पाठ्यचर्या का अर्थ ( Paathyacharya ka arth )
नियोजित शिक्षा के उद्देश्य निश्चित होते हैं। इन निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कुछ विषयों, का ज्ञान एवं क्रियाओं का प्रशिक्षण आवश्यक होता है। अपने सामान्य अर्थ में इसी को पाठ्यचर्या कहते हैं।
इस प्रकार पाठ्यचर्या शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन होती है। अंग्रेजी में इसके लिए 'करीकुलम' शब्द का प्रयोग होता है। 'करीकुलम' शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन शब्द 'क्यूरेर' से हुई है और क्यूरेर का अर्थ होता है दौड़ना। इस दृष्टि से करीकुलम' का अर्थ होता है दौड़ का मैदान।
जिस प्रकार दौड़ के मैदान में दौड़कर कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य तक पहुँचता है, उसी प्रकार निश्चित पाठ्यचर्या को पूरा करके शिक्षार्थी निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति करता है।
कनिंघम महोदय ने पाठ्यचर्या को उद्देश्यों की प्राप्ति के साधन के रूप में ही स्वीकार किया है।
उनके शब्दों में, "पाठ्यचर्या कलाकार (अध्यापक) के हाथों में वह यन्त्र (साधन) है जिससे वह अपनी वस्तु (विद्यार्थी) को अपने कला कक्ष (विद्यालय) में अपने आदर्शों (उद्देश्यों) के अनुसार बनाता है।"
परन्तु अब पाठ्यचर्या का अर्थ इससे कुछ अधिक होता है। प्राचीनकाल में तो पाठ्यचर्या प्रायः बौद्धिक विषयों के अध्ययन और कला कौशलों के प्रशिक्षण हेतु विद्यालय में किये जानेवाले कार्यों तक सीमित रहती थी, लेकिन अब इसकी सीमा में वे सब अनुभव सम्मिलित किये जाते हैं जो बच्चों - को विद्यालय की कक्षाओं, पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं, कार्यशालाओं, खेल के मैदानों और साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंचों पर प्राप्त होते हैं।
माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर कमीशन, 1952) के - प्रतिवेदन में इस सत्य पर बल देते हुए यह लिखा है-" यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि सर्वोत्तम शैक्षिक विचारधारा के अनुसार पाठ्यचर्या का तात्पर्य विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले परम्परागत विषयों तक ही सीमित नहीं है, अपितु इसमें वे सब अनुभव निहित होते हैं जो एक बच्चा किसी विद्यालय में प्राप्त करता है।"