निदानात्मक मूल्यांकन क्या है?
निदानात्मक मूल्यांकन वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया क केन्द्र बिन्दु छात्र है, जिसके चारों ओर सम्पूर्ण शैक्षणिक क्रिया घूमती है। आज यदि छात्र किसी विषर वस्तु को ग्रहण करने में कठिनाई का अनुभव करता है तो शिक्षक का कर्तव्य बन जाता है कि वह छात्रों की इस कठिनाई का कारण खोज कर उसका निदान प्रस्तुत करे। अधिगम में आने वाले कठिनाइयों, समस्याओं को पहचानना तथा उनका निदान ही निदानात्मक मूल्यांकन है।
यह ऐसा मूल्यांकन प्रतिमान है, जिसका सम्बन्ध अधिगम सम्बन्धी जटिलता तथा कठिनाइयों को दूर करने से होता है। शिक्षक का कार्य अब केवल शिक्षण तक ही सीमित नहीं है, वरन् उसे छात्रों की रुचियों, अभिरुचियों योग्यताओं एवं क्षमताओं का पता लगाकर अपनी शिक्षण पद्धतियों को इनके अनुरूप ढालना होता है।
शिक्षक का यह भी कर्त्तव्य है कि वह छात्रों के ऐसे दोर्षों का पता लगाए तथा उन्हें दूर करने के उपाय भी करे, जो शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि निदानात्मक मूल्यांकन वह प्रतिमान है, जिसमें छात्रों की अधिगम कठिनाइयों समस्याओं के लक्षणों का पता लगाया जाता है, ताकि उनका उपचार किया जा सके। इसके लिए निदानात्मक परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।