समस्या-समाधान के निर्धारक तत्त्व - Determinants of problem solving
समस्या समाधान को प्रभावित करने वाले सभी कारक मुख्यतः तीन प्रकार के है-
1. समस्यात्मक स्थिति की विशेषताएँ-
1. समस्या का आकार-
अनेक प्रयोगात्मक अध्ययनों में यह देखा गया है कि समस्या आकार जितना ही बड़ा होता है. समस्या समाधान में प्रयोज्य को उतना ही अधिक स आकार है क्योंकि बड़े आकार की समस्या का समाधान प्रयोज्य के लिए कठिन होता
2. समस्या और समाधान स्थिति में समानता-
प्रयोज्य के सामने जिस समस्या स्थिति के प्रस्तुत किया जाता है उस समस्या स्थिति तथा समस्या समाधान कर लेने के बाद समस अथवा सामग्री की स्थिति में जितनी अधिक समानता होती है. प्रयोज्य के लिए समस्य समाधान उतना ही सरल होता है।
3. समस्या स्थिति का संगठन-
यह देखा गया है कि समस्या स्थिति का संगठन के समस्या समाधान को प्रभावित करता है।
2. समाधान की विशेषताएँ-
(1) समाधान की जटिलता -
अनेक प्रयोगात्मक अध्ययनों में यह देखा गया है कि समस्या का समाधान जितना ही जटिल होता है, समस्या का समाधान करने में प्रयोज्य को उतना ही अधिक समय लगता हैं।
(2) समाधान के पदों की सामान्यता-
कई प्रयोगात्मक अध्ययनों में यह देखा गया है कि समस्या के समाधान के चरणों में प्रयोज्य जितना ही अधिक परिचित होता है, समस्या समाधान में उतनी ही अधिक सरलता होती है।
3. समाधानकर्ता की विशेषताएँ-
(1) अभिप्रेरणा सम्बन्धी कारक
अभिप्रेरणा का स्तर भी समस्या समाधान को प्रभावित करता है। अनेक अध्ययनों में देखा गया है कि समस्या समाधान के लिए अभिप्रेरणा एक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण कारक है।
(2) पूर्व-अनुभव और अभ्यास-
विभिन्न प्रयोगात्मक अध्ययनों में यह देखा गया है कि प्रयोज्यों को समस्या-समाधान के सम्बन्ध में जितना ही अधिक पूर्व अनुभव और अभ्यास होता है। उनके लिए समस्या समाधान उतना ही सरल होता है और समय भी कम लगता है।
(3) सेट कारक-
एक विशिष्ट स्थिति में एक विशिष्ट प्रकार के अनुक्रिया करने की प्रवृत्ति को सेट कहते हैं। लुचिन्स ने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों के आधार पर अध्ययन कर बताया कि समस्या समाधान में प्रयोज्य सेट के कारण प्रत्यक्षपरक स्थिरता किस प्रकार धारण करता है।