चयनात्मक अवधान - Selective Attention
अवधान स्वभावतः चयनात्मक होता है। परिवेश के अगणित उद्दीपकों में से कुछ ही • उद्दपिकों पर व्यक्ति अपनी चेतना या अवधान को केन्द्रित कर पाता है। दूसरी विशेषता यह है कि चयनात्मक अवधान चंचल होता है और अवधान के केन्द्रण का बिन्दु बदलता रहता है। एक क्षण अवधान एक बिन्दु पर, दूसरे क्षण दूसरे बिन्दु पर और इसी प्रकार हर क्षण इसकी केन्द्र परिवर्तित होता रहता है। ऐसे चयनात्मक अवधान के संदर्भ में अनेक महत्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित होते हैं।
पहला प्रश्न यह है कि कौन से कारक या निर्धारक हैं जिनके कारण अगणित उद्दीपकों में कुछ ही की ओर ध्यान आकृष्ट होता है? तात्पर्य यह है कि अवधान की चयनात्मकता के निर्धारक क्या हैं? सामान्यतः परिवेशीय उद्दीपक ज्यों का त्यों कुछ अवधि के लिए बने रहते हैं किन्तु अवधान एक उद्दीपक से दूसरों की ओर चलायमान रहता है?
इस प्रकार स्वतः अवधान का उच्चावन कैसे और क्यों होता है? तीसरा प्रश्न अवधान के विभाजन से संबंधित है। क्या व्यक्ति एक हो समय दो या दो से अधिक उद्दीपकों पर प्रभावशाली रीति से अपने अवधान को केन्द्रित कर सकता है? अन्तिम प्रश्न का संबंध अनवधान या उचाट से है। प्रश्न यह है कि जब व्यक्ति सायास एक उद्दीपक या संकृत्य पर ध्यान केन्द्रित करता है तो उससे उसका उचाट क्यों, कैसे और कितनी मात्रा में होता है? इन सभी प्रश्नों का विस्तार के साथ प्रायोगिक अध्ययन किया गया है।
चयनात्मक अवधान के सिद्धांत ( Theories of Selective Attention )
(1) ब्राडवेण्ट का अवधान का निस्यंदक सिद्धांत
ब्रॉडबेण्ट ने अवधान का निस्यंदक सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने अवधान सम्बन्धी प्रायोगिक अध्ययनों के आधार पर किया है। उसके इस सिद्धान्त के कुछ प्रमुख अभिग्रह निम्न प्रकार से हैं-
अवधान चेतना का पर्याय है। व्यक्ति अपने चारों ओर के वातावरण में घटने वाली घटनाओं और उद्दीपक संकेतों के प्रति सचेत रहता है। उसका इस प्रकार सचेत होने को ही ब्रॉडवेण्ट ने अवधान कहा है। उसके निस्यंदक सिद्धान्त का दूसरा अभिग्रह यह है कि व्यक्ति का मन संचार स्रोत की भाँति कार्य करता है।
व्यक्ति के चारों ओर के वातावरण में अथवा कामच अदर घटित होने वाली घटनाओं की सूचनाओं को ज्ञानेन्द्रियाँ ग्रहण करती हैं फिर इन सूचनाओं का प्रक्रमण कर मस्तिष्क के उच्च केन्द्रों में संप्रेषित या संचारित कर देती है। निस्यंदक सिद्धान्त का तीसरा प्रमुख अभिग्रह यह है कि व्यक्ति के बाह्य और आन्तरिक वातावरण से जो उसे सांवेदिक सूचनाएं प्राप्त होती हैं, यह सांवेदिक सूचनाएँ सम्बन्चित ज्ञानेन्द्रियों की स्मृप्ति में कुछ क्षणों के लिये भण्डारित हो जाती हैं।
(2) निस्यंदक क्षीणन सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन ट्राइसमैन ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर किया है। अपने अध्ययनों में ट्राइसमैन ने यह देखा कि उपेक्षित चैनल द्वारा जो सूचनाएँ संप्रेक्षित या संचारित की जाती हैं उनको निस्यंदक रोकता नहीं है बल्कि चैनल से प्राप्त सूचना को निस्यंदक क्षीणं कर देता है।
ट्राइसमैन के निस्यंदक क्षीणन सिद्धान्त का दूसरा अभिग्रह यह है कि उद्दीपकों से. प्राप्त सूचनाएँ जब सांवेदिक भण्डार में पहुँचती हैं तब उनका दीर्घकालिक स्मृति भण्डार से सम्पर्क स्थापित हो जाता है। यह सम्पर्क तभी स्थापित होता है जब सूचनाएँ एक विशेष शक्ति को होती हैं। जिन सूचनाओं का सूचनाबल कम शक्तिशाली होता है वह दीर्घकालिक स्मृति भण्डार की संरचना को सक्रिया नहीं कर पाती है।
(3) चयनात्मक अवधान के अनुक्रिया चयन सिद्धान्त
चयनात्मक अवधान के अनुक्रिया-चयन सिद्धान्त का प्रतिपादन ड्यूश ने किया है। ड्यूश का विचार है कि ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से उद्दीपक संकेत प्राणी को प्राप्त होते हैं। इन उद्दीपक संकेतों का प्रत्यक्षीकरण व्यवस्था द्वारा पहले विश्लेषण किया जाता है। विश्लेषण के बाद प्रत्यक्षीकरण व्यवस्था द्वारा यह निर्णय किया जाता है कि किस उद्दीपक को अवधान का केन्द्र बनाकर अनुक्रिया करनी है। इस क्रम को यदि मान लिया जाये तो कहा जा सकता है कि सूचना प्रक्रमण में सर्वप्रथम सूचना ग्रहण के बाद प्रत्यक्षीकरण होता है, तत्पश्चात् अवधान के आधार पर प्राणी क्रिया करता है।