अर्जित प्रेरक - Acquired Motivators
कुछ ऐसे भी प्रेरक हैं जो मनुष्य को सामाजिक वातावरण में दिखाई पड़ते हैं तथा उसके जीवन में उनका बहुत ही महत्व है। क्योंकि प्राणी को केवल शारीरिक प्रेरणाओं से ही सन्तुष्टि नहीं मिलती बल्कि सामाजिक स्तर के प्रति भी उतना ही उत्सुक एवं जिज्ञासु रहता है। जैसे सामाजिक परिवेश और संस्कृति से प्रभावित होता जाता है अनेक प्रेरकों का करने लगता है। इन प्रेरकों का विकाम सामाजिक मान्यताओं तथा आदर्शों अन्स प्रतिक्रियात्मक सम्बन्धों, संस्थाओं के आधार पर होता है।
ये प्रेरक गौण या मनोवैज्ञानिक प्रेरक भी कहलाते हैं। शारीरिक प्रणोदनों का समाजीकरण होना ही अर्जित प्रेरक है क्योंकि जन्मजात प्रेरकों में सामाजिकता की छाप पड़ने से उनमें मौलिकता नहीं रह शिशुओं में जन्मजात प्रेरक विशुद्ध रूप से दिखाई पड़ते हैं। उनकी क्रियाएँ शारीरिक वश्यकताओं से निर्धारित होती है। इनकी पर्ति के लिए अन्य सदस्यों की सहायता या देशों को आवश्यकता है। इनके प्रभाव से शिशु आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इनसे साधन सीख लेता है।
साथ ही समाज के प्रचलित तौर-तरीकों एवं नियमों का अनुकरण करके विकारों के साथ उसके व्यवहार समाज के स्वीकृति तरीकों के सदृश्य हो जाता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि कोई प्रेरक आंशिक रूप से सीखे एवं आंशिक रूप से बिना सीखे हुए होते हैं। किसी एक स्त्री पर केन्द्रित हो सकती है। इसे ही प्रेरकों में विशिष्टता आ जाना करते हैं। इनके अलावा इसमें इच्छाएँ एवं अन्य प्रेरक भी सम्मिलित हो सकते हैं क्योंकि विशिष्ट स्वी में यौन आकर्षण के साथ कुछ और भी गुण का आकर्षण होना दिखाई पड़ सकता है।
इस तरह से यौन-प्रेरक रूप अधिक जटिल हो जायेगा। व्यक्ति प्रेमिका को पाने के निये साधनों में भी रुचि उत्पन्न हो जाती है, यही साधन ही उसके लक्ष्य कुछ समय के लिये इन जाते हैं। वैसे ही व्यक्ति वास्तविक यौन सम्बन्ध को कुछ समय के लिये भूलकर अपनी प्रेमिका का प्रेम प्रदर्शित करने के लिये क्रियाशील हो सकता है तथा इसे ही अपना लक्ष्य समझा सकता है। इसी प्रकार के परिवर्तन अन्य प्रेरकों में श्री समाजीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है।