अधिगम अन्तरण के प्रायोगिक अभिकल्प - Experimental Design of Learning Transfer
प्रथम अभिकल्प-
इसमें दो समूहों का चयन अन्तरण प्रभाव के अध्ययन के लिए करते है। प्रथम समूह प्रायोगिक एवं दूसरा नियन्त्रित समूह होता है। प्रायोगिक समूह को कार्य 'अ' करने के बाद कार्य 'ब' को सीखना पड़ता है और नियन्त्रित समूहों के परिणामों की तुलना करके अन्तरण प्रभाव ज्ञात कर सकते हैं। इस अभिकल्प को लोगों ने उपयोगी नहीं माना है।
द्वितीय अभिकल्य-
इसके अन्तर्गत प्रयोज्यों को प्रायोगिक एवं नियमित समूहों के विभक्त होने से पहले अन्तरण कार्य 'ब' के कुछ भाग का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस विधि को वुडवर्ध एवं श्लासवर्ग ने पूर्व परीक्षण एवं पश्चात् परीक्षण का नाम दिया।
तृतीय अभिकल्प-
अधिगम अन्तरण के प्रयोग में यह भी किया जा सकता है कि प्रयोज्यों को दो समूह में विभक्त करके आधे प्रयोज्यों को पहले कार्य 'अ' का अधिगम करायें और बाद में कार्य 'ब' का अधिगम करायें। इसके पश्चात् आधे प्रयोज्यों के समूह को पहले कार्य 'ब' का एवं बाद में कार्य 'अ' का अधिगम करायें। इसमें क्रम बदल दिया जाता है। इस प्रकार के अन्तरण अभिकल्पों का उपयोग अन्तरण-सांवेदिक अन्तरण में किया जाता है।
चतुर्थ अभिकल्प -
इसमें अन्तरण प्रभाव का अध्ययन द्वितीय कार्य को परिवर्तित करके किया जा सकता है। गिब्सन एवं मिल्टन ने इस विधि का उपयोग अपने प्रयोगों में किया है। इस अधिगम अन्तरण में प्रायोगिक समूह के प्रयोज्य कार्य 'अ' के बाद कार्य 'ब' का तथा नियन्त्रित समूह के प्रयोज्य कार्य 'अ' के बाद कार्य 'ब' का अधिगम करते हैं जो कार्य 'अ' के समान परन्तु अनुरूप नहीं होता है।
पाँचवाँ अभिकल्प-
इस अभिकल्प में सभी प्रयोज्यों को कार्य 'अ' एवं 'ब' सीखने को दिया जाता है परन्तु दोनों कार्यों के बीच का समय अन्तराल भिन्न-भिन्न रखते हैं। इसका उपयोग अन्तरण के कालिक अवधि का अध्ययन बन्ध एवं मैक्लेवन तथा इलिस एवं वर्त्सटीन ने अपने प्रयोगों में किया।