निबन्धात्मक परीक्षा ( Nibandhaatmak Pareeksha )
हमारे देश में निबन्धात्मक परीक्षा का प्रचलन अधिक है। इसमें बालकों को कुछ प्रश्नों के उत्तर निश्चत समय के भीतर निबन्ध के रूप में देने पड़ते हैं। इसमें बालकों की अभियोजना शक्ति, सुलेख, लिखने को शैली, भाषा आदि का ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
इसके अतिरिक्त इसमें आत्मगत- तत्त्व की प्रधानता रहती है। इस आलोचना के होते हुए भी इसको नहीं छोड़ा जा सकता, क्योंकि इसके द्वारा बालक विचारों को व्यवस्थित रूप में व्यक्त करना सीख जाते हैं। इसके अलावा यह बालकों की आदान-प्रदान करने की नैसर्गिक रुचि को सन्तुष्ट करने में मदद देती है।
निबन्धात्मक परीक्षा के चार गुण तथा चार दोष
निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली के गुण निवन्धात्मक परीक्षा प्रणाली के कुछ गुण इম प्रकार हैं-
(1) इसमें बालक को कुछ प्रश्नों के उत्तर एक निश्चित समय के अन्दर लिखने पड़ते हैं। इस प्रकार बालकों को समय को पाबन्दी का ज्ञान हो जाता है।
(2) यह परीक्षा बालकों की तर्क और निर्णय आदि शक्ति के विकास में सहायक होती है।
(3) यह परीक्षा बालकों को अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करती है।
(4) इस परीक्षा प्रणाली में भाषा के ज्ञान का परीक्षण ही जाता है।
निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली के दोष
(1) इस प्रणाली में विद्यार्थी को विषय का वास्तविक ज्ञान नहीं हो पाता है। साधारण परीक्षा में कुछ समय पूर्व विद्यार्थी प्रश्नोत्तर पुस्तकें तथा सम्भावित प्रश्नोत्तर खरीद लेते हैं। वे उनके प्रश्नों के उत्तर रट लेते हैं। इस प्रकार उन्हें विषय वस्तु वास्तविक रूप से समझने में नहीं आती है। इस प्रकार शिक्षा का उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है।
(2) इस परीक्षा प्रणाली में विश्वसनीयता का अभाव पाया जाता है। एक प्रश्न-पत्र को अनेक बार मूल्याकंन करने को दिये जाने पर विभिन्न समय में अंक प्रदान किये जाते हैं।
(3) इस परीक्षा प्रणाली द्वारा बालक की योग्यता का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो पाता है।
(4) इस परीक्षा में जो प्रश्न-पत्र बनाये जाते हैं उनमें पूरे पाठ्यक्रम से प्रश्न पूछा जाना सम्भा नहीं हो पाता है। इस प्रकार यह प्रणाली पूरे पाठ्यक्रम से सम्बन्धित बालक की योग्यता का मूल्यांकन नहीं कर पाती है।