प्राकृतिक संगठन के नियम - Laws of Natural Organization

प्राकृतिक संगठन के नियम - Laws of Natural Organization

( 1 ) आन्तरिक नियम-

प्रात्यक्षिक संगठने के वेज उद्दीपक में अन्तर्निहित शिषताओं से सम्बद्ध हैं और जो अनुभवों पर आश्रित नहीं होते हैं, आन्तरिक नियम के रूप में जाने जाते हैं। नियमों के द्वारा ऐसे संरूपों का निर्माण सम्भव होता है जिनसे प्रत्यक्षीकरण में प्राग्नांज बना रहता है। ये नियमों हैं निकटता, समानता, निरन्तरता, पूर्ति, समान नियति, समावेशन सममितता तथा विन्यास ।


1. निकटता का नियम-

प्रात्यक्षिक क्षेत्र के वे अंग या अवयव जो समय की दृष्टि से जल्दी प्रस्तुत किये जा रहे हों अथवा स्थान की दृष्टि से पास स्थित हो सदैव उपसमूहों में संगठित हो जाते हैं और उनका प्रत्यक्षीकरण इस प्रकार उनकी निकटता के आधार पर निर्णीत होता है।


2. समानता का नियम-

यदि प्रात्यक्षिक क्षेत्र के विभिन्न अंग विभिन्न रूपों वाले हों और निकटता के कारण उनका समूहीकरण कठिन हो रहा हो तो उन उद्दीपकों का संगठन समानता के आधार पर होता है।


3. प्रत्यक्षता तथा दिशा का नियम-

इस नियम के अनुसार प्रत्यक्षता तथा दिशा का नियम और अविच्छिन्न दिशा की ओर उन्मुख होते हुए सम्पन्न होता है। विच्छिन्न और खण्डित उद्दीपकों की अपेक्षा अविच्छिन्न या निरन्तर दिशा के उद्दीपक ज्यादा प्रभावी होते हैं। 


4. पूर्ति का नियम

अधूरी या अंशतः अपूर्ण आकृति पूर्ति के नियम के अनुसार समूह बनाती है और अधूरी आकृति भी पूर्ण जैसी लगती है।


5. समान नियति का नियम-

उहीपकों की कोई श्रृंखला जब एक साथ समान वेग से समान दिशा में विद्यमान रहती है तो उन अवयवों में संगठन बन जाता है। समान नियति का अर्थ है समान वातावरण में उपस्थित उद्दीपक एक जैसी नियति के कारण परस्पर आबद्ध हो जाते हैं।


6. समावेशन का नियम-

संगठित पूर्ण आकृति के अन्तर्गत विद्यमान आंशिक पूर्ण आकृति की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं रह जाती है। वह अंश अलग न दिखाई देकर पूर्ण आकृति में समाविष्ट हो जाता है।


7. सममितता का नियम-

समान प्रकार की आकृतियाँ यदि किसी चित्र में समान भाव से वितरित की गई हो तो वे परस्पर संगठन बना लेने के कारण सुगठित हो जाती हैं। 


8. विन्यास का नियम-

उद्दीपकों की एक दिशा का होना उद्दीपक के निर्धारण के लिए सहायक हो सकता है।


(2) बाह्य नियम

ऊपर वर्णित आन्तरिक नियमों के अतिरिक्त कुछ बाह्य नियम भी गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने प्रतिपादित किए हैं क्योंकि जब उद्दीपक की संरचनात्मक विशेषताएँ अस्पष्ट सी रहती हैं तब् आकृति का प्रत्यक्षीकरण केवल आन्तरिक विशेषताओं के कारण नहीं हो पाता। उद्दीपव आकृति की संरचनात्मक अस्पष्टता की स्थिति में प्रयोज्य पूर्वानुभव परिचय, मनोविन्यार आदि दशाएँ निर्धारक का कार्य करती हैं।

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