आधुनिक शिक्षण प्रतिमान - Modern teaching paradigm
आधुनिक शिक्षण प्रतिमान- समस्त शिक्षण प्रतिमानों की समीक्षा करके बी०आर० जुआइस ने चार वर्गों में विभक्त किया है। जुआइस ने प्रतिमानों का वर्गीकरण करते समय लक्ष्य को आधार माना है। जुआइस द्वारा बतलाये गये शिक्षण प्रतिमान निम्नलिखित हैं-
(1) सामाजिक अन्तः प्रक्रिया प्रतिमान
सामाजिक अन्तः प्रक्रिया प्रतिमानों का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों में सामाजिकता का विकास करना है। सामाजिक अन्तः प्रक्रिया प्रतिमानों के प्रतिमान यह मानकर चलते हैं कि व्यक्तियों के परस्पर सामाजिक अन्तः प्रक्रिया के माध्यम से विकसित सामाजिक सम्बन्धों के द्वारा व्यक्ति को परिवर्तित करने के उत्तम साधन हैं।
सामाजिक अन्तः प्रक्रिया प्रतिमानों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा के द्वारा व्यक्तियों में परावर्तन चिन्तन को विकसित करके उसमें प्रजातान्त्रिक भावनाओं को विकसित किया जा सकता है। यह प्रजातान्त्रिक भावना सामाजिक सम्बन्धों को सुधार कर व्यवहार में परिवर्तन करती है।
परावर्तन चिन्तन एवं प्रजातान्त्रिक भावनाओं को विकसित करके सामाजिक अन्तः प्रक्रिया द्वारा सामाजिक सम्बन्ध का विकास करने की दृष्टि से जायसी एवं वेल ने चार शिक्षण प्रतिमानों का उल्लेख किया है। इन सामाजिक अन्तः प्रक्रिया शिक्षक प्रतिमानों का वर्णन निम्नलिखित है-
(2) सामूहिक अन्वेषण प्रतिमान
इस प्रतिमान के प्रतिपादक जॉन डीवी एवं किलपैट्रिक हैं जिसकी अपनी पृथक् सभ्यता एवं सामाजिक व्यवस्था होती है। छात्र इसी के अनुरूप व्यवहार करना सीखता है एवं यहीं से वह समस्या निराकरण की विभिन्न विधियाँ सीखकर उनमें दक्षता प्राप्त करता है। इस प्रतिमान से प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-
(i) उद्देश्य - इस प्रतिमान का मुख्य उद्देश्य अथवा केन्द्र बिन्दु विद्यार्थियों में सामाजिक दक्षता का विकास करना है, जिससे जनतान्त्रिक जीवन में समायोजन कर सकें।
(ii) संरचना- सामूहिक खोज शिक्षक प्रतिमान की संरचना में सर्वप्रथम विद्यार्थी के समक्ष कोई समस्या प्रस्तुत की जाती है। यह समस्या शाब्दिक रूप में नहीं वरन् वास्तविक रूप में प्रस्तुत की। इस समस्या प्रस्तुतीकरण के उपाय विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं। समस्या को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करने की विधि होती है।