परिपक्वता एवं सीखना - Maturation and Learning

परिपक्वता एवं सीखना - Maturation and Learning

बोरिंग और उनके साथियों के अनुसार, "परिपक्वता एक - गौण विकास है जिसका अस्तित्व सीखी जाने वाली क्रिया या व्यवहार के पूर्व होना आवश्यक है। शारीरिक क्षमता के विकास को ही परिपक्वता कहते हैं।" यह देखा गया है कि जब तक शरीर के विभिन्न अंग और उसकी माँसपेशियाँ परिपक्व नहीं होती हैं, व्यवहार का संशोधन नहीं हो सकता।


किसी भी व्यक्ति के सीखने के लिए आवश्यक है कि उस व्यक्ति में, उपर्युक्त शारीरिक और मानसिक परिपक्वता हो। शारीरिक और मानसिक परिपक्वता के कारण भी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। यह परिवर्तन आयु के साथ-साथ होते हैं और प्राकृतिक होते हैं। यह परिवर्तन सीखन के परिवर्तनों से भिन्न हैं। सीखने और परिपक्वता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। परिपक्वता की अनुपस्थिति में सीखना सम्भव नहीं है। सीखने और परिपक्वता में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर होते हैं-


1. परिपक्वता के कारण व्यवहार परिवर्तन प्राकृतिक या स्वाभाविक होते हैं जबकि सीखने के लिए व्यक्ति को कई तरह की क्रियाएँ करनी पड़ती हैं जब व्यवहार का संशोधन होता है।


2. परिपक्वता के कारण व्यवहार में परिवर्तन प्रजातीय होते हैं जबकि सीखने के कारण व्यवहार में परिवर्तन केवल उसी व्यक्ति में होते हैं जो सीखता है।


3. परिपक्वता के लिए अभ्यास आवश्यक नहीं है जबकि सीखने के लिए अभ्यास आवश्यक है।


4. समाज में व्यक्ति जीवनपर्यन्त सीखता रहता है जबकि परिपक्वता की प्रक्रिया लगभग 25 वर्ष की अवस्था तक पूर्ण हो जाती है।


5. परिपक्वता अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में निरन्तर चलती रहती है। दूसरी ओर सीखना केवल अनुकूल परिस्थितियों में ही होता है, प्रतिकूल परिस्थितियों में नहीं। सीखने और परिपक्वता में उपर्युक्त अन्तरों के होते हुए भी दोनों ही आपस में एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। सीखने की प्रक्रिया परिपक्वता पर आधारित है। परन्तु परिपक्वता सीखने पर आधारित नहीं है। अनेक अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि सीखने के लिए उसके अनुरूप परिपक्वता आवश्यक है।

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