अभिप्रेरणात्मक व्यवहार के मापदण्ड - Standards of Motivated Behavior
अभिप्रेरणा सम्बन्धी अनुसंधान की समीक्षा करके काफर एवं एपली ने बताया है कि अभिप्रेरित व्यवहार का निर्धारण पाँच मापदण्डों पर किया जा सकता है। इन मापदण्डों को अभिप्रेरित व्यवहार की आवश्यक विशेषताएँ माना जा सकता है।
1. उर्जस्वन एवं संजीवन-
जब कभी किसी प्रकार का अभिप्रेरक चर प्राणी को प्रभावित करता है तो प्राणी की ज्ञानेन्द्रियाँ, कार्मेन्द्रियाँ एवं मस्तिष्क उर्जस्वित हो जाते हैं और वह सूचन ग्रहण तथा अनुक्रिया करने के लिए संजीवित हो जाता है।
2. व्यवहारपरक शक्ति तथा कौशल-
अभिप्रेरणा में भिन्नता के कारण प्राणी कभी-कभी दुर्बल उद्दीपन की स्थिति में भी प्रवल एवं प्रखर अनुक्रियाएँ और कभी-कभी प्रबल उद्दीपन स्थिति में नियंत्रित एवं दुर्बल अनुक्रियाएँ करता है। बहुधा अभिप्रेरणात्मक व्यवहार परिवर्तनशील उद्दीपकों की स्थिति में भी प्रखर रीति से घटित होते हैं।
3. व्यवहार का निश्चित दिशा की ओर उन्मुख होना
अभिप्रेरणात्मक व्यवहार किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होता है और उसकी दिशा का निर्धारण उसी लक्ष्य या उद्देश्य की प्राप्ति से होता है। अभिप्रेरित व्यवहार तब तक होता रहता है जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए अथवा किसी बाधा के कारण व्यवहार छिन्न-भिन्न न हो जाए। इसीलिए कहा जाता है कि अभिप्रेरणात्मक व्यवहार संधृत एवं चयनात्मक होता है।
4. प्रबलन प्रभाव
अभिप्रेरणात्मक व्यवहार लक्ष्य प्राप्ति के लिए निमित्त होते हैं। इसीलिए कहा जा सकता है कि अभिप्रेरितं व्यवहार नैमित्तिक होते हैं और प्रशिक्षणीय थी। लक्ष्य प्राप्त करने वाले व्यवहार प्रबलित हो जाते हैं। जब भी ऐसा प्रत्वलन होता है तो इसे प्रबलन प्रभाव कहा जाता है।
5. व्यवहार का दुर्बलन
ब्राउन ने इंगित किया है कि पीड़ादायी उद्दीपन भी अभिप्रेरणात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है क्योंकि वे नैमित्तिक व्यवहार जिनसे पीडा की प्राप्ति होती है, विकर्षणात्मक होते हैं और उनका दमन या दुर्बलन होता है।