संधृत अवधान - Sustained Attention
इस अध्याय में किये गये वर्णन से यह स्पष्ट है कि प्राणी या व्यक्ति किसी उद्दीपक या कार्य पर अपने अवधान को प्रभावशाली ढंग से केन्द्रित कर सकता है। किसी उद्दीपक या कार्य पर अवधान को व्यक्ति कब तक प्रभावशाली बनाये रख सकता है अथवा वह किसी उद्दीपक पर कितनी अवधि या किस सीमा तक सतर्कता की समस्या से सम्बन्धित है। इस संबंध में महत्वपूर्ण अध्ययन मैकवर्थ (MacWorth) द्वारा किये गये हैं।
मैकवर्थ ने एक घड़ी परीक्षण (Clock Test) बनाया जो वास्तव में एक Stimulated Radar Display यंत्र था। इस यंत्र में काले रंग का पॉइण्टर गोलाकार सीमा पर एक सेकिण्ड 3 इंच बढ़ता था। कभी यह इतने ही समय में 6 इन्च बढ़ जाता था। इस प्रयोग में प्रयोज्य यह था कि जच भी पॉइण्टर 6 इंच आगे बढ़े तो उसे तुरन्त एक बटन दबाना होता । इस प्रयोग में प्रत्येक प्रयोज्य से दो घंटे कार्य कराया गया और प्रयोग में प्रयोज्यो पर एक करने परीक्षण किया गया।
उसने अपने इस प्रयोग में प्रयोज्यों के कार्य निष्पादन का ग्राफ देखा कि पहले आधे घण्टे प्रयोज्यों ने 16% दोहरी चालों को नहीं देख पाये उपवा अगन दे पाये। दूसरे आधे घंटे में 27% तीसरे आधे घंटे में 29% और चतुर्थ आधे घंटे 31% दोहरी गनियों पर ध्यान नहीं दे पाये। मैकवर्थ ने अपने इस अध्ययन के आधार पः निष्कर्ष निकाला कि समय में वृद्धि के साथ-साथ प्रयोज्यों की सतर्कता की गति तेजी से कहानी है और समय व्यतीत होने के साथ सतर्कता की गति धीरे-धीरे कम होती है। गुडशनर ने भी अपने प्रयोग में यह देखा कि बीस से पैतीस मिनट के अन्दर ही सतर्कता के इनर में कमी आ जाती है।
संधृत अवधान के सिद्धान्त ( Theory of Sustained Attention )
(1) संघृत अवधान का प्रत्याशा सिद्धान्त- इस सिद्धान्त का प्रतिपादन बेकर और डीज के अध्ययनों के आधार पर हुआ। इस सिद्धान्त की पहली मान्यता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अनुभवों के आधार पर सूचनायें एकत्रित करता रहता है यह एकत्रित सूचनाएं हीं, 'भविष्य में घटित होने वान्नी घटनाओं के सम्बन्ध में प्रत्याशा के निर्माण के लिए आधार बनती हैं।
संधृत अवधान में सम्वन्धित कार्य के प्रारम्भ में प्राप्त होने वाले उद्दीपकों के आधार पर प्रयोज्य अनुमान लगाकर भविष्य में घटित होने वाले उद्दीपकों के संम्बन्ध में प्रत्याशा बनाता है। यदि प्रत्याष्ठा के अनुसार भविष्य में उद्दीपक घटित नहीं होते हैं तो प्रत्याशा का स्तर गिर जाता है और दुग ग्र्थािन में प्रयोज्य की उद्दीपक के प्रति तत्रग्ना कम हो जाती है और तत्परता कम होने क. माथ-साथ प्रयोज्य के सतर्कता स्तर में भी गिरावट आ जाता है।
(2) संधृत अवधान का उदोलन सिद्धान्त इस सिद्धान्त का प्रतिपादन हेव्व के प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर हुआ। हेब्ब का विचार है कि सांवेदिक सूचनाएँ ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ग्नष्क के कॉर्टेक्स में पहुँचती है। यह सूचनाएँ उद्दीपक के सम्बन्ध में मस्तिष्क को तो सूचना दनो ही है साथ-साथ इनका कार्य भस्तिष्क की तत्परता को बढ़ाना है।
ज्ञानेन्द्रियों की सांवेदिक मृचनाएं सुषुम्ना नाड़ी से होते हुए रेटिकुलर ऐक्टीवेशन व्यवस्था और फिर थैलमस तक पहुंचकर मस्तिष्क को सक्रिय रखने का कार्य करती है। यह सक्रियकरण या उदोलन जब तक रहता है तब तक संधृत अवधान, बना रहता है, सतर्कता बनी रहती है और सतर्कता सम्बन्धी कार्य निष्पादन का स्तर उच्च रहता है।