अन्तर्दृष्टि : गेस्टाल्ट सिद्धांत - Insight: Gestalt Principles
कोहलर (W. Kohler) ने अपने सन् 1917 में किए गये प्रयोगों के आधार पर सीखने के अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उसके यह प्रयोग दृष्टि विभेदीकरण पर थे। प्रयोग मुर्गियों एवं वनमानुषों पर किए। उसने अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्धान्त स्थापित किया कि वनमानुष सूझ के द्वारा सीखते हैं।
अन्तर्दृष्टिसंबंधी प्रयोग
अन्तर्दृष्टि सम्बन्धी कोहलर के निम्न प्रयोग अधिक प्रचलित हैं-
(1) अपने एक प्रयोग में उसने वनमानुष जिसका नाम सुल्तान था, को एक पिजड़े में बन्द किया। यह अपने पिंजुड़ें में थोड़ा-बहुत घूम-फिर सकता था। पिंजड़े से बाहर कुछ दूरी पर केला रख दिया गया जो पिंजड़े से साफ दिखाई देता था।
पिंजड़े में एक छड़ी भी डाल दी जिससे केला खींचा जा सकता था परन्तु हाथ से सुल्तान पिंजड़े के बाहर रखे केले को प्राप्त नहीं कर सकता था। कुछ देर हाथ से केला प्राप्त करने का प्रयास करता रहा फिर छड़ी से कुछ देर खेलता रहा। अचानक उसमें सूझ उत्पन्न हुई उसने तुरन्त छड़ों की सहायता से केले को खींचकर खा लिया।
(2) दूसरे प्रयोग में केले को इतना दूर पिंजड़े से रखा गया कि उसे बह एक उही से नहीं खींच सकता था। पिंजडे में दो छडियाँ रख दी गयी जो एक-दूसरे से फिट होकर जुड़ सकती परिस्थितियाँ पहले प्रयोगे की ही भाँति थीं।
केला खींचने का प्रयास किया फिर असफल होने पर उसने केला खींचने का प्रयास छोड़ दिया और दोनों छड़ियों से खेलने लगा। खेल-खेल में दोनों छड़ियां एक-दूसरे से जुड़ गयी। सुल्तान नेइस जुड़ी हुई लम्बी छड़ की सहायता से केला पिंजड़े की ओर खींच लिया और उसे खाया। जब प्रयोग को अगले दिन दुहराया गया तो सुल्तान को दो छड़ियों को जोड़ने में अपेक्षाकृत कम समय लगा।
कोहलर ने इस प्रकार के कुछ प्रयोग तीन वर्ष के बच्चों पर भी किये हैं। इन प्रयोगों के निरीक्षणों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि समस्याओं का एकाएक समाधान मुझ का ही परिचायक नहीं है अपितु समस्याओं के प्रति प्रतिक्रिया में पूर्ण और संगठन का नियम भी कार्य करता है।