प्रायोगिक व सामान्य मनोविज्ञान में अन्तर ( Difference between experimental and general psychology )
जीवित प्राणियों के सम्पूर्ण व्यवहारों का अध्ययन व विश्लेषण, उसकी विवेचना व व्याख्या प्रायोगिक मनोविज्ञान की विषय सीमा में ही है, इसलिए प्रायोगिक मनोविज्ञान व सामान्य मनोविज्ञान को कई बार पृथक् करना कठिन हो जाता है। सरकारी तौर पर देखने पर दोनों में इतनी समानता दिखायी पड़ती है कि वस्तुतः प्रायोगिक मनोविज्ञान और सामान्य मनोविज्ञान को एक ही समझ लिया जाता है।
इन दोनों शाखांओं में जो मूलभूत अन्तर है वह उनके पृथक् दृष्टिकोणों के कारण है और उन दोनों के स्वरूप को समझने के लिए सामान्य और प्रायोगिक मनोविज्ञान के दृष्टिकोण को समझना आवश्यक है।
संश्लेषणात्यक दृष्टिकोण -
सामान्य मनोविज्ञान संश्लेषणात्मक दृष्टिकोण का पालन करता है और व्यवहारों की व्याख्या में प्रयुक्त होने वाले सामान्य नियमों का प्रतिपादन व विवेचन करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के, लिए सामान्य मनोविज्ञान किसी भी विधि से संकलित प्रदत्तों सयोंग कर लेता है। विविध स्रोतों से संकलित सूचनाओं और प्रदत्तों का प्रयोग करते हुए व्यवहार के सामान्य नियमों का प्रतिपादन और विवेचन करना सामान्य मनोविज्ञान का लक्ष्य होता है। इसके अन्तर्गत आने वाले व्यवहारों को मात्र प्रायोगिक विधि द्वारा ही अध्ययन की परिधि में समाविष्ट किया जाता है।
प्रायोगिक विधि का अनुपालन-
यद्यपि प्रायोगिक विधि का अनुपालन प्रायोगिक मनोविज्ञान की पहली और अनिवार्य शर्त है किन्तु मनोविज्ञान की उन सभी शाखाओं को जिनमें प्रायोगिक विधि का पालन करते हुए निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं हम प्रायोगिक पुनोविज्ञान में शामिल नहीं कर लेते। यद्यपि आजकल मनोविज्ञान की प्रायः सभी शाखाओं में प्रायोगिक पद्धति प्रयुक्त होने लगी है. किन्तु मात्र यह पद्धति प्रयुक्त कर लेना उनका प्रायोगिक मनोविज्ञान कहलाने का हक नहीं देता।