सहसम्बन्धात्मक विधि - Correlational Method
प्रायः देखा जाता है कि परिस्थितियों के कुछ पक्षों या किसी एक पक्ष में परिवर्तन होने पर प्राणी के व्यवहार में भी परिवर्तन होता है। जो छात्र अध्ययन में जितना अधिक परिक्रम करता है, परीक्षाओं में उसके प्राप्तांक उतने ही अधिक होते हैं।
जिस परिवार की आय अधिक होती है, उस परिवार के रहन-सहन का स्तर भी उतना ही उच्च होता है। वास्तविक जीवन में होने वाले व्यवहारों और प्राणी के परिवेश की अथवा प्राणिगत विशेषताओं के बीच होने वाले व्यवहार परिवर्तनों का मापन और उनके सम्बन्धों का दिशा निर्धारण सह-संबंधात्मक (0) विधि के नाम से जाना जाता है।
किन्हीं भी दो स्थितियों, विशेषताओं, घटनाओं अधका परिवत्यों के बीच होने वाले सहवर्ती परिवर्तनों के पारस्परिक सम्बन्ध तीन प्रकार के (धनात्मक, ऋणात्मक अथवा शून्य) हो सकते हैं। धनात्मक सम्बन्ध का अर्थ यह है कि एक में जब वृद्धि होती है या एक की मात्रा जब बढ़ती है तो दूसरे में भी वृद्धि होती है या उसकी मात्रा बढ़ जाती है।
इसी सम्बन्ध को दूसरी तरह से कहा जा सकता है कि एक में जैसे-जैसे कमी होती है दूसरे में भी वैसे-वैसे कमी होती जाती है। परिवारों की आय में जितनी अधिक कमी होती है, उनके रहन-सहन का स्तर उतना ही निम्न स्तरीय हो जाता है। ऋणात्मक सम्बन्ध तब होता है जब एक पेरिवर्त्य में वृद्धि होने पर दूसरे परिवर्त्य में कमी हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि एक परिवर्त्य में कमी होने पर दूसरे परिवर्त्य में वृद्धि हो जाती है।
उदाहरणार्थ, जब किसी समाज में किसी समूह, गाँव या देश में किसी राजनीतिक, धार्मिक अथवा भाषा आदि की समस्या को लेकर सामाजिक कटुता बढ़ती है, तो उसमें रहने वाले व्यक्तियों में आत्मिक सुरक्षा की भावना में न्यूनता आ जाती है। सामाजिक कटुता और सुरक्षा भावना का यह सम्बन्ध ऋणात्मक है।