अन्तर्दर्शन विधि के गुण और दोष - Antardarshan Vidhi
अन्तर्दर्शन विधिं मनोविज्ञान की प्राचीनतम अध्ययन विधि है। अन्तर्दर्शन का है अपने में देखना या अपने अन्दर की क्रियाओं का विश्लेषण करना। टू लुक विदइन इस मुख्य कार्य है। यह विधि प्राचीन काल में उपयोग में लाई जा रही है। इस विधि के द्वा व्यक्ति अपने अनुभवों से दुःख या सुख की अनुभूति करता है। यद्यपि यह विधि पूर्णत वैज्ञानिक नहीं है, तो भी इसका प्रयोग अधिकांशतः किया जाता है।
अन्तर्दर्शन के अन्तर्गत विषयी अपनी स्थिति का अध्ययन एवं विवरण अपने आप प्रस्तुर करता है। टिचनर के अनुसार अन्तर्दर्शन का अर्थ स्वयं में देखना है।
अन्तर्दर्शन विधि के दोष ( Disadvantages of Introspection Method )
अन्तर्दर्शन विधि को पूर्ण रूप से वैज्ञानिक नहीं माना जाता। ऐसे आरोपों का कथन है कि जब भी व्यक्ति अपने व्यवहार का विश्लेषण करता है तब उसका व्यक्ति लुप्त हो जाता है। इस पद्धति के दोष इस प्रकार हैं-
(1) अन्तर्दर्शन के प्रयोगकर्ता तथा प्रयोज्य, दोनों एक ही व्यक्ति होता है। इसलिये योगकर्ता के रूप में व्यक्ति जब स्वयं का विश्लेषण करने लगता है तो उसका विषयी दो धागों में विभक्त हो जाता है। परिणामतः व्यक्ति वास्तविक अनुभवों को पृष्ठभूमि में छोड देता है। यदि किसी विषय पर विचार किया जा रहा है तो उसका अन्तर्दर्शन करने पर विचार क्रिया का लोप हो जाता है।
(2) अन्तर्दर्शन के समय मस्तिष्क का विभाजन दो भागों में हो जाता है। विषय तथ्या विश्लेषण के रूप में उनका लोप हो जाता है।
(3) टिचर के अनुसार- 'मानसिक प्रक्रिया क्षणिक एवं गतिशीलं होती है। हम किसी क्रिया में व्यस्त हैं। यदि हम अपना ध्यान उस क्रिया के विश्लेषण में लगा दें तो वह क्रिया लुप्त हो जाती है। विचार, संवेग तथा अनुभूति में इतनी शीघ्रता से परिवर्तन होता है कि उस पर ध्यान केन्द्रिता नहीं हो पाता।'