थार्नडाइक का सिद्धांत - Thorndike's theory
थॉर्नडाइक के सिद्धान्त को कई नामों से जाना जाता है; जैसे- थॉर्नडाइक बर सम्वन्धवाद, थॉर्नडाइक का सम्बन्ध सिद्दान्त, उत्तेजना प्रतिक्रिया सिद्धान्त तथा प्रयास औध भूल का सिद्धान्त। थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धान्त को सर्वप्रथम 1898 में और फिर 1913 में प्रकाशित किया।
थार्नडाइक के सिद्धान्त ( Thorndike's theory ) के अनुसार, जब जीव को नई परिस्थिति में रखा जाता है तो यह बिना समझे तरह-तरह की अनुक्रियाएँ करता है। उसकी यह अनुक्रियाएँ दोषपूर्ण होती हैं। जब उस जीव को बार-बार उन्हीं परिस्थितियों में रखा जाता है तब उसकी निर्लक्ष्य और दोषपूर्ण क्रियाएं कम होती जाती हैं।
कई प्रयासों के बाद एक अवस्था आती है जब जीव को दृश् परिस्थितियों में रखा जाता है तब वह जीव केवल उचित अनुक्रिया ही करता है। अतः जीव प्रयास और भूल के द्वारा सीखता है। दूसरे शब्दों में जब जीव के सामने एक विशेष परिस्थिति या उत्तेजना होती है तब वह एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया करता है। कई प्रयासों के बाद दोषपूर्ण प्रतिक्रियाएँ कम या समाप्त हो जाती हैं और उत्तेजना तथा प्रतिक्रिया के बीच सम्वना स्थापित हो जाता है जिसे S-R-Bond या उत्तेजना-प्रतिक्रिया सम्बन्ध कहते हैं, यही सम्बन्धवाद है।
भविष्य में इसी सम्बन्ध के फलस्वरूप जीव उत्तेजना के प्रति उसी प्रकार की प्रतिक्रिया करता है। थॉर्नडाइक के अनुसार, "सीखना सम्बन्ध स्थापित करना है। सम्बन्ध स्थापन में मनुष्य का मस्तिष्क कार्य करता है।" यह सम्बन्ध अनेक प्रकार का हो सकता है। तथा सीखने की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का भिन्न मात्रा में योगदान हो सकता है। यह सम्बन्ध विशिष्ट उत्तेजनाओं और प्रतिक्रियाओं के कारण स्नायुमण्डल में स्थापित होता है।