यह छात्र केन्द्रित विधि है, जिसमें छात्रों की क्षमताओं एवं आवश्यकताओं को महत्त्व दिया जाता है।
(3) इस विधि में छात्रों की रुचियों पर बल दिया जाता है तथा शिक्षण उद्देश्य की प्राप्ति का सरलीकृत स्वरूप प्रयोग में लाया जाता है।
(4) इसके द्वारा छात्रों में स्व-अध्याय की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।
(5) अधिगम व्यवस्थित रूप में होने के कारण अधिक स्थायी होता है।
(6) उचित शिक्षण सामग्रियों के माध्यम से ज्ञान का प्रसार।

इकाई योजना के दोष ( Ikaee Yojana ke Dosh )

(1) कभी-कभी पाठ लम्बा हो जाने के कारण उसे एक चक्र में पढ़ाना सम्भव नहीं होता, तब समन्वय में कठिनाई होती है।
(2) इस विधि के प्रयोग में अध्यापक की स्वतन्त्रता सीमित हो जाती है और वह अपने विचारों को प्रस्तुत नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप शिक्षण यान्त्रिक निर्जीव एवं नीरस हो जाता है।
(3) इसमें शिक्षण की मौलिकता समाप्त हो जाती है।
(4) इकाई को छोटे-छोटे भागों में बाँटने से पूर्ण इकाई का महत्त्व कम हो जाता है।

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