वेबर का नियम - Weber's Law

वेबर का नियम - Weber's Law

वेबर लिपजिग विश्वविद्यालय का आदर्श शरीरशास्त्र था। वेबर ने मनोभौतिकी के क्षेत्र में भित्रता सीमान्त (DL) की परिमाणात्मक व्याख्या सम्बन्धी अध्ययनों के आधार पर अपने नियम की स्थापना की है। वेबर के नियम को समझने से पहले एक उदाहरण आवश्यक उदाहरणार्थ यदि एक व्यक्ति से कहा जाये कि वह 10 सेमी लम्बी तथा 10.25 सेमी रेखा का प्रत्यक्षीकरण करके बनाए कि दोनों रेखाओं में से कौन-सी रेखा लम्बी है।


सम्भवतः इन रेखाओं की लम्बाई के प्रत्यक्षीकरण के सम्बन्ध में व्यक्ति की अनुक्रिया या उत्तर नहीं होगा क्योंकि दो रेखाओं में अन्तर बहुत ही कम है। यदि दो रेखाओं के इस अन्तर को बढ़ा दिया जाये तो निश्चत ही वह व्यक्ति बड़ी रेखा को बड़ा और छोटी रेखा को छोटा । स्पष्ट है कि जब दो उद्दीपकों के अन्तर की मात्रा कम होती है तो उद्दीपकों में अन्तर दो पहचानना कठिन होता है।


वेबर ने अपने अध्ययनों के आधार पर कहा कि किसी भी प्रतिपक की वह कम से कम मात्रा जिसे बढ़ाने या घटाने से दो उद्दीपकों में अन्तर का इयक्षीकरण ही भिन्नता सीमान्त कहलाता है। वेबर के नियमों के अनुसार भिन्नता सीमान्त और प्रामाणिक उत्तेजना में सदैव एक अनुपात होता है। इस अनुपात को सूत्र द्वारा निम्न इकार से लिख सकते हैं-


उपरोक्त सूत्र में AS (डेल्टा एस) का अर्थ उद्दीपक मूल्य की उस वृद्धि से है जिसके कारण 50 प्रतिशत प्रयासों में संवेदना का आभास होता है। K एक स्थिरांक है जिसका अर्थ उद्दीपक सत्य के स्थिर समानुपात से है। निश्चित प्रयोग दशाओं तथा निश्चित उद्दीपक मूल्य के पर * का मान स्थिर होता है। वेबर के अनुसार भित्र-भिन्न उद्दीपकों के लिए यह स्थिर अनुपात -भिन्न होता है।

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